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मंगलवार, 30 जुलाई 2019

परमेश्वर इसहाक के प्रति अर्पण करने के लिए अब्राम को आज्ञा देता है

अब्राहम को एक पुत्र देने के बाद, वे वचन जिन्हें परमेश्वर ने अब्राहम से कहा था वे पूरे हो गए थे। इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर की योजना यहाँ पर रूक जाती है; इसके विपरीत, मानवजाति के प्रबन्धन एवं उद्धार के लिए परमेश्वर की बहुत ही शोभायमान योजना का बस प्रारम्भ ही हुआ था, और अब्राहम के लिए सन्तान की उसकी आशीष उसकी सम्पूर्ण प्रबन्धकीय योजना की मात्र एक प्रस्तावना थी। उस घड़ी, कौन जानता था कि शैतान के साथ परमेश्वर का युद्ध ख़ामोशी से प्रारम्भ हो चुका था जब अब्राहम ने इसहाक का बलिदान किया था।
परमेश्वर परवाह नहीं करता है यदि मनुष्य मूर्ख है—वह केवल यह मांग करता है कि मनुष्य सच्चा हो

आगे, आओ देखें कि परमेश्वर ने अब्राहम के साथ क्या किया था। उत्पत्ति 22:2 में, परमेश्वर ने अब्राहम को निम्नलिखित आज्ञा दी: "अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा; और वहाँ उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊँगा होमबलि करके चढ़ा।" परमेश्वर का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट था: परमेश्वर अब्राहम से अपने एकलौते पुत्र को जिससे वह प्रेम करता था होमबलि के रूप में देने के लिए कह रहा था। आज के परिप्रेक्ष्य में देखें, क्या परमेश्वर की आज्ञा अभी भी मनुष्य की धारणाओं से भिन्न है? हाँ! वह सब जिसे परमेश्वर ने उस समय किया था वह मनुष्य की धारणाओं के बिलकुल विपरीत और मनुष्य की समझ से बाहर था। उनकी धारणाओं में, लोग निम्नलिखित पर विश्वास करते हैं: जब किस मनुष्य ने विश्वास नहीं किया था, और सोचा था कि यह असम्भव है, तब परमेश्वर ने उसे एक पुत्र दिया, और जब उसे पुत्र प्राप्त हो गया उसके बाद, परमेश्वर ने उससे अपने पुत्र को बलिदान करने के लिए कहा—कितना अविश्वसनीय है! परमेश्वर ने वास्तव में क्या करने का इरादा किया था? परमेश्वर का वास्तविक उद्देश्य क्या था? उसने अब्राहम को बिना शर्त एक पुत्र प्रदान किया था, फिर उसने कहा कि अब्राहम बिना किसी शर्त के बलिदान करे। क्या यह बहुत अधिक था? तीसरे समूह के दृष्टिकोण से, यह न केवल बहुत अधिक था बल्कि कुछ कुछ "बिना किसी बात के मुसीबत खड़ा करने" का मामला था। परन्तु अब्राहम ने स्वयं यह नहीं सोचा कि परमेश्वर बहुत ज़्यादा मांग रहा है। हालाँकि उसमें कुछ ग़लतफहमियां थीं, और वह परमेश्वर के विषय में थोड़ा सन्देहास्पद था, फिर भी वह बलिदान करने के लिए अभी भी तैयार था। इस मुकाम पर, तू क्या देखता है जो यह साबित करता है कि अब्राहम अपने पुत्र का बलिदान करने के लिए तैयार था? इन वाक्यों में क्या कहा जा रहा है? मूल पाठ निम्नलिखित लेख प्रदान करता है: "अतः अब्राहम सबेरे तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब निकल कर उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्‍वर ने उससे की थी।" (उत्पत्ति 22:3)। "जब वे उस स्थान को जिसे परमेश्‍वर ने उसको बताया था पहुँचे; तब अब्राहम ने वहाँ वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपने पुत्र इसहाक को बाँध कर वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। फिर अब्राहम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्र को बलि करे।" (उत्पत्ति 22:9-10)। जब अब्राहम ने अपने हाथ को आगे बढ़ाया, और अपने बेटे को मारने के लिए छुरा लिया, तो क्या उसके कार्यों को परमेश्वर के द्वारा देखा गया था? परमेश्वर के द्वारा उन्हें देखा गया था। सम्पूर्ण प्रक्रिया से—आरम्भ से लेकर, जब परमेश्वर ने कहा कि अब्राहम इसहाक का बलिदान करे, उस समय तक जब अब्राहम ने अपने पुत्र का वध करने के लिए वास्तव में छुरा उठा लिया था—परमेश्वर ने अब्राहम के हृदय को देखा था, और उसकी पहले की मूर्खता, अज्ञानता एवं परमेश्वर को ग़लत समझने के बावजूद भी, उस समय अब्राहम का हृदय परमेश्वर के प्रति सच्चा, और ईमानदार था, और वह सचमुच में इसहाक को परमेश्वर को वापस करने वाला था, जो पुत्र परमेश्वर के द्वारा उसे दिया गया था, वापस परमेश्वर को। परमेश्वर ने उस में आज्ञाकारिता को देखा—वही आज्ञाकारिता जिसकी उसने इच्छा की थी।
मनुष्य के लिए, परमेश्वर बहुत कुछ करता है जो समझ से बाहर है और यहाँ तक कि अविश्वसनीय भी है। जब परमेश्वर किसी को आयोजित करने की इच्छा करता है, तो ये आयोजन प्रायः मनुष्य की धारणाओं से भिन्न होते हैं, और उसकी समझ से परे होते हैं, फिर भी बिलकुल यही असहमति एवं अबोधगम्यता ही है जो परमेश्वर का परिक्षण एवं मनुष्य की परीक्षाएं हैं। इसी बीच, अब्राहम अपने आप में ही परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता को प्रदर्शित करने के योग्य हो गया, जो परमेश्वर की अपेक्षाओं को संतुष्ट करने के योग्य होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त थी। जब अब्राहम परमेश्वर की मांग को मानने के योग्य हुआ, जब उसने इसहाक का बलिदान किया, केवल तभी परमेश्वर को सचमुच में मानवजाति के प्रति—अब्राहम के प्रति—पुनःआश्वासन एवं स्वीकृति का एहसास हुआ, जिसे उसने चुना था। केवल तभी परमेश्वर को निश्चय हुआ कि यह व्यक्ति जिसे उसने चुना था वह एक अत्यंत महत्वपूर्ण अगुवा था जो उसकी प्रतिज्ञा एवं आगामी प्रबंधकीय योजना को आरम्भ कर सकता था। हालाँकि यह सिर्फ एक परीक्षण एवं परीक्षा थी, परमेश्वर को प्रसन्नता का एहसास हुआ, उसने अपने लिए मनुष्य के प्रेम को महसूस किया, और उसे मनुष्य के द्वारा ऐसा सुकून मिला जैसा उसे पहले कभी नहीं मिला था। जिस घड़ी अब्राहम ने इसहाक को मारने के लिए अपना छूरा उठाया था, क्या परमेश्वर ने उसे रोका? परमेश्वर ने अब्राहम को इसहाक का बलिदान करने नहीं दिया, क्योंकि परमेश्वर की इसहाक का जीवन लेने की कोई मनसा नहीं थी। इस प्रकार, परमेश्वर ने अब्राहम को बिलकुल सही समय पर रोक दिया था। परमेश्वर के लिए, अब्राहम की आज्ञाकारिता ने पहले ही उस परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया था, जो कुछ उसने किया वह पर्याप्त था, और परमेश्वर ने उस परिणाम को पहले ही देख लिया था जिसका उसने इरादा किया था। क्या यह परिणाम परमेश्वर के लिए संतोषजनक था? ऐसा कहा जा सकता है कि यह परिणाम परमेश्वर के लिए संतोषजनक था, कि यह वह परिणाम था जो परमेश्वर चाहता था, और जिसे परमेश्वर ने देखने की लालसा की थी। क्या यह सही है? हालाँकि, अलग-अलग संदर्भों में, परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति को परखने के लिए भिन्न-भिन्न तरीकों का उपयोग करता है, अब्राहम में परमेश्वर ने वह देखा जो वह चाहता था, उसने देखा कि अब्राहम का हृदय सच्चा था, और यह कि उसकी आज्ञाकारिता बिना किसी शर्त के थी, और यह बिलकुल वही "बिना किसी शर्त" की आज्ञाकारिता थी जिसकी परमेश्वर ने इच्छा की थी। …
                                                                      "वचन देह में प्रकट होता है" से
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

परमेश्वर आदम और हव्वा के वस्त्र बनाने के लिए जानवर की खालों का इस्तेमाल करता है

(उत्पत्ति 3:20-21) आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।
आओ हम इस तीसरे अंश पर एक नज़र डालें, जो बताता है कि उस नाम के पीछे एक अर्थ है जिसे आदम ने हव्वा को दिया था, ठीक है? यह दर्शाता है कि सृजे जाने के बाद, आदम के पास अपने स्वयं के विचार थे और वह बहुत सी चीज़ों को समझता था। लेकिन फिलहाल हम जो कुछ वह समझता था या कितना कुछ वह समझता था उसका अध्ययन या उसकी खोज करने नहीं जा रहे हैं क्योंकि यह वह मुख्य बिन्दु नहीं है जिस पर मैं तीसरे अंश में चर्चा करना चाहता हूँ। अतः तीसरे अंश का मुख्य बिन्दु क्या है। आइए हम इस पंक्ति पर एक नज़र डालें, "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।" यदि आज हम पवित्र शास्त्र की इस पंक्ति के बारे में संगति नहीं करें, तो हो सकता है कि तुम लोग इन वचनों के पीछे निहित अर्थों का कभी एहसास न कर एँपाओ। सबसे पहले, मुझे कुछ सुराग देने दो। अपनी कल्पना को विस्तृत करो और अदन के बाग की तस्वीर देखिए, जिसमें आदम और हव्वा रहते हैं। परमेश्वर उनसे मिलने जाता है, लेकिन वे छिप जाते हैं क्योंकि वे नग्न हैं। परमेश्वर उन्हें देख नहीं सकता है, और जब वह उन्हें पुकारता है उसके बाद, वे कहते हैं, "हममें तुझे देखने की हिम्मत नहीं है क्योंकि हमारे शरीर नग्न हैं।" वे परमेश्वर को देखने की हिम्मत नहीं करते हैं क्योंकि वे नग्न हैं। तो यहोवा परमेश्वर उनके लिए क्या करता है? मूल पाठ कहता है: "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।" अब क्या तुम लोग जानते हो कि परमेश्वर ने उनके वस्त्रों को बनाने के लिए क्या उपयोग किया था? परमेश्वर ने उनके वस्त्रों को बनाने के लिए जानवर के चमड़े का उपयोग किया था। कहने का तात्पर्य है, जो वस्त्र परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया वह एक रोएँदार कोट था। यह वस्त्र का पहला टुकड़ा था जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया था। एक रोएँदार कोट आज की जीवनशैली के अनुसार ऊँचे बाज़ार का मद है, ऐसी चीज़ जिसे पहनने के लिए हर कोई खरीद नहीं सकता है। यदि तुमसे कोई पूछे: मानवजाति के पूर्वजों के द्वारा पहना गया वस्त्र का पहला टुकड़ा क्या था? तुम उत्तर दे सकते हो: यह एक रोएँदार कोट था। यह रोएँदार कोट किसने बनाया था? तुम आगे प्रत्युत्तर दे सकते हो: परमेश्वर ने इसे बनाया था! यही मुख्य बिन्दु है: इस वस्त्र को परमेश्वर के द्वारा बनाया गया था। क्या यह ऐसी चीज़ नहीं है जो ध्यान देने के योग्य है? फिलहाल मैंने अभी-अभी इसका वर्णन किया है, क्या तुम्हारे मनों में एक छवि उभर कर आई है? इसकी कम से कम एक अनुमानित रुपरेखा होनी चाहिए। आज तुम लोगों को बताने का बिन्दु यह नहीं है कि तुम लोग जानो कि मनुष्य के वस्त्र का पहला टुकड़ा क्या था। तो फिर बिन्दु क्या है? यह बिन्दु रोएँदार कोट नहीं है, परन्तु यह है कि परमेश्वर के द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव एवं अस्तित्व एवं व्यावहारिक सम्पदाओं (गुणों) को कैसे जाने जब वह यह कार्य कर रहा था।
      "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए," इसकी छवि में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका निभाता है जब वह आदम और हव्वा के साथ है? मात्र दो मानव प्राणियों के साथ एक संसार में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका में प्रकट होता है? परमेश्वर की भूमिका के रूप में? हौंग कौंग के भाइयों एवं बहनों, कृपया उत्तर दीजिए। (एक पिता की भूमिका के रूप में।) दक्षिण कोरिया के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो कि परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका में प्रकट होता है? (परिवार के मुखिया।) ताइवान के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो? (आदम और हव्वा के परिवार में किसी व्यक्ति की भूमिका, परिवार के एक सदस्य की भूमिका।) तुम लोगों में से कुछ सोचते हैं कि परमेश्वर आदम और हव्वा के परिवार के एक सदस्य के रूप में प्रकट होता है, जबकि कुछ कहते हैं कि परमेश्वर परिवार के एक मुखिया के रूप में प्रकट होता है और अन्य लोग कहते हैं एक पिता के रूप में। इनमें से सब बिलकुल उपयुक्त हैं। लेकिन वह क्या है जिस तक मैं पहुँच रहा हूँ? परमेश्वर ने इन दो लोगों की सृष्टि की और उनके साथ अपने सहयोगियों के समान व्यवहार किया था। उनके एकमात्र परिवार के समान, परमेश्वर ने उनके रहन-सहन का ख्याल रखा और और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा। यहाँ, परमेश्वर आदम और हव्वा के माता-पिता के रूप में प्रकट होता है। जब परमेश्वर यह करता है, मनुष्य नहीं देखता कि परमेश्वर कितना ऊंचा है; वह परमेश्वर की सबसे ऊँची सर्वोच्चता, उसकी रहस्यमयता को नहीं देखता है, और ख़ासकर उसके क्रोध या प्रताप को नहीं देखता है। जो कुछ वह देखता है वह परमेश्वर की नम्रता, उसका स्नेह, मनुष्य के लिए उसकी चिंता और उसके प्रति उसकी ज़िम्मेदारी एवं देखभाल है। वह मनोवृत्ति एवं तरीका जिसके अंतर्गत परमेश्वर आदम और हव्वा के साथ व्यवहार करता है वह इसके समान है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए चिंता करते हैं। यह इसके समान भी है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने पुत्र एवं पुत्रियों से प्रेम करते हैं, उन पर ध्यान देते हैं, और उनकी देखरेख करते हैं—वास्तविक, दृश्यमान, और स्पर्शगम्य। अपने आपको एक ऊँचे एवं सामर्थी पद पर रखने के बजाए, परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के लिए पहरावा बनाने के लिए चमड़ों का उपयोग किया था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनकी लज्जा को छुपाने के लिए या उन्हें ठण्ड से बचाने के लिए इस रोएँदार कोट का उपयोग किया गया था। संक्षेप में, यह पहरावा जो मनुष्य के शरीर को ढंका करता था उसे परमेश्वर के द्वारा उसके अपने हाथों से बनाया गया था। इसे सरलता से विचार के माध्यम से या चमत्कारीय तरीके से बनाने के बजाय जैसा लोग सोचते हैं, परमेश्वर ने वैधानिक तौर पर कुछ ऐसा किया जिसके विषय में मनुष्य सोचता है कि परमेश्वर नहीं कर सकता था और उसे नहीं करना चाहिए था। यह एक साधारण कार्य हो सकता है कि कुछ लोग यहाँ तक सोचें कि यह जिक्र करने के लायक भी नहीं है, परन्तु यह उन सब को अनुमति भी देता है जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं परन्तु उसके विषय में पहले अस्पष्ट विचारों से भरे हुए थे कि वे उसकी विशुद्धता एवं मनोहरता में अन्तःदृष्टि प्राप्त करें, और उसके विश्वासयोग्य एवं दीन स्वभाव को देखें। यह अत्यधिक अभिमानी लोगों को, जो सोचते हैं कि वे ऊँचे एवं शक्तिशाली हैं, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता के सामने लज्जा से अपने अहंकारी सिरों को झुकाने के लिए मजबूर करता है। यहाँ, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता लोगों को यह देखने के लिए और अधिक योग्य बनाती है कि परमेश्वर कितना प्यारा है। इसके विपरीत, "असीम" परमेश्वर, "प्यारा" परमेश्वर और "सर्वशक्तिमान" परमेश्वर लोगों के हृदय में कितना छोटा, एवं नीरस है, और एक प्रहार को भी सहने में असमर्थ है। जब तुम इस वचन को देखते हो और इस कहानी को सुनते हो, तो क्या तुम परमेश्वर को नीचा देखते हो क्योंकि उसने एक ऐसा कार्य किया था? शायद कुछ लोग सोचें, लेकिन दूसरों के लिए यह पूर्णत: विपरीत होगा। वे सोचेंगे कि परमेश्वर विशुद्ध एवं प्यारा है, यह बिलकुल परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता है जो उन्हें द्रवित करती है। जितना अधिक वे परमेश्वर के वास्तविक पहलू को देखते हैं, उतना ही अधिक वे परमेश्वर के प्रेम के सच्चे अस्तित्व की, अपने हृदय में परमेश्वर के महत्व की, और वह किस प्रकार हर घड़ी उनके बगल में खड़ा होता है उसकी सराहना कर सकते हैं।

इस बिन्दु पर, हमें हमारी बातचीत को वर्तमान से जोड़ना चाहिए। यदि परमेश्वर मनुष्यों के लिए ये विभिन्न छोटी छोटी चीज़ें कर सकता था जिन्हें उसने बिलकुल शुरुआत में सृजा था, यहाँ तक कि ऐसी चीज़ें भी जिनके विषय में लोग कभी सोचने या अपेक्षा करने की हिम्मत भी नहीं करेंगे, तो क्या परमेश्वर आज के लोगों के लिए ऐसी चीज़ें करेगा? कुछ लोग कहते हैं, "हाँ!" ऐसा क्यों है? क्योंकि परमेश्वर का सार जाली नहीं है, उसकी मनोहरता जाली नहीं है। क्योंकि परमेश्वर का सार सचमुच में अस्तित्व में है और यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे दूसरों के द्वारा मिलाया गया है, और निश्चित रूप से ऐसी चीज़ नहीं है जो समय, स्थान एवं युगों में परिवर्तन के साथ बदलता जाता है। परमेश्वर की विशुद्धता एवं मनोहरता को कुछ ऐसा करने के द्वारा सामने लाया जा सकता है जिसे लोग सोचते हैं कि साधारण एवं मामूली है, ऐसी चीज़ जो बहुत छोटी है कि लोग सोचते भी नहीं हैं कि वह कभी करेगा। परमेश्वर अभिमानी नहीं है। उसके स्वभाव एवं सार में कोई अतिशयोक्ति, छद्मवेश, गर्व, या अहंकार नहीं है। वह कभी डींगें नहीं मारता है, बल्कि इसके बजाए प्रेम करता है, चिंता करता है, ध्यान देता है, और मानव प्राणियों की अगुवाई करता है जिन्हें उसने विश्वासयोग्यता एवं ईमानदारी से बनाया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग इसमें से कितनी चीज़ों की सराहना, एवं एहसास कर सकते हैं, या देख सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर निश्चय ही इन चीज़ों को कर रहा है। क्या यह जानना कि परमेश्वर के पास ऐसा सार है उसके लिए लोगों के प्रेम को प्रभावित करेगा? क्या यह परमेश्वर के विषय में उनके भय को प्रभावित करेगा? मैं आशा करता हूँ कि जब तुम परमेश्वर के वास्तविक पहलु को समझ जाते हो तो तुम उसके और भी करीब हो एँजाओगे और तुम मानवजाति के प्रति उसके प्रेम एवं देखभाल की सचमुच में और भी अधिक सराहना करने के योग्य होगे, जबकि ठीक उसी समय तुम अपना हृदय भी परमेश्वर को देते हो और आगे से तुम्हारे पास उसके प्रति कोई सन्देह या शंका नहीं होती है। परमेश्वर मनुष्य के लिए सबकुछ चुपचाप कर रहा है, वह यह सब अपनी ईमानदारी, विश्वासयोग्यता एवं प्रेम के जरिए खामोशी से कर रहा है। लेकिन उन सब के लिए जिसे वह करता है उसे कभी कोई शंका या खेद नहीं हुआ, न ही उसे कभी आवश्यकता हुई कि कोई उसे किसी रीति से बदले में कुछ दे या न ही उसके पास कभी मानवजाति से कोई चीज़ प्राप्त करने के इरादे हैं। वह सब कुछ जो उसने हमेशा किया है उसका एकमात्र उद्देश्य यह है ताकि वह मानवजाति के सच्चे विश्वास एवं प्रेम को प्राप्त कर सके।
"वचन देह में प्रकट होता है" सेऔर पढ़ें
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शनिवार, 22 जून 2019

चौथे दिन, जब परमेश्वर ने एक बार फिर से अपने अधिकार का उपयोग किया तो मानवजाति के लिए मौसम, दिन, और वर्ष अस्तित्व में आ गए

सृष्टिकर्ता ने अपनी योजना को पूरा करने के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल किया, और इस तरह से उसने अपनी योजना के पहले तीन दिनों को गुज़ारा। इन तीन दिनों के दौरान, परमेश्वर इधर उधर के कामों में व्यस्त, या अपने प में थका हुआ दिखाई नहीं दिया; इसके विपरीत, उसने अपनी योजना के तीन बेहतरीन दिनों को गुज़ारा, और संसार के मूल रूपान्तरण के महान कार्य को पूरा किया। एक बिलकुल नया संसार उसकी आँखों में दृष्टिगोचर हुआ, और अंश अंश कर के वह ख़ूबसूरत तस्वीर जो उसके विचारों में मुहरबन्द थी अंततः परमेश्वर के वचनों में प्रगट हो गई। हर चीज़ का प्रकटीकरण एक नए जन्मे हुए बच्चे के समान था, और सृष्टिकर्ता उस तस्वीर से आनंदित हुआ जो एक समय उसके विचारों में था, परन्तु जिसे अब जीवन्त कर दिया गया था। उसी समय, उसके हृदय ने चाँन्दी की सी संतुष्टि प्राप्त की, परन्तु उसकी योजना बस अभी शुरू ही हुई थी। आँखों के पलक झपकते ही, एक नया दिन आ गया था - और सृष्टिकर्ता की योजना में अगला पृष्ठ
      क्या था? उसने क्या कहा था? और उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया था? और, उसी समय, इस नए संसार में कौन सी नई चीज़ें आ गईं? सृष्टिकर्ता के मार्गदर्शन का अनुसरण करते हुए, हमारी निगाहें चौथे दिन पर आ टिकीं जिसमें परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी, एक ऐसा दिन जिसमें एक और नई शुरूआत होने वाली थी। वास्तव में, यह सृष्टिकर्ता के लिए निःसन्देह एक और बेहतरीन दिन था, और आज की मानवजाति के लिए यह एक और अति महत्वपूर्ण दिन था। यह, वास्तव में, एक बहुमूल्य दिन था। वह इतना बेहतरीन क्यों था, वह इतना महत्वपूर्ण क्यों था, और वह इतना बहुमूल्य कैसे था? आओ सबसे पहले सृष्टिकर्ता के द्वारा बोले गए वचनों को सुनें.....।

"फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिए आकाश के अन्तर में ज्योंतियाँ हों; और वे चिन्हों और नियत समयों, और दिनों और वर्षों के कारण हों। और वे ज्योंतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया" (उत्पत्ति 1:14-15)। सूखी भूमि और उसके पौधों की सृष्टि के बाद यह परमेश्वर के अधिकार का एक और उद्यम था जो सृजी गई चीज़ों के द्वारा दिखाया गया था। परमेश्वर के लिए ऐसा कार्य उतना ही सरल था, क्योंकि परमेश्वर के पास ऐसी सामर्थ है; परमेश्वर अपने वचन के समान ही भला है, और उसके वचन पूरे होंगे। परमेश्वर ने ज्योतियों को आज्ञा दी कि वे आकाश में प्रगट हों, और ये ज्योतियाँ न केवल पृथ्वी के ऊपर आकाश में रोशनी देती थीं, बल्कि दिन और रात, और ऋतुओं, दिनों, और वर्षों के लिए भी चिन्ह के रूप में कार्य करते थे। इस प्रकार, जब परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, हर एक कार्य जिसे परमेश्वर पूरा करना चाहता था वह परमेश्वर के अभिप्राय और जिस रीति से परमेश्वर ने उन्हें नियुक्त किया था उसके अनुसार पूरा हो गया।
आकाश में जो ज्योतियाँ हैं वे आसमान के पदार्थ हैं जो प्रकाश को इधर उधर फैला सकते हैं; वे आकाश को ज्योतिर्मय कर सकती हैं, और भूमि और समुद्र को प्रकाशमय कर सकती हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार लय एवं तीव्रता में परिक्रमा करती हैं, और विभिन्न समयकालों पर भूमि पर प्रकाश देती हैं, और इस रीति से, ज्योतियों की परिक्रमा के चक्र के कारण भूमि के पूर्वी और पश्चिमी छोर पर दिन और रात होते हैं, और वे न केवल दिन और रात के लिए चिन्ह हैं, बल्कि इन विभिन्न चक्रों के द्वारा वे मानवजाति के लिए त्योहारों और विशेष दिनों को भी चिन्हित करती हैं। वे चारों ऋतुओं के पूर्ण पूरक और सहायक हैं - बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, और शीत ऋतु - जिन्हें परमेश्वर के द्वारा भेजा जाता है, जिस से ज्योतियाँ एकरूपता के साथ मानवजाति के लिए चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों के लिए एक निरन्तर और सटीक चिन्ह के रूप में एक साथ कार्य करती हैं। यद्यपि यह केवल कृषि के आगमन के बाद ही हुआ जब मानवजाति ने समझना प्रारम्भ किया और परमेश्वर द्वारा बनाई गई ज्योतियों द्वारा चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और वर्षों के विभाजन का सामना किया, और वास्तव में चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और वर्षों को जिन्हें मनुष्य आज समझता है वे बहुत पहले ही चौथे दिन प्रारम्भ हो चुके थे जब परमेश्वर ने सभी वस्तुओं की सृष्टि की थी, और इस प्रकार अपने आप में बदलनेवाले बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, और शीत ऋतु के चक्र भी जिन्हें मनुष्य के द्वारा अनुभव किया जाता है वे बहुत पहले ही चौथे दिन प्रारम्भ हो चुके थे जब परमेश्वर ने सभी वस्तुओं की सृष्टि की थी। परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियों ने मनुष्य को इस योग्य बनाया कि वे लगातार, सटीक ढंग से, और साफ साफ दिन और रात के बीच अन्तर कर सकें, और दिनों को गिन सकें, और साफ साफ चन्द्रमा की स्थितियों और वर्षों का हिसाब रख सकें। (पूर्ण चन्द्रमा का दिन एक महिने की समाप्ति को दर्शाता था, और इससे मनुष्य जान गया कि ज्योतियों के प्रकाशन ने एक नए चक्र की शुरूआत की थी; अर्ध चन्द्रमा का दिन आधे महीने की समाप्ति को दर्शाता था, जिसने मनुष्य को यह बताया कि चन्द्रमा की एक नई स्थिति शुरू हुई है, इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि चन्द्रमा की एक स्थिति में कितने दिन और रात होते हैं, और एक ऋतु में चन्द्रमा की कितनी स्थितियाँ होती हैं, और एक साल में कितनी ऋतुएँ होती हैं, और सब कुछ लगातार प्रदर्शित हो रहा था।) और इस प्रकार, मनुष्य ज्योतियों की परिक्रमाओं के चिन्हाँकन से आसानी से चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों का पता लगा सकता था। इस बिन्दु के आगे से, मानवजाति और सभी चीज़ें एहसास न करते हुए दिन एवं रात के क्रमानुसार परस्पर परिवर्तन और ज्योतियों की परिक्रमाओं से उत्पन्न ऋतुओं के बदलाव के मध्य जीवन बिताने लगे। यह सृष्टिकर्ता की सृष्टि का महत्व था जब उसने चौथे दिन ज्योतियों की सृष्टि की थी। उसी प्रकार, सृष्टिकर्ता के इस कार्य के उद्देश्य और महत्व अभी भी उसके अधिकार और सामर्थ से अविभाजित थे। और इस प्रकार, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियाँ और वह मूल्य जो वे शीघ्र ही मनुष्य के लिए लानेवाले थे, वे सृष्टिकर्ता के अधिकार के इस्तेमाल में एक और महानतम कार्य थे।
इस नए संसार में, जिसमें मानवजाति अभी तक प्रकट नहीं हुआ था, सृष्टिकर्ता ने "साँझ और सवेरे," "आकाश," "भूमि और समुद्र," "घास, सागपात और विभिन्न प्रकार के वृक्ष," और "ज्योतियों, ऋतुओं, दिनों, और वर्षों" को उस नए जीवन के लिए बनाया जिसे वह शीघ्र उत्पन्न करने वाला था। सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ हर उस नई चीज़ में प्रगट हुआ जिसे उसने बनाया था, और उसके वचन और उपलब्धियाँ बिना किसी लेश मात्र विरोद्ध, और बिना किसी लेश मात्र अन्तराल के एक साथ घटित होती हैं। इन सभी नई चीज़ों का प्रकटीकरण और जन्म सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ के प्रमाण थे; वह अपने वचन के समान ही भला है, और उसका वचन पूरा होगा, और जो पूर्ण हुआ है वो हमेशा बना रहेगा। यह सच्चाई कभी नहीं बदलीः यह भूतकाल में ऐसा था, यह वर्तमान में ऐसा है, और पूरे अनंतकाल के लिए भी ऐसा ही बना रहेगा। जब तुम लोग पवित्र शास्त्र के उन वचनों को एक बार और देखते हो, तो क्या वे तुम्हें तरोताज़ा दिखाई देते हो? क्या तुम सबने नए ब्योरों को देखा है, और नई नई खोज की है? यह इसलिए है क्योंकि सृष्टिकर्ता के कार्यों ने तुम लोगों के हृदय को उकसा दिया है, और अपने अधिकार और सामर्थ की दिशा में तुम सबके ज्ञान का मार्गदर्शन किया है, और सृष्टिकर्ता के लिए तुम लोगों की समझ के द्वार को खोल दिया है, और उसके कार्य और अधिकार ने इन वचनों को जीवन दिया है। और इस प्रकार इन वचनों में मनुष्य ने सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक वास्तविक, स्पष्ट प्रकटीकरण देखा है, और सचमुच में सृष्टिकर्ता की सर्वोच्चता के गवाह बने हैं, और सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ की असाधारणता को देखा है।
सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ ने चमत्कार के ऊपर चमत्कार किया है, और उसने मनुष्य के ध्यान को आकर्षित किया है, और मनुष्य उसके अधिकार के उपयोग से पैदा हुए आश्चर्यजनक कार्यों को टकटकी लगाकर देखने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है। उसकी प्रगट सामर्थ आनंद के बाद आनंद लेकर आती है, और मनुष्य भौंचक्का हो जाता है और अतिउत्साह से भर जाता है, और प्रशंसा में आहें भरता है, और भय से ग्रसित, और हर्षित हो जाता है; और इससे अधिक क्या, मनुष्य दृश्यमान रूप से कायल हो जाता है, और उस में आदर, सम्मान, और लगाव उत्पन्न होने लग जाता है। मनुष्य के आत्मा के ऊपर सृष्टिकर्ता के अधिकार और कार्यों का एक बड़ा प्रभाव होता है, और मनुष्य के आत्मा को शुद्ध कर देता है, और, इसके अतिरिक्त, मनुष्य के आत्मा को स्थिर कर देता है। उसके हर एक विचार, उसके हर एक बोल, और उसके अधिकार का हर एक प्रकाशन सभी चीज़ों में अति उत्तम रचना हैं, और यह एक महान कार्य है और सृजी गई मानवजाति की गहरी समझ और ज्ञान के लिए बहुत ही योग्य है। जब हम सृष्टिकर्ता के वचनों से सृजे गए हर एक जीवधारी की गणना करते हैं, तो हमारा आत्मा परमेश्वर की सामर्थ के आश्चर्य की ओर खींचा चला जाता है, और हम अगले दिन अपने आप को सृष्टिकर्ता के कदमों के निशानों के पीछे पीछे चलते हुए पाते हैं: सभी चीज़ों की सृष्टि का पाँचवा दिन।
जब हम सृष्टिकर्ता के और कार्यों को देखते हैं, तो आओ हम अंश अंश करके पवित्र शास्त्र को पढ़ना प्रारम्भ करें।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
अनुशंसित:प्रार्थनाओं का सही तरीका क्या है, परमेश्वर से वास्तव में प्रार्थना कैसे करें?

शुक्रवार, 21 जून 2019

तीसरे दिन, परमेश्वर के वचनों ने पृथ्वी और समुद्रों की उत्पत्ति की, और परमेश्वर के अधिकार ने संसार को जीवन से लबालब भर दिया

आगे आईए हम उत्पत्ति 1:9-11 के पहले वाक्य को पढ़ें: "फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे।" जब परमेश्वर ने साधारण रूप से कहा तो क्या परिवर्तन हुआ, "फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे।" और इस अन्तर में उजियाले और आकाश के अलावा क्या था? पवित्र शास्त्र में ऐसा लिखा हैः "और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा; तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा"और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। दूसरे शब्दों में, अब इस अन्तर में भूमि और समुद्र थे, और भूमि और समुद्र विभाजित हो गए थे। इन दो नई चीज़ों के प्रकटीकरण ने परमेश्वर की मुँह की आज्ञा का पालन किया, "और ऐसा हो गया।" क्या पवित्र शास्त्र इस प्रकार वर्णन करता है कि जब परमेश्वर यह सब कर रहा था तब बहुत व्यस्त था? क्या यह ऐसा वर्णन करता है कि परमेश्वर शारीरिक परिश्रम में लगा हुआ था? तब, परमेश्वर के द्वारा सब कुछ कैसे किया गया था? परमेश्वर ने इन नई वस्तुओं को उत्पन्न कैसे किया? स्वतः प्रगट है, परमेश्वर ने इन सब को पूरा करने के लिए, और इसकी सम्पूर्णता की सृष्टि करने के लिए वचनों का उपयोग किया।
उपर्युक्त तीन अंशों में, हम ने तीन बड़ी घटनाओं के घटित होने के बारे में सीखा। ये तीन घटनाएँ प्रगट हुईं, और उन्हें परमेश्वर के वचनों के द्वारा अस्तित्व में लाया गया, और ऐसा एक के बाद एक उसके वचनों के द्वारा हुआ, जो परमेश्वर की आँखों के सामने प्रगट हुए थे। इस प्रकार ऐसा कहा जा सकता है कि "परमेश्वर कहेगा, और वह पूरा हो जाएगा; वह आज्ञा देगा, और वह बना रहेगा" और वे खोखले वचन नहीं हैं। परमेश्वर की यह हस्ती उसी पल दृढ़ हो गई थी जब उसने विचार धारण किया था, और उसकी हस्ती पूर्णतया प्रतिबिम्बित हो गई थी जब परमेश्वर ने बोलने के लिए अपना मुँह खोला था।
आओ हम इस अंश के अन्तिम वाक्य में आगे बढ़ें: "फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया।" जब परमेश्वर बोल रहा था, परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करते हुए ये सभी चीज़ें अस्तित्व में आ गईं, और एक क्षण में ही, अलग अलग प्रकार की छोटी छोटी नाज़ुक ज़िन्दगियाँ बेतरतीब ढंग से मिट्टी से बाहर आने के लिए अपने सिरों को ऊपर उठाने लगीं, और इससे पहले कि वे अपने शरीरों से थोड़ी सी धूल भी झाड़ पातीं वे उत्सुकता से एक दूसरे का अभिनन्दन करते हुए यहाँ वहाँ मँडराने, सिर हिला हिलाकर संकेत देने और इस संसार पर मुस्कुराने लगीं थीं। उन्होंने सृष्टिकर्ता को उस जीवन के लिए धन्यवाद दिया जो उसने उन्हें दिया था, और संसार को यह घोषित किया कि वे भी इस संसार की सभी चीज़ों के एक भाग हैं, और उन में से प्रत्येक सृष्टिकर्ता के अधिकार को दर्शाने के लिए अपना जीवन समर्पित करेगा। जैसे ही परमेश्वर के वचन कहे गए, भूमि रसीली और हरीभरी हो गई, सब प्रकार के सागपात जिनका मनुष्यों के द्वारा आनन्द लिया जा सकता था अँकुरित हो गए, और भूमि को भेदकर बाहर निकले, और पर्वत और तराईयाँ वृक्षों एवं जंगलों से बहुतायत से भर गए.....। इस बंजर संसार में, जिसमें जीवन का कोई निशान नहीं था, शीघ्रता से घास, सागपात, और वृक्षों एवं उमड़ती हुई हरीयाली की बहुतायत से भर गए ......। घास की महक और मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू हवा में फैल गई, और सुसज्जित पौधों की कतारें हवा के चक्र के साथ एक साथ साँस लेने लगीं, और बढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उसी समय, परमेश्वर के वचन के कारण और परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करके, सभी पौधों ने अपनी सनातन जीवन यात्रा शुरू कर दी जिसमें वे बढ़ने, खिलने, फल उत्पन्न करने, और बहुगुणित होने लगे। वे अपने अपने जीवन पथों से कड़ाई से चिपके रहे, और सभी चीज़ों में अपनी अपनी भूमिकाओं को अदा करना शुरू कर दिया.....। वे सभी सृष्टिकर्ता के वचनों के कारण उत्पन्न हुए, और जीवन बिताया। वे सृष्टिकर्ता के कभी न खत्म होनेवाली भोजन सामग्री और पोषण को प्राप्त करेंगे, और परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ को दर्शाने के लिए भूमि के किसी भी कोने में दृढ़संकल्प के साथ ज़िन्दा रहेंगे, और वे हमेशा उस जीवन शक्ति को दर्शाते रहेंगे जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दिया गया है....।
सृष्टिकर्ता का जीवन असाधारण है, उसके विचार असाधारण हैं, और उसका अधिकार असाधारण है, और इस प्रकार, जब उसके वचन उच्चारित किए गए थे, तो उसका अन्तिम परिणाम था "और ऐसा हो गया।" स्पष्ट रूप से, जब परमेश्वर कार्य करता है तो उसे अपने हाथों से काम करने की आवश्यकता नहीं होती है; वह बस आज्ञा देने के लिए अपने विचारों का और आदेश देने के लिए अपने वचनों का उपयोग करता है, और इस रीति से कार्यों को पूरा किया जाता है। इस दिन, परमेश्वर ने जल को एक साथ एक जगह पर इक्ट्ठा किया, और सूखी भूमि दिखाई दी, उसके बाद परमेश्वर ने भूमि से घास को उगाया, और छोटे छोटे पौधे जो बीज उत्पन्न करते थे, और पेड़ जो फल उत्पन्न करते थे उग आए, और परमेश्वर ने प्रजाति के अनुसार उनका वर्गीकरण किया, और हर एक में उसका स्वयं का बीज दिया। यह सब कुछ परमेश्वर के विचारों और परमेश्वर के वचनों की आज्ञाओं के अनुसार वास्तविक हुआ है और इस नए संसार में हर चीज़ एक के बाद एक प्रगट होती है।
जब वह अपना काम शुरू करनेवाला था, परमेश्वर के पास पहले से ही एक तस्वीर थी जिसे वह अपने मस्तिष्क में पूर्ण करना चाहता था, और जब परमेश्वर ने इन चीज़ों को पूर्ण करना प्रारम्भ किया, ऐसा तब भी हुआ जब परमेश्वर ने इस तस्वीर की विषयवस्तु के बारे में बोलने के लिए अपना मुँह खोला था, तो परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ के कारण सभी चीज़ों में बदलाव होना प्रारम्भ हो गया था। इस पर ध्यान न देते हुए कि परमेश्वर ने इसे कैसे किया, या किस प्रकार अपने अधिकार का इस्तेमाल किया, सब कुछ कदम दर कदम परमेश्वर की योजना के अनुसार और परमेश्वर के वचन के कारण पूरा किया गया था, और परमेश्वर के वचनों और उसके अधिकार के कारण कदम दर कदम आकाश और पृथ्वी के बीच में परिवर्तन होने लगा था। ये सभी परिवर्तन और घटनाएँ परमेश्वर के अधिकार, और सृष्टिकर्ता के जीवन की असाधारणता और सामर्थ की महानता को दर्शाते हैं। उसके विचार सामान्य युक्तियाँ नहीं हैं, या खाली तस्वीर नहीं है, परन्तु अधिकार हैं जो जीवनशक्ति और असाधारण ऊर्जा से भरे हुए हैं, और वे ऐसी सामर्थ हैं जो सभी चीज़ों को परिवर्तित कर सकते हैं, पुनः सुधार कर सकते हैं, फिर से नया बना सकते हैं, और नष्ट कर सकते हैं। और इसकी वजह से, उसके विचारों के कारण सभी चीज़ें कार्य करती हैं, और, उसके मुँह के वचनों के कारण, उसी समय, पूर्ण होते हैं....।
सभी वस्तुओं के प्रकट होने से पहले, परमेश्वर के विचारों में एक सम्पूर्ण योजना बहुत पहले से ही बन चुकी थी, और एक नया संसार बहुत पहले ही आकार ले चुका था। यद्यपि तीसरे दिन भूमि पर हर प्रकार के पौधे प्रकट हुए, किन्तु परमेश्वर के पास इस संसार की सृष्टि के कदमों को रोकने का कोई कारण नहीं था; उसने लगातार अपने शब्दों को बोलना चाहा ताकि हर नई चीज़ की सृष्टि को निरन्तर पूरा कर सके। वह बोलेगा, और अपनी आज्ञाओं को देगा, और अपने अधिकार का इस्तेमाल करेगा और अपनी सामर्थ को दिखाएगा, और उसने सभी चीज़ों और मानवजाति के लिए वह सब कुछ बनाया जिन्हें बनाने की उसने योजना बनाई थी और उनकी सृष्टि करने की अभिलाषा की थी....।
"वचन देह में प्रकट होता है" 
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गुरुवार, 20 जून 2019

दूसरे दिन, परमेश्वर के अधिकार ने मनुष्य के जीवित रहने के लिए जल का प्रबन्ध किया, और आसमान, और अंतरीक्ष को बनाया

आओ हम बाइबल के दूसरे अंश को पढ़ें: फिर परमेश्वर ने कहा, "जल के बीच एक अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।" तब परमेश्वर ने एक अन्तर बनाकर उसके नीचे के जल को और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया।(उत्पत्ति 1:6-7)। कौन सा परिवर्तन हुआ जब परमेश्वर ने कहा " जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए?" पवित्र शास्त्र में कहा गया हैः "तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल को और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा हो गया।" जब परमेश्वर ने ऐसा कहा और ऐसा किया तो परिणाम क्या हुआ? इसका उत्तर अंश के आखिरी भाग में हैं: "और ऐसा हो गया।"
इन दोनों छोटे वाक्यों में एक शोभायमान घटना दर्ज है, और एक बेहतरीन दृश्य का चित्रण करता है - एक भयंकर प्रारम्भ जिसमें परमेश्वर ने जल को नियन्त्रित किया, और एक अन्तर को बनाया जिसमें मनुष्य अस्तित्व में रह सकता है....।
इस तस्वीर में, आकाश का जल परमेश्वर की आँखों के सामने एकदम से प्रगट होता है, और वे परमेश्वर के वचनों के अधिकार के द्वारा विभाजित हो जाते हैं, और परमेश्वर के द्वारा निर्धारित रीति के अनुसार ऊपर के और नीचे के जल के रूप में अलग हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के द्वारा बनाए गए आकाश ने न केवल नीचे के जल को ढँका बल्कि ऊपर के जल को भी सँभाला....। इस में, मनुष्य बस टकटकी लगाकर देखने, भौंचक्का होने, और उस दृश्य के वैभव की तारीफ में आह भरने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है, जिसमें सृष्टिकर्ता ने जल को रूपान्तरित किया, और अपने अधिकार की सामर्थ से जल को आज्ञा दी, और आकाश को बनाया। परमेश्वर के वचनों, और परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर के अधिकार के द्वारा परमेश्वर ने एक और महान आश्चर्यकर्म को अंजाम दिया। क्या यह सृष्टिकर्ता की सामर्थ नहीं है? आओ हम परमेश्वर के कामों का बखान करने के लिए पवित्र शास्त्र का उपयोग करें: परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, और परमेश्वर के इन वचनों के द्वारा जल के मध्य में आकाश बन गया। उसी समय, परमेश्वर के इन वचनों के द्वारा आकाश के अन्तर में एक भयंकर परिवर्तन हुआ, और यह सामान्य रूप से परिवर्तित नहीं हुआ, बल्कि एक प्रकार का प्रतिस्थापन था जिसमें कुछ नहीं से कुछ बन गया। यह सृष्टिकर्ता के विचारों से उत्पन्न हुआ था, और सृष्टिकर्ता के बोले गए वचनो के द्वारा कुछ नहीं से कुछ बन गया, और, इसके अतिरिक्त, इस बिन्दु से आगे यह अस्तित्व में रहेगा और स्थिर बना रहेगा, और सृष्टिकर्ता के विचारों के मेल के अनुसार, यह सृष्टिकर्ता के लिए बदल जाएगा, और परिवर्तित होगा, और नया हो जाएगा। यह अंश सम्पूर्ण संसार की सृष्टि में सृष्टिकर्ता के दूसरे कार्य का उल्लेख करता है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ का एक और प्रदर्शन था, और सृष्टिकर्ता के एक और पहले कदम की शुरूआत थी। यह दिन जगत की नींव डालने के समय से लेकर दूसरा दिन था जिसे सृष्टिकर्ता ने बिताया था, और वह उसके लिए एक और बेहतरीन दिन थाः वह उजियाले के बीच में चला, आकाश को लाया, उसने जल का प्रबन्ध किया, और उसके कार्य, उसका अधिकार, और उसकी सामर्थ उस नए दिन में काम करने के लिए एक हो गए थे.....।
परमेश्वर के द्वारा इन वचनों को कहने से पहले क्या आकाश जल के मध्य में था? बिलकुल नहीं! और परमेश्वर के ऐसा कहने के बाद क्या हुआ "फिर परमेश्वर ने कहा कि जल के बीच में एक ऐसा अन्तर हो?" परमेश्वर के द्वारा इच्छित चीज़ें प्रगट हो गई थीं; जल के मध्य में आकाश था, और जल विभाजित हो गया क्योंकि परमेश्वर ने कहा था "कि जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो जाए कि जल दो भाग हो जाए।" इस तरह से, परमेश्वर के वचनों का अनुसरण करके, परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ के परिणामस्वरूप दो नए पदार्थ, नई जन्मीं दो चीज़ें सब वस्तुओं के मध्य प्रगट हुईं। और इन दो नई चीज़ों के प्रकटीकरण से तुम लोग कैसा महसूस करते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता की सामर्थ की महानता का एहसास करते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता के अद्वितीय और असाधारण बल का एहसास करते हो? ऐसे बल और सामर्थ की महानता परमेश्वर के अधिकार के कारण है, और यह अधिकार स्वयं परमेश्वर का प्रदर्शन है और स्वयं परमेश्वर का एक अद्वितीय गुण है।
क्या यह अंश तुम लोगों को परमेश्वर की अद्वितीयता का एक और गहरा एहसास देता है? परन्तु यह पर्याप्तता से कहीं बढ़कर है; सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ इससे कहीं दूर तक जाता है। उसकी अद्वितीयता मात्र इसलिए नहीं है क्योंकि वह किसी अन्य जीव से अलग हस्ती धारण किए हुए है, परन्तु क्योंकि उसका अधिकार और सामर्थ असाधारण है, साथ ही असीमित, सबसे बढ़कर, और चमत्कार करने वाला है, और, उससे भी बढ़कर, उसका अधिकार और जो उसके पास है और उसका अस्तित्व जीवन की सृष्टि कर सकता है और चमत्कारों को बना सकता है, और वह प्रत्येक और हर एक कौतुहलपूर्ण और असाधारण मिनट और सैकण्ड की सृष्टि कर सकता है, और उसी समय में, वह उस जीवन पर शासन करने में सक्षम है जिसकी वह सृष्टि करता है, और चमत्कारों और हर मिनट और सैकण्ड जिसे उसने बनाया उसके ऊपर संप्रभुता रखता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
और पढ़ें:प्रार्थना क्या है - प्रार्थना का महत्व जानें - सीखें कि प्रार्थना कैसे करें

मंगलवार, 18 जून 2019

परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

परमेश्वर के छह हज़ार साल की प्रबंधन योजना का अंत आ रहा है, और उसके राज्य का द्वार उन सभी के लिए खोल दिया गया है, जो परमेश्वर के प्रकट होने की खोज कर रहे हैं। प्रिय भाइयों और बहनों, तुम लोग किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हो? ऐसा क्या है जिसकी तुम लोग खोज कर रहे हो? क्या तुम लोग परमेश्वर के प्रकट होने का इंतजार कर रहे हो? क्या तुम लोग परमेश्वर के पदचिन्हों की खोज कर रहे हो? परमेश्वर का प्रकट होना कितना इच्छित है! और परमेश्वर के पदचिन्हों को खोजना कितना मुश्किल है! एक ऐसे युग में, एक ऐसे संसार में, हमें परमेश्वर के प्रकट होने के दिन का गवाह बनने के लिए क्या करना चाहिए? हमें परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण करने के लिए क्या करना चाहिए? इस तरह के प्रश्नों का सामना वे सभी करते हैं जो परमेश्वर के प्रकट होने का इंतजार करते हैं। तुम लोगों ने उन सभी पर एक से अधिक अवसर पर विचार किया है — लेकिन किस परिणाम के साथ? परमेश्वर कहाँ प्रकट होता है? परमेश्वर के पदचिन्ह कहाँ हैं? क्या तुम लोगों को उत्तर मिला है? कई लोगों का उत्तर यह होगाः परमेश्वर उनके बीच में प्रकट होता है जो उसका अनुसरण करते हैं और उसके पदचिन्ह हमारे बीच में हैं; यह इतना आसान है! कोई भी व्यक्ति एक सूत्रबद्ध उत्तर दे सकता है, लेकिन क्या तुम लोग परमेश्वर के प्रकटीकरण को, और परमेश्वर के पदचिन्ह को समझते हो? परमेश्वर का प्रकट होना पृथ्वी पर कार्य करने के लिए उसके व्यक्तिगत आगमन को दर्शाता है। उसकी स्वयं की पहचान और स्वभाव के साथ, और उसकी निहित विधि में, वह एक युग की शुरुआत और एक युग के समाप्त होने के कार्य का संचालन करने के लिए मनुष्यों के बीच में उतरता है। इस प्रकार का प्रकट होना किसी समारोह का रूप नहीं है। यह एक संकेत नहीं है, एक चित्र, एक चमत्कार, या एक भव्यदर्शन नहीं है, और उससे भी कम यह एक धार्मिक प्रक्रिया भी नहीं है। यह एक असली और वास्तविक तथ्य है जिसको छुआ और देखा जा सकता है। इस तरह का प्रकट होना किसी प्रक्रिया का अनुसरण करने के लिए नहीं है, और न ही एक अल्पकालिक उपक्रम के लिए; बल्कि यह, उसकी प्रबंधन योजना में कार्य करने के स्तर के लिए है। परमेश्वर का प्रकट होना हमेशा अर्थपूर्ण होता है, और हमेशा उसकी प्रबंधन योजना से जुड़ा होता है। यह प्रकटीकरण परमेश्वर के मार्गदर्शन, नेतृत्व, और मनुष्य के ज्ञान के प्रकाशन से पूरी तरह से अलग है। परमेश्वर हर बार प्रकट होने पर कार्य के एक बड़े स्तर को क्रियान्वित करता है। यह कार्य किसी भी अन्य युग से अलग है। यह मनुष्य के लिए अकल्पनीय है, और इसे कभी भी मनुष्य ने अनुभव नहीं किया। यह वह कार्य है जो एक नए युग को शुरू करता है और पुराने युग का अंत करता है, और यह मानव जाति के उद्धार के लिए कार्य का एक नया और बेहतर रूप है; इसके अलावा, यह मानव जाति को नए युग में लाने का कार्य है। वह परमेश्वर के प्रकट होने का महत्व है।
परमेश्वर के प्रकट होने को समझने के समय पर, तुम लोगों को परमेश्वर के पदचिन्हों को कैसे ढूंढना चाहिए? इस प्रश्न की व्याख्या करना कठिन नहीं हैः जहाँ कहीं परमेश्वर का प्रकटन है, वहां तुम्हें परमेश्वर के पदचिन्ह मिलेंगे। इस तरह की व्याख्या बहुत सीधी लगती है, लेकिन करने के लिए बहुत आसान नहीं है, क्योंकि कई लोगों को नहीं पता कि परमेश्वर अपने आप को कहाँ प्रकट करता है, उससे भी कम कि कहाँ वह स्वयं प्रकट होना चाहता है या, उसे प्रकट होना चाहिए। कुछ आवेगशीलता से विश्वास करते हैं कि जहां पवित्र आत्मा का कार्य है, वहीं परमेश्वर का प्रकटन है। अन्यथा उनका यह मानना है कि जहां आध्यात्मिक मूर्तियां हैं, वहीं परमेश्वर का प्रकटन है। अन्यथा उनका यह मानना है कि जहां लोगों को अच्छी पहचान है, वहाँ परमेश्वर का प्रकट होना है। अभी के लिए, हम विचार विमर्श नहीं करते हैं कि ये मान्यताएं सही हैं या गलत हैं। इस तरह के प्रश्न की व्याख्या करने के लिए, हमारा पहले एक उद्देश्य के विषय में स्पष्ट होना अनिवार्य हैः हम परमेश्वर के पदचिन्हों को खोज रहे हैं। हम आध्यात्मिक व्यक्तियों को नहीं खोज रहे हैं, प्रसिद्ध मूर्तियों का अनुसरण तो बिल्कुल नहीं कर रहे हैं; हम परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण कर रहे हैं। वैसे, चूँकि हम परमेश्वर के पदचिन्हों को खोज रहे हैं, हमें अवश्य ही परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के कथन की खोज करनी चाहिए; क्योंकि जहां परमेश्वर के नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहां परमेश्वर के पदचिन्ह हैं, वहाँ परमेश्वर के कार्य हैं। जहां परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर का प्रकट होना है, और जहां परमेश्वर का प्रकट होना है, वहाँ मार्ग, सत्य और जीवन का अस्तित्व है। परमेश्वर के पदचिन्हों को ढूँढते हुए, तुम लोगों ने उन शब्दों की अवहेलना कर दी कि "परमेश्वर ही मार्ग, सत्य और जीवन है।" इसलिए कई लोग जब सत्य प्राप्त करते हैं, वे विश्वास नहीं करते कि वे परमेश्वर के पदचिन्हों को पा चुके हैं और बहुत कम परमेश्वर के प्रकट होने को स्वीकार करते हैं। कितनी गंभीर त्रुटि है यह! परमेश्वर के प्रकट होने का मनुष्य की धारणाओं के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है, परमेश्वर का मनुष्य के आदेश पर दिखाई देना उस से भी कम संभव है। जब परमेश्वर अपना कार्य करता है तो वह अपने स्वयं के चुनाव करता है और अपनी स्वयं की योजनाएं बनाता है; इसके अलावा, उसके पास अपने ही उद्देश्य हैं, और अपने ही तरीके हैं। जो कार्य वह करता है उसे उस पर मनुष्य के साथ चर्चा करने की या मनुष्य की सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और ना ही उसे अपने कार्य की हर एक व्यक्ति को सूचना देने की आवश्यकता है। यह परमेश्वर का स्वभाव है और, इससे बढ़कर, हर किसी को यह पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकट होने को देखने की चाहत रखते हो, यदि तुम लोग परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण करने के इच्छुक हो, तो फिर तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं से ऊँचा उठना आवश्यक है। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर यह कार्य करे या वह करे, उससे भी कम तुझे उसे अपनी स्वयं की सीमा में रखना चाहिए और उसे अपनी स्वयं की धारणाओं में सीमित करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को उससे यह पूछना चाहिए कि कैसे तुम लोग परमेश्वर के पदचिन्हों को खोज सकते हो, तुम लोगों को परमेश्वर के प्रकट होने को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और कैसे तुम लोगो को परमेश्वर के नए कार्य के लिए समर्पण करना चाहिए; मनुष्य को यही कार्य करना चाहिए। चूँकिमनुष्य सत्य नहीं है, और न ही सत्य के अधीन है, इसलिए मनुष्य को खोज करनी, स्वीकार करना, और पालन करना चाहिए।
चाहे तू अमेरिकी, ब्रिटिश, या किसी भी अन्य राष्ट्रीयता का हो, तुझे अपने स्वयं के दायरे से बाहर आना चाहिए, तुझे स्वयं को पार करना चाहिए, और परमेश्वर की एक सृष्टि के रूप में परमेश्वर के कार्य को देखना चाहिए। इस तरीके से, तू परमेश्वर के पदचिन्हों पर रुकावट नहीं डाल पाएगा। क्योंकि, आज, कई लोग परमेश्वर के एक निश्चित देश या राष्ट्र में प्रकट होने को असंभव समझते हैं। परमेश्वर के कार्य का कितना गहरा महत्व है, और परमेश्वर का प्रकट होना कितना महत्वपूर्ण है! उन्हें कैसे मनुष्य की धारणाओं और सोच से मापा जा सकता है? और इसलिए मैं कहता हूँ, जब तू परमेश्वर के प्रकट होने को खोजता है तब तुझे अपनी राष्ट्रीयता या जातीयता की धारणाओं को तोड़ देना चाहिए। इस तरह, तू अपने स्वयं की धारणाओं से विवश नहीं हो पाएगा; इस तरह, तू परमेश्वर के प्रकट होने का स्वागत करने में सक्षम हो पाएगा। अन्यथा, तू हमेशा अन्धकार में रहेगा, और परमेश्वर की मंजूरी कभी हासिल नहीं कर पाएगा।
परमेश्वर सभी मानव जाति का परमेश्वर है। वह अपने आप को किसी भी देश या राष्ट्र की निजी संपत्ति नहीं बनाता है, और वह किसी भी रूप, देश, या राष्ट्र द्वारा बाधित हुए बिना अपनी योजना का कार्य करता है। शायद तूने इस रूप की कभी कल्पना भी नहीं की होगी, या शायद तू इसके अस्तित्व का इनकार करता है, या शायद उस देश या राष्ट्र के साथ, जिसमें परमेश्वर प्रकट होता है, भेदभाव किया जाता है और पृथ्वी पर सबसे कम विकसित माना जाता है। फिर भी परमेश्वर के पास उसकी बुद्धि है। उसकी शक्ति के द्वारा और उसकी सत्यता और स्वभाव के माध्यम से उसे ऐसे लोगों का समूह मिल गया है जो उसके साथ एक विचार के हैं। और उसे ऐसे लोगों का समूह मिल गया है जैसा वह बनाना चाहता थाः उसके द्वारा जीता गया एक समूह, जो अति पीड़ादायक दुख और सब प्रकार के अत्याचार को सह लेता है और अंत तक उसका अनुसरण कर सकता है। किसी भी रूप में या देश की बाधाओं से मुक्त हो कर परमेश्वर के प्रकट होने का उद्देश्य उसे उसकी योजना का कार्य पूरा करने में सक्षम होने के लिए है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर यहूदिया में देहधारी हुआ, उसका लक्ष्य सूली पर चढ़ाये जाने के कार्य को पूरा करने के द्वारा सारी मानव जाति को पाप से मुक्त करना था। फिर भी यहूदियों का मानना था कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना असंभव था, और उन्होंने सोचा कि परमेश्वर के लिए देहधारी होना और प्रभु यीशु के रूप में होना असंभव है। उनका "असंभव" एक ऐसा आधार बन गया जिसके द्वारा उन्होंने परमेश्वर को अपराधी ठहराया और विरोध किया, और अंत में इस्राएल को विनाश की ओर ले गए। आज, कई लोगों ने उसी प्रकार की गलती की है। वे परमेश्वर के किसी भी क्षण आ जाने का प्रचार बहुत हल्के रूप में करते हैं, साथ ही वे उसके प्रकट होने को गलत भी ठहराते हैं; उनका "असंभव" एक बार फिर परमेश्वर के प्रकट होने को उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर सीमित करता है। और इसलिये मैंने कई लोगों को परमेश्वर के शब्दों को सुनने के बाद उन पर हँसने की गलती करते हुए देखा है। क्या यह हँसी यहूदियों द्वारा अपराधी ठहराने और निन्दा करने से अलग है? तुम लोग सच का सामना करने में गम्भीर नहीं हो, उससे भी कम सच के लिए इच्छा और भी कम रखते हो। तुम लोग केवल आँख बंद करके अध्ययन करते हो और उदासीनता पूर्वक प्रतीक्षा करते हो। तुम लोग इस तरह पढ़कर और प्रतीक्षा करके क्या प्राप्त कर सकते हो? क्या तुम लोग परमेश्वर का व्यक्तिगत मार्गदर्शन पा सकते हो? यदि तू परमेश्वर के कथनों को ही नहीं पहचान सकता है, तो तू परमेश्वर के प्रकट होने को देखने के योग्य कैसे हो सकता है? जहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य की अभिव्यक्ति है, और वहाँ परमेश्वर की वाणी है। केवल वे ही लोग, जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं, और केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के प्रकट होने को देखने के योग्य हैं। अपनी धारणाओं को एक तरफ रख दो! रुको और ध्यान से इन शब्दों को पढ़ो। यदि तू सच के लिए तीव्र इच्छा रखता है, तो परमेश्वर तुझे उसकी इच्छा और शब्दों को समझने के लिए प्रकाशमान करेगा। अपने "असंभव" के विचार को एक तरफ रखो! जितना अधिक लोग यह मानते हैं कि कुछ असंभव है, उतना ही अधिक उसके घटित होने की संभावना है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से भी ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों की तुलना में ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमा से कहीं ऊँचा होता है। जितना अधिक कुछ असंभव है, उतना अधिक वहाँ सच्चाई को खोजने की आवश्यकता है; जितना अधिक वह मनुष्य की धारणा और कल्पना से परे है, उतना ही अधिक उस में परमेश्वर की इच्छा समाहित होती है। क्योंकि परमेश्वर स्वयं को चाहे जहां भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसके स्थान और उसके प्रकट होने के तरीकों के कारण उसका तत्व कभी नहीं बदलेगा। उसके पदचिन्ह चाहे कहीं भी क्यों न हों परमेश्वर का स्वभाव एक जैसा बना रहता है। चाहे जहां कहीं भी परमेश्वर के पदचिन्ह क्यों न हों, वह सभी मानव जाति का परमेश्वर है। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि एशिया, यूरोप और अमेरिका में सभी लोगों का परमेश्वर है, और यहां तक कि पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ वो ही परमेश्वर है। इसलिए, हम परमेश्वर के कथनों से परमेश्वर की इच्छा की और उसके प्रकट होने की खोज करें और उसके पदचिन्हों का अनुसरण करें! परमेश्वर ही मार्ग, सत्य और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकट होना समवर्ती है, और उसका स्वभाव और पदचिन्ह हमेशा मानव जाति के लिए उपलब्ध रहेंगे। प्रिय भाइयों और बहनों, मुझे आशा है कि तुम लोग इन शब्दों में परमेश्वर के प्रकट होने को देख सकते हो, और तुम लोग उसके पदचिन्हों का अनुसरण करना शुरू कर दोगे, एक नए युग की ओर और एक सुंदर नए आकाश और नई पृथ्वी में प्रवेश कर सकोगे जो परमेश्वर के प्रकट होने की प्रतीक्षा करनेवालों के लिए तैयार किए गए हैं।

गुरुवार, 6 जून 2019

मसीह जो अभिव्यक्त करता है वो आत्मा है




  • I
  • मानव का सार जानता है देहधारी परमेश्वर,
  • प्रकट करता है वो सब जो लोग करते हैं,
  • मानव के भ्रष्ट स्वभाव, विद्रोही आचरण को,
  • और भी बेहतर प्रकट करता है।
  • वो नहीं रहता सांसारिक लोगों के साथ,
  • पर जानता है उनकी प्रकृति और भ्रष्टाचार।
  • ये उसका स्वरूप है।
  • हालांकि वो दुनिया के साथ व्यवहार नहीं करता,
  • फिर भी वो जानता है दुनिया से जुड़ने का हर एक नियम।
  • क्योंकि वो समझता है मानवजाति को,
  • उसकी प्रकृति को पूर्ण रूप से।
  • II
  • आत्मा के वर्तमान और अतीत के
  • कार्य के बारे में वो जानता है,
  • जो मानव की आँखें नहीं देख सकतीं,
  • जो मानव के कान नहीं सुन सकते हैं।
  • ये दर्शाता है चमत्कार जो मानव नहीं समझ सकता,
  • और बुद्धि जो फ़लसफ़ा नहीं है।
  • ये उसका स्वरूप है,
  • मानव से छुपा और प्रकाशित भी।
  • उसकी अभिव्यक्ति किसी असाधारण मानव सी नहीं,
  • बल्कि अंतर्निहित अस्तित्व
  • और आत्मा का गुण है।
  • III
  • वो दुनिया की यात्रा नहीं करता,
  • फिर भी इसके बारे में वो सब जानता है।
  • वो मिलता उनसे ज्ञान, अंतर्दृष्टि नहीं जिनमें,
  • फिर भी उसके वचन महान लोगों से ऊपर हैं।
  • वो नासमझ और सुन्न लोगों के बीच रहता है,
  • जो नहीं जानते मानव की परम्पराओं को या कैसे जीते हैं।
  • पर वो कह सकता है उन्हें सच्चा मानवीय जीवन जीने के लिए,
  • प्रकट करते हुए, वे कितने नीच, कितने अधम हैं!
  • ये उसका स्वरूप है,
  • ख़ून और देह के लोगों से भी ऊँचा।
  • मानव का ख़ुलासा और न्याय करना उसके अनुभव से नहीं है।
  • जान कर, नफ़रत कर मानव की अवज्ञा से,
  • उनके अधर्म का वो प्रकाशन करता है।
  • उसका किया कार्य प्रकाशित करता है
  • उसका स्वभाव और अस्तित्व मानव के समक्ष।
  • मसीह को छोड़ कोई देह ऐसा कार्य नहीं कर सकता।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

गुरुवार, 23 मई 2019

परमेश्वर का संदेश परमेश्वर का संदेश



  • I
  • अतीत है बीत चुका, तुम्हें न चाहिए इससे चिपकना।
  • कल तुम अपनी आस्था में अटल थे।
  • अब परमेश्वर को अपनी निष्ठा दो।
  • ये वो है जो तुम्हें जानना चाहिए।
  • हालांकि ईश्वर दिखता नहीं,
  • परमेश्वर का आत्मा तुम सब को अनुग्रह प्रदान करेगा।
  • ईश्वर उम्मीद करता है कि तुम उसकी आशीषों को संजो के रखोगे,
  • और उनका उपयोग करोगे खुद को जानने में।
  • उन्हें अपनी पूंजी की तरह न मानो।
  • ईश्वर के वचनों से अपनी कमी को पूरा करो।
  • इससे प्राप्त करो सकारात्मक चीज़ों को।
  • और ये है वो संदेश जो ईश्वर देता है वसीयत में।
  • II
  • कल तुम सब को उसके लिए अच्छी गवाही देनी चाहिए।
  • भविष्य में तुम सब आशीषित होगे।
  • तुम विरासत में पाओगे आशीष।
  • ये वो है जो तुम्हें जानना चाहिए।
  • हालांकि ईश्वर दिखता नहीं,
  • परमेश्वर का आत्मा तुम सब को अनुग्रह प्रदान करेगा।
  • ईश्वर उम्मीद करता है कि तुम उसकी आशीषों को संजो के रखोगे,
  • और उनका उपयोग करोगे खुद को जानने में।
  • उन्हें अपनी पूंजी की तरह न मानो।
  • ईश्वर के वचनों से अपनी कमी को पूरा करो।
  • इससे प्राप्त करो सकारात्मक चीज़ों को।
  • ये है वो संदेश जो ईश्वर देता है वसीयत में।
  • ये है वो संदेश जो ईश्वर देता है वसीयत में।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से
रोत:परमेश्वर के वचन के भजन


      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

सोमवार, 20 मई 2019

परमेश्वर का देहधारण विशेष रूप से उसके वचन को व्यक्त करने के लिए है



  • I
  • आज, मानव को व्यावहारिक परमेश्वर और
  • देहधारण के अर्थ का ज्ञान कम है।
  • जब बात हो ईश्वर के देह की, उसके कार्य और वचनों के द्वारा
  • लोग देखते हैं कि ईश्वर का आत्मा सम्पन्न और प्रशस्त है।
  • पवित्रात्मा के देहधारण का वास्तविक अर्थ है कि
  • परमेश्वर के साथ मानव जुड़ सकता है,
  • उस पर आश्रित हो सकता है और ज्ञान प्राप्त कर सकता है ईश्वर का,
  • ईश्वर का।
  • II
  • आज तुम करते हो इस व्यक्ति की आराधना,
  • पर दरअसल तुम ईश्वर के आत्मा की आराधना कर रहे हो।
  • ये वो न्यूनतम है जिसका पता लोगों को
  • देहधारी ईश्वर के बारे में होना चाहिए,
  • देह के माध्यम से पवित्रात्मा के तत्व को जानना,
  • देह में किए गये उसके दिव्य और मानवीय कार्य को जानना,
  • पवित्रात्मा के वचनों को स्वीकारना, और देखना कैसे पवित्रात्मा
  • देह को निर्देशित करता है, देह में अपनी सामर्थ्य दर्शाता है।
  • पवित्रात्मा के देहधारण का वास्तविक अर्थ है कि
  • परमेश्वर के साथ मानव जुड़ सकता है,
  • उस पर आश्रित हो सकता है और ज्ञान प्राप्त कर सकता है ईश्वर का,
  • ईश्वर का।
  • III
  • ईश्वर आया स्वर्ग से धरती पर ईश्वर के वचनों को देह द्वारा
  • व्यक्त करने, पूर्ण करने को पवित्रात्मा का कार्य।
  • देह द्वारा मानव जान पाता है पवित्रात्मा को,
  • ईश्वर का प्रकटन मानव के बीच,
  • अज्ञात ईश्वर को उनके विचार से हटाता है।
  • व्यावहारिक परमेश्वर की आराधना करने लोग लौटते हैं,
  • ईश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता को बढ़ा कर।
  • और उसके दिव्य और मानवीय कार्य से,
  • मानव पाता है पालन-पोषण, प्रकाशन और स्वभाव में बदलाव।
  • पवित्रात्मा के देहधारण का वास्तविक अर्थ है कि
  • परमेश्वर के साथ मानव जुड़ सकता है,
  • उस पर आश्रित हो सकता है और ज्ञान प्राप्त कर सकता है ईश्वर का,
  • ईश्वर का।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं। (उत्पत्ति 19...