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सोमवार, 5 अगस्त 2019

अब्राम को परमेश्वर का आशीष

(उत्पत्ति 22:16-18) "यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।"
यह परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को दी हुई आशीषों का बिना कांट-छांट किया हुआ लेख है। यह हालाँकि संक्षेप में है, फिर भी इसकी विषय-वस्तु समृद्ध हैः यह परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को दी हुई भेंट के कारण को और उसकी पृष्ठभूमि को, और वह क्या था जो उसने अब्राहम को दिया था उसे सम्मिलित करता है। यह आनन्द एवं उत्साह से तर-बतर है जिसके तहत परमेश्वर ने इन वचनों को कहा, साथ ही साथ यह उन लोगों को हासिल करने के लिए उसकी लालसा की शीघ्रता से भी तर-बतर है जो उसके वचनों को ध्यान से सुनने के योग्य हैं। इस में, हम उन लोगों के प्रति परमेश्वर के लालन पालन एवं कोमलता देखते हैं जो उसके वचनों का पालन करते हैं और उसकी आज्ञाओं का अनुसरण करते हैं। और साथ ही हम उस कीमत को भी देखते हैं जिसे उसने लोगों को हासिल करने के लिए चुकाया है, और उस देखभाल एवं विचार को देखते हैं जो उसने इन लोगों को हासिल करने में लगाया है। इसके अतिरिक्त, वह अंश, जिसमें ये वचन "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ," है यह हमें परमेश्वर, और सिर्फ परमेश्वर के द्वारा सहे गए उस कड़वाहट एवं दर्द का, और पर्दों के पीछे उसकी प्रबन्धकीय योजना का सामर्थी एहसास कराती है। यह विचारों को उद्वेलित करने वाला एक अंश है, और एक ऐसा अंश है जो उनके लिए विशेष महत्व रखता है, और उन पर दूरगामी प्रभाव डालता है जो बाद में आए थे।
मनुष्य अपनी ईमानदारी और आज्ञाकारिता की वजह से परमेश्वर की आशीषों प्राप्त करता है

क्या परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को दी गई आशीष महान थी जिसके विषय में हम यहाँ पढ़ते हैं? यह कितनी महान थी? यहाँ पर एक मुख्य वाक्य हैः "और पृथ्वी की सारी जातियाँ तेरे वंश के कारण अपने को धन्य मानेंगी," जो यह दिखाता है कि अब्राहम ने ऐसी आशीषों को प्राप्त किया था जिन्हें किसी और को नहीं दिया गया जो पहले आए थे या बाद में। चूँकि परमेश्वर के द्वारा माँगा गया था, इसलिए जब अब्राहम ने अपने पुत्र—अपने एकलौते प्रिय पुत्र—को परमेश्वर को लौटा दिया (टिप्पणी: यहाँ पर हम "बलिदान" शब्द का प्रयोग नहीं कर सकते हैं; हमें यह कहना चाहिए कि उसने अपने पुत्र को परमेश्वर को वापस किया), तब परमेश्वर ने न केवल अब्राहम को इसहाक का बलिदान करने की अनुमति नहीं दी, बल्कि उसने उसे आशीषित भी किया। उसने अब्राहम को किस प्रतिज्ञा से आशीषित किया था? उसके वंश को बहुगुणित करने की प्रतिज्ञा से आशीषित किया था। और उन्हें कितनी मात्रा में बहुगुणित करने की प्रतिज्ञा की गई थी? बाइबल हमें निम्नलिखित लेख प्रदान करती है: "आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: और पृथ्वी की सारी जातियाँ तेरे वंश के कारण अपने को धन्य मानेंगी।" वह सन्दर्भ क्या था जिसके अंतर्गत परमेश्वर ने इन वचनों को कहा था? कहने का तात्पर्य है, अब्राहम ने परमेश्वर की आशीषों को कैसे प्राप्त किया था? उसने उन्हें प्राप्त किया ठीक वैसे ही जैसे परमेश्वर पवित्र शास्त्र में कहता है: "क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।" अर्थात्, क्योंकि अब्राहम ने परमेश्वर की आज्ञा का अनुसरण किया था, क्योंकि उसने वह सब कुछ किया जो परमेश्वर ने कहा, मांगा और आदेश दिया था, जरा सी भी शिकायत के बगैर इस लिए परमेश्वर ने उस से ऐसी प्रतिज्ञा की थी। इस प्रतिज्ञा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण वाक्य है जो उस समय परमेश्वर के विचारों को स्पर्श करता है। क्या तुम लोगों ने इसे देखा है? शायद तुम लोगों ने परमेश्वर के इन वचनों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया है कि "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ।" उनका मतलब है कि, जब परमेश्वर ने इन वचनों को कहा, तब वह अपनी ही शपथ खा रहा था। जब लोग कसम खाते हैं तो वे किसकी शपथ खाते हैं? वे स्वर्ग की शपथ खाते हैं, कहने का अभिप्राय है, वे ख़ुदा के लिए कसम खाते हैं और परमेश्वर की शपथ खाते हैं। हो सकता है कि लोगों के पास उस घटना की ज़्यादा समझ नहीं है जिसके द्वारा परमेश्वर ने अपनी ही शपथ खाई थी, परन्तु तुम लोग इस बात को समझने के योग्य होगे जब मैं तुम लोगों को सही व्याख्या प्रदान करूंगा। ऐसे मनुष्य से सामना होने पर जो सिर्फ उसके वचनों को सुन सकता है लेकिन उसके हदय को नहीं समझ सकता है उसने एक बार फिर से परमेश्वर को अकेला और खोया हुआ महसूस कराया। निराशा में—और, ऐसा कहा जा सकता है, अवचेतन रूप से—परमेश्वर ने कुछ ऐसा किया जो बहुत ही स्वाभाविक था: परमेश्वर ने अपना हाथ अपने हृदय पर रखा और अब्राहम से स्वयं ही प्रतिज्ञा के फल के विषय में कहा, और इससे मनुष्य ने परमेश्वर को यह कहते हुए सुना "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ।" परमेश्वर के कार्यां के माध्यम से, तू स्वयं के विषय में सोच सकता है। जब तू अपना हाथ अपने हृदय पर रखता है और स्वयं से कहता है, तो क्या तेरे पास जो कुछ तू कह रहा है उसके विषय में कोई स्पष्ट विचार होता है? क्या तेरी मनोवृत्ति सच्ची है? क्या तू सच्चाई से, और अपने हृदय से बात करता है? इस प्रकार, हम यहाँ देखते हैं कि जब परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, तब वह सच्चा एवं ईमानदार था। उसी समय अब्राहम से बात करते और उसे आशीष देते समय, परमेश्वर स्वयं से भी बोल रहा था। वह अपने आप से कह रहा थाः मैं अब्राहम को आशीष दूंगा, और उसके वंश को आकाश के तारों के समान अनगिनित करूंगा, और समुद्र के किनारे की रेत के समान असंख्य कर दूंगा, क्योंकि उसने मेरे वचनों को माना है और यह वही है जिसे मैंने चुना है। जब परमेश्वर ने कहा "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ," तो परमेश्वर ने दृढ़ निश्चय किया कि वह अब्राहम में इस्राएल के चुने हुए लोगों को उत्पन्न करेगा, जिसके बाद वह शीघ्रता से अपने कार्य के साथ इन लोगों की अगुवाई करेगा। अर्थात्, परमेश्वर अब्राहम के वंशजों से परमेश्वर के प्रबन्धन के कार्य का बोझ उठवाएगा, और परमेश्वर का कार्य और वह जिसे परमेश्वर के द्वारा व्यक्त किया गया था वे अब्राहम के साथ प्रारम्भ होंगे, और वे अब्राहम की सन्तानों में निरन्तर आगे बढेंगे, इस प्रकार वे मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर की इच्छा को साकार करेंगे। तुम लोग क्या कहते हो, क्या यह एक आशीषित बात नहीं है? मनुष्य के लिए, इससे बड़ी और कोई आशीष नहीं है; ऐसा कहा जा सकता है कि यह अत्यंत ही आशीषित बात है। अब्राहम के द्वारा हासिल की गई आशीष उसके वंश के बहुगुणित होने के लिए नहीं थी, परन्तु अब्राहम के वंशजों में उसके प्रबंधन, उसके आदेश, और उसके कार्य की उपलब्धि के लिए थी। इसका अर्थ है कि अब्राहम के द्वारा हासिल की गई आशीषें अस्थायी नहीं थीं, परन्तु लगातार जारी रहीं जैसे परमेश्वर की प्रबंधकीय योजना बढ़ती गई। जब परमेश्वर ने कहा, और जब परमेश्वर ने अपनी ही शपथ खाई, तब उसने पहले ही एक दृढ़ निश्चय कर लिया था। क्या इस दृढ़ निश्चय की प्रक्रिया सही थी? क्या यह वास्तविक थी? परमेश्वर ने दृढ़ निश्चय किया था कि, उस समय के बाद से, उसकी कोशिशें, वह कीमत जो उसने चुकाई थी, उसका स्वरूप, उसकी हर चीज़, और यहाँ तक कि उसका जीवन भी अब्राहम को और अब्राहम के वंशजों को दे दिया जाएगा। परमेश्वर ने यह भी दृढ़ निश्चय किया कि, इस समूह के लोगों से प्रारम्भ करके, वह अपने कार्यों को प्रदर्शित करेगा, और मनुष्य को अनुमति देगा कि वह उसकी बुद्धि, अधिकार और सामर्थ को देखे।
ऐसे लोग जो परमेश्वर को जानते हैं और जो उसकी गवाही देने के योग्य हैं उन्हें हासिल करना परमेश्वर की अपरिवर्तनीय इच्छा है
जब वह स्वयं से कह रहा था ठीक उसी समय, परमेश्वर ने अब्राहम से भी कहा था, परन्तु उन आशीषों को सुनने के अलावा जिन्हें परमेश्वर ने उसे दिया था, क्या उस समय अब्राहम परमेश्वर के सभी वचनों में उसकी वास्तविक इच्छाओं को समझने में सक्षम था? वह नहीं था! और इस प्रकार, उस समय, जब परमेश्वर ने अपनी ही शपथ खाई, तब भी उसका हृदय सूना सूना और दुख से भरा हुआ था। वहाँ पर अब भी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो यह समझने या बूझने के योग्य हो कि उसने क्या इरादा किया था एवं क्या योजना बनाई थी। उस समय, कोई भी व्यक्ति—जिसमें अब्राहम भी शामिल है—परमेश्वर से आत्मविश्वास से बात करने के योग्य नहीं था, और कोई भी उस कार्य को करने में उसके साथ सहयोग करने के योग्य तो बिलकुल भी नहीं था जिसे उसे अवश्य करना था। सतही तौर पर देखें, तो परमेश्वर ने अब्राहम को हासिल किया, और ऐसे व्यक्ति को हासिल किया था जो उसके वचनों का पालन कर सकता था। परन्तु वास्तव में, परमेश्वर के विषय में इस व्यक्ति का ज्ञान बमुश्किल शून्य से अधिक था। भले ही परमेश्वर ने अब्राहम को आशीषित किया था, फिर भी परमेश्वर का हृदय अभी भी संतुष्ट नहीं था। इसका क्या अर्थ है कि परमेश्वर संतुष्ट नहीं था? इसका अर्थ है कि उसका प्रबंधन बस अभी प्रारम्भ ही हुआ था, इसका अर्थ है कि ऐसे लोग जिन्हें वह हासिल करना चाहता था, ऐसे लोग जिन्हें वह देखने की लालसा करता था, ऐसे लोग जिन्हें उसने प्रेम किया था, वे अभी भी उससे दूर थे; उसे समय की आवश्यकता थी, उसे इंतज़ार करने की आवश्यकता थी, और उसे धैर्य रखने की आवश्यकता थी। क्योंकि उस समय पर, स्वयं परमेश्वर को छोड़कर, कोई भी नहीं जानता था कि उसे किस बात की आवश्यकता थी, या उसने क्या हासिल करने की इच्छा की थी, या उसने किस बात की लालसा की थी। और इस प्रकार, ठीक उसी समय अत्याधिक उत्साहित महसूस करते हुए, परमेश्वर ने हृदय में भारी बोझ का भी एहसास किया था। फिर भी उसने अपने कदमों को नहीं रोका, और लगातार अपने उस अगले कदम की योजना बनाता रहा जिसे उसे अवश्य करना था।
अब्राहम से की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा में तुम लोग क्या देखते हो? परमेश्वर ने अब्राहम को महान आशीषें प्रदान की थीं सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने परमेश्वर के वचन को सुना था। हालाँकि, सतही तौर पर, यह सामान्य दिखाई देता है, और एक सहज मामला प्रतीत होता है, इस में हम परमेश्वर के हृदय को देखते हैं: परमेश्वर विशेष तौर पर मनुष्य की आज्ञाकारिता को सहेजकर रखता है, और अपने विषय में मनुष्य की समझ और अपने प्रति मनुष्य की ईमानदारी उसे अच्छी लगती है। परमेश्वर को यह ईमानदारी कितनी अच्छी लगती है? तुम लोग नहीं समझ सकते हो कि उसे कितना अच्छा लगता है, और शायद ऐसा कोई भी नहीं है जो इसे समझ सके। परमेश्वर ने अब्राहम को एक पुत्र दिया, और जब वह पुत्र बड़ा हो गया, परमेश्वर ने अब्राहम से अपने पुत्र को बलिदान करने के लिए कहा। अब्राहम ने अक्षरशः परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया, उसने परमेश्वर के वचन का पालन किया, और उसकी ईमानदारी ने परमेश्वर को द्रवित किया और उसकी ईमानदारी को परमेश्वर के द्वारा संजोकर रखा गया था। परमेश्वर ने इसे कितना संजोकर रखा? और उसने क्यों इसे संजोकर रखा था? एक समय पर जब किसी ने भी परमेश्वर के वचनों को नहीं बूझा था या उसके हृदय को नहीं समझा था, तब अब्राहम ने कुछ ऐसा किया जिस ने स्वर्ग को हिला दिया और पृथ्वी को कंपा दिया, तथा इस से परमेश्वर को अभूतपूर्व संतुष्टि का एहसास हुआ, और परमेश्वर के लिए ऐसे व्यक्ति को हासिल करने के आनन्द को लेकर आया जो उसकी आज्ञाओं का पालन करने के योग्य था। यह संतुष्टि एवं आनन्द उस प्राणी से आया जिसे परमेश्वर के हाथ से रचा गया था, और जब से मनुष्य की सृष्टि की गई थी, यह पहला "बलिदान" था जिसे मनुष्य ने परमेश्वर को अर्पित किया था और जिसको परमेश्वर के द्वारा अत्यंत सहेजकर रखा गया था। इस बलिदान का इंतज़ार करते हुए परमेश्वर ने बहुत ही कठिन समय गुज़ारा था, और उसने इसे मनुष्य की ओर से दिए गए प्रथम महत्वपूर्ण भेंट के रूप में लिया, जिसे उसने सृजा था। इसने परमेश्वर को उसके प्रयासों और उस कीमत के प्रथम फल को दिखाया जिसे उसने चुकाया था, और इससे वह मानवजाति में आशा देख सका। इसके बाद, परमेश्वर के पास ऐसे लोगों के समूह के लिए और भी अधिक लालसा थी जो उसका साथ दें, उसके साथ ईमानदारी से व्यवहार करें, ईमानदारी के साथ उसकी परवाह करें। परमेश्वर ने यहाँ तक आशा की थी कि अब्राहम निरन्तर जीवित रहता, क्योंकि वह चाहता था कि ऐसा हृदय उसके साथ संगति करे उसके साथ रहे जैसे वह उसके प्रबंधन में निरन्तर बना रहा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि परमेश्वर क्या चाहता था, यह सिर्फ एक इच्छा थी, सिर्फ एक विचार था—क्योंकि अब्राहम मात्र एक मनुष्य था जो उसकी आज्ञाओं का पालन करने के योग्य था, और उसके पास परमेश्वर की थोड़ी सी भी समझ या ज्ञान नहीं था। वह ऐसा व्यक्ति था जो मनुष्य के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों से पूरी तरह रहित थाः परमेश्वर को जानना, परमेश्वर को संतुष्ट करने के योग्य होना, और परमेश्वर के साथ एक मन होना। और इस लिए, वह परमेश्वर के साथ नहीं चल सका। अब्राहम के द्वारा इसहाक के बलिदान में, परमेश्वर ने उस में ईमानदारी एवं आज्ञाकारिता को देखा था, और यह देखा था कि उसने परमेश्वर के द्वारा अपनी परीक्षा का स्थिरता से सामना किया था। भले ही परमेश्वर ने उसकी आज्ञाकारिता एवं ईमानदारी को स्वीकार किया था, किन्तु वह अब भी परमेश्वर का विश्वासपात्र बनने में अयोग्य था, ऐसा व्यक्ति बनने में अयोग्य था जो परमेश्वर को जानता था, और परमेश्वर को समझता था, और उसे परमेश्वर के स्वभाव के विषय में सूचित किया गया था; वह परमेश्वर के साथ एक मन होने और परमेश्वर की इच्छा को सम्पन्न करने से बहुत दूर था। और इस प्रकार, परमेश्वर अपने हृदय में अभी भी अकेला एवं चिंतित था। परमेश्वर जितना अधिक अकेला एवं चिंतित होता गया, उतना ही अधिक उसे आवश्यकता थी कि वह जितना जल्दी हो सके अपने प्रबंधन के साथ निरन्तर आगे बढ़े, और अपनी प्रबंधकीय योजना को पूरा करने के लिए और जितना जल्दी हो सके उसकी इच्छा को प्राप्त करने के लिए लोगों के ऐसे समूह को हासिल करने और चुनने के योग्य हो जाए। यह परमेश्वर की हार्दिक अभिलाषा थी, और यह शुरुआत से लेकर आज तक अपरिवर्तनीय बनी हुई है। जब से उसने आदि में मनुष्य की सृष्टि की थी, तब से परमेश्वर ने विजयी लोगों के समूह की लालसा की है, ऐसा समूह जो उसके साथ चलेगा और जो उसके स्वभाव को समझने, बूझने और जानने के योग्य है। परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं बदली है। इसके बावजूद कि उसे अब भी कितना लम्बा इंतज़ार करना है, इसके बावजूद कि आगे का मार्ग कितना कठिन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे उद्देश्य कितने दूर हैं जिनकी वह लालसा करता है, परमेश्वर ने मनुष्य के लिए अपनी अपेक्षाओं को कभी पलटा नहीं है या हिम्मत नहीं हारा है। अब मैंने यह कह दिया है, तो क्या तुम लोग परमेश्वर की इच्छा की कुछ बातों का एहसास कर सकते हो? शायद जो कुछ तुम लोगों ने एहसास किया है वह बहुत गहरा नहीं है—परन्तु वह धीरे-धीरे आएगा!
"वचन देह में प्रकट होता है" से

मंगलवार, 16 जुलाई 2019

जलप्रलय के बाद नूह के लिए परमेश्वर की आशीष

(उत्पत्ति 9:1-6) फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी और उनसे कहा, कि फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ। तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पक्षियों, और भूमि पर के सब रेंगनेवाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियों पर बना रहेगा: वे सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं। सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसे तुम को हरे हरे छोटे पेड़ दिये थे, वैसा ही अब सब कुछ देता हूँ। पर मांस को प्राण समेत अर्थात् लहू समेत तुम न खाना। और निश्चय मैं तुम्हारे लहू अर्थात् प्राण का बदला लूँगा: सब पशुओं और मनुष्यों, दोनों से मैं उसे लूँगा; मनुष्य के प्राण का बदला मैं एक एक के भाई बन्धु से लूँगा। जो कोई मनुष्य का लहू बहाएगा उसका लहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा, क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरुप के अनुसार बनाया है।
……
नूह ने परमेश्वर के निर्देशों को स्वीकार किया और जहाज़ बनाया और उन दिनों के दौरान जीवित रहा जब परमेश्वर ने संसार का नाश करने के लिए जलप्रलय का उपयोग किया उसके पश्चात, आठ लोगों का उसका पूरा परिवार जीवित बच गया। नूह के परिवार के आठ लोगों को छोड़कर, सारी मानवजाति का नाश कर दिया गया था, और पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों का नाश कर दिया गया था। नूह के लिए, परमेश्वर ने उसे आशीषें दीं, और उससे और उसके बेटों से कुछ बातें कहीं। ये बातें वे थीं जिन्हें परमेश्वर उन्हें प्रदान कर रहा था और उसके लिए परमेश्वर की आशीष भी थी। यह वह आशीष एवं प्रतिज्ञा है जिसे परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति को देता है जो उसे ध्यान से सुन सकता है और उसके निर्देशों को स्वीकार कर सकता था, और साथ ही ऐसा तरीका भी है जिससे परमेश्वर लोगों को प्रतिफल देता है। कहने का तात्पर्य है, इसके बावजूद कि नूह परमेश्वर की दृष्टि में एक सिद्ध पुरुष था या एक धर्मी पुरुष था, और इसके बावजूद कि वह परमेश्वर के बारे में कितना कुछ जानता था, संक्षेप में, नूह और उसके तीन पुत्र सभी ने परमेश्वर के वचनों को सुना था, परमेश्वर के कार्य के साथ सहयोग किया था, और वही किया था जिसे उनसे परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार करने की अपेक्षा की गई थी। परिणामस्वरूप, जलप्रलय के द्वारा संसार के विनाश के बाद उन्होंने मनुष्यों एवं विभिन्न प्रकार के जीवित प्राणियों को पुनः प्राप्त करने में परमेश्वर की सहायता की थी, और परमेश्वर की प्रबंधकीय योजना के अगले चरण में बड़ा योगदान दिया था। वह सब कुछ जो उसने किया था उसके कारण, परमेश्वर ने उसे आशीष दी थी। शायद आज के लोगों के लिए, जो कुछ नूह ने किया था वह उल्लेख करने के भी लायक नहीं है। कुछ लोग सोच सकते हैं: नूह ने कुछ भी नहीं किया था; परमेश्वर ने उसे बचाने के लिए अपना मन बना लिया था, अतः उसे निश्चित रूप से बचाया जाना था। उसके जीवित बचने का श्रेय उसे नहीं जाता है। यह वह है जिसे परमेश्वर घटित करना चाहता था, क्योंकि मनुष्य निष्क्रिय है। लेकिन यह वह नहीं है जो परमेश्वर सोच रहा था। परमेश्वर के लिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई व्यक्ति महान है या मामूली, जब तक वे उसे ध्यान से सुन सकते हैं, उसके निर्देशों और जो कुछ वह सौंपता है उसका पालन कर सकते हैं, और उसके कार्य, उसकी इच्छा एवं उसकी योजना के साथ सहयोग कर सकते हैं, ताकि उसकी इच्छा एवं उसकी योजना को निर्विघ्नता से पूरा किया जा सके, तो ऐसा आचरण उसके द्वारा उत्सव मनाए जाने के योग्य है और उसकी आशीष को प्राप्त करने के योग्य है। परमेश्वर ऐसे लोगों को मूल्यवान जानकर सहेजकर रखता है, और वह अपने लिए उनके कार्यों एवं उनके प्रेम एवं उनके स्नेह को ह्रदय में संजोकर रखता है। यह परमेश्वर की मनोवृत्ति है। तो परमेश्वर ने नूह को आशीष क्यों दी? क्योंकि परमेश्वर इसी तरह से ऐसे कार्यों एवं मनुष्य की आज्ञाकारिता से व्यवहार करता है।

नूह के विषय में परमेश्वर की आशीष के लिहाज से, कुछ लोग कहेंगे: "यदि मनुष्य परमेश्वर को ध्यान से सुनता है और परमेश्वर को संतुष्ट करता है, तो परमेश्वर को मनुष्य को आशीष देना चाहिए। क्या यह स्पष्ट नहीं है?" क्या हम ऐसा कह सकते हैं? कुछ लोग कहते हैं: "नहीं।" हम ऐसा क्यों नहीं कह सकते हैं? कुछ लोग कहते हैं: "मनुष्य परमेश्वर की आशीष का आनन्द उठाने के लायक नहीं है।" यह पूर्णतः सही नहीं है। क्योंकि जब कोई व्यक्ति जो कुछ परमेश्वर सौंपता है उसे स्वीकार करता है, तो परमेश्वर के पास न्याय करने के लिए एक मापदंड होता है कि उस व्यक्ति के कार्य अच्छे हैं या बुरे और यह कि उस व्यक्ति ने आज्ञा का पालन किया है या नहीं, और यह कि उस व्यक्ति ने परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट किया है या नहीं और यह कि जो कुछ वे करते हैं वे उपयुक्त हैं या नहीं। परमेश्वर जिसकी परवाह करता है वह किसी व्यक्ति का हृदय है, न कि सतह पर किए गए उनके कार्य। स्थिति ऐसी नहीं है कि परमेश्वर को किसी व्यक्ति को तब तक आशीष देना चाहिए जब तक वे इसे करते हैं, इसके बावजूद कि वे इसे कैसे करते हैं। यह परमेश्वर के बारे में लोगों की ग़लतफ़हमी है। परमेश्वर सिर्फ चीज़ों के अंत के परिणाम को ही नहीं देखता, बल्कि इस पर अधिक जोर देता है कि किसी व्यक्ति का हृदय कैसा है और चीज़ों के विकास के दौरान किसी व्यक्ति की मनोवृत्ति कैसी है, और यह देखता है कि उनके हृदय में आज्ञाकारिता, विचार, एवं परमेश्वर को संतुष्ट करने की इच्छा है या नहीं। उस समय नूह परमेश्वर के विषय में कितना जानता था? क्या यह उतना था जितने ये सिद्धान्त हैं जिन्हें अब तुम लोग जानते हो? उस सच्चाई के पहलुओं के सम्बन्ध में जैसे परमेश्वर की अवधारणाएँ एवं उसका ज्ञान, क्या उसने उतनी सिंचाई एवं चरवाही पाई थी जितनी तुम लोगों ने पाई है? नहीं, उसने नहीं पाई! लेकिन एक तथ्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता है: चेतना में, मस्तिष्कों में, और यहाँ तक कि आज के लोगों के हृदयों की गहराई में भी, परमेश्वर के विषय में उनकी अवधारणाएँ और उसके प्रति उनकी मनोवृत्ति धुंधली एवं अस्पष्ट है। तुम लोग यहाँ तक कह सकते हो कि लोगों का एक हिस्सा परमेश्वर के अस्तित्व के प्रति एक नकारात्मक मनोवृत्ति को थामे हुए है। लेकिन नूह के हृदय एवं चेतना में, परमेश्वर का अस्तित्व पूर्ण एवं बिना किसी सन्देह के था, और इस प्रकार परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता अमिश्रित थी और परीक्षा का सामना कर सकता थी। परमेश्वर के प्रति उसका हृदय शुद्ध एवं खुला हुआ था। उसे परमेश्वर के हर एक वचन का अनुसरण करने हेतु अपने आपको आश्वस्त करने के लिए सिद्धान्तों के बहुत अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं थी, न ही उसे परमेश्वर के अस्तित्व को साबित करने के लिए बहुत सारे तथ्यों की आवश्यकता थी, ताकि जो कुछ परमेश्वर ने सौंपा था वह उसे स्वीकार कर सके और जो कुछ भी करने के लिए परमेश्वर ने उसे अनुमति दी थी वह उसे करने के योग्य सके। यह नूह और आज के लोगों के बीच आवश्यक अन्तर है, और साथ ही यह बिलकुल सही परिभाषा भी है कि परमेश्वर की दृष्टि में एक सिद्ध पुरुष कैसा होता है। जो परमेश्वर चाहता है वह नूह के समान लोग हैं। वह उस प्रकार का व्यक्ति है जिसकी प्रशंसा परमेश्वर करता है, और बिलकुल उसी प्रकार का व्यक्ति है जिसे परमेश्वर आशीष देता है। क्या तुम लोगों ने इससे कोई अद्भुत प्रकाशन प्राप्त किया है? लोग मनुष्यों को बाहर से देखते हैं, जबकि जो कुछ परमेश्वर देखता है वह लोगों के हृदय एवं उनके सार हैं। परमेश्वर किसी को भी अपने प्रति अधूरा-मन या सन्देह रखने की अनुमति नहीं देता है, न ही वह लोगों को किसी रीती से उस पर सन्देह करने या उसकी परीक्षा लेने की इजाज़त देता है। इस प्रकार, हालाँकि आज लोग परमेश्वर के वचन के आमने-सामने हैं, या तुम लोग यह भी कह सकते हो कि परमेश्वर के आमने-सामने हैं, फिर भी किसी चीज़ के कारण जो उनके हृदयों की गहराई में है, उनके भ्रष्ट मूल-तत्व के अस्तित्व के कारण, और उसके प्रति उनकी प्रतिकूल मनोवृत्ति के कारण, परमेश्वर में उनके सच्चे विश्वास से उन्हें अवरोधित किया गया है, और उसके प्रति उनकी आज्ञाकारिता में उन्हें बाधित किया गया है। इस कारण, यह उनके लिए बहुत कठिन है कि वे उसी आशीष को हासिल करें जिसे परमेश्वर ने नूह को प्रदान किया था।
                                                                      "वचन देह में प्रकट होता है" से
अधिकपरमेश्वर के भजन - चुने हुए भजनों को सूची - परमेश्वर प्रेम को ब्यक्त करना

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

परमेश्वर संसार को जलप्रलय से नाश करने का इरादा करता है, नूह को एक जहाज़ बनाने का निर्देश देता है

(उत्पत्ति 2:15-17) तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे। और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।"
क्या तुम लोगों को इन वचनों से कुछ मिला था? पवित्र शास्त्र का यह भाग तुम लोगों को कैसा महसूस कराता है? पवित्र शास्त्र से "आदम के लिए परमेश्वर की आज्ञा" के उद्धरण को क्यों लिया गया था? क्या अब तुम लोगों में से प्रत्येक के पास अपने-अपने मन में परमेश्वर और आदम की एक त्वरित तस्वीर है? तुम लोग कल्पना करने की कोशिश कर सकते हो: यदि तुम लोग उस दृश्य में एक पात्र होते, तो तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर किस के समान होगा? यह तस्वीर तुम लोगों को कौन सी भावनाओं का एहसास कराती है? यह एक द्रवित करनेवाली और दिल को छू लेनेवाली तस्वीर है। यद्यपि इसमें केवल परमेश्वर एवं मनुष्य ही है, फिर भी उनके बीच की घनिष्ठता ईर्ष्या के कितने योग्य है: परमेश्वर के प्रचुर प्रेम को मनुष्य को मुफ्त में प्रदान किया गया है, यह मनुष्य को घेरे रहता है; मनुष्य भोला भाला एवं निर्दोष, भारमुक्त एवं लापरवाह है, वह आनन्दपूर्वक परमेश्वर की दृष्टि के अधीन जीवन बिताता है; परमेश्वर मनुष्य के लिए चिंता करता है, जबकि मनुष्य परमेश्वर की सुरक्षा एवं आशीष के अधीन जीवन बिताता है; हर एक चीज़ जिसे मनुष्य करता एवं कहता है वह परमेश्वर से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ होता है और उससे अविभाज्य है।
तुम लोग कह सकते हो कि यह पहली आज्ञा है जिसे परमेश्वर ने मनुष्य को दिया था जब उसने उसे बनाया था। यह आज्ञा क्या उठाए हुए है? यह परमेश्वर की इच्छा को उठाए हुए है, परन्तु साथ ही यह मानवजाति के लिए उसकी चिंताओं को भी उठाए हुए है। यह परमेश्वर की पहली आज्ञा है, और साथ ही यह पहली बार भी है जब परमेश्वर मनुष्य के विषय में चिंता करता है। कहने का तात्पर्य है, जब से परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया उस घड़ी से उसके पास उसके प्रति एक ज़िम्मेदारी है। उसकी ज़िम्मेदारी क्या है? उसे मनुष्य की सुरक्षा करनी है, और मनुष्य की देखभाल करनी है। वह आशा करता है कि मनुष्य भरोसा कर सकता है और उसके वचनों का पालन कर सकता है। यह मनुष्य से परमेश्वर की पहली अपेक्षा भी है। इसी अपेक्षा के साथ परमेश्वर निम्नलिखित वचन कहता है: "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।" ये साधारण वचन परमेश्वर की इच्छा को दर्शाते हैं। वे यह भी प्रकट करते हैं कि परमेश्वर के हृदय ने पहले से ही मनुष्य के लिए चिंता प्रकट करना शुरू कर दिया है। सब चीज़ों के मध्य, केवल आदम को ही परमेश्वर के स्वरुप में बनाया गया था; आदम ही एकमात्र जीवित प्राणी था जिसके पास परमेश्वर के जीवन की श्वास है; वह परमेश्वर के साथ चल सकता था, परमेश्वर के साथ बात कर सकता है। इसी लिए परमेश्वर ने उसे एक ऐसी आज्ञा दी थी। परमेश्वर ने इस आज्ञा में बिलकुल साफ कर दिया था कि वह क्या कर सकता है, साथ ही साथ वह क्या नहीं कर सकता है।
इन कुछ साधारण वचनों में, हम परमेश्वर के हृदय को देखते हैं। लेकिन हम किस प्रकार का हृदय देखते हैं? क्या परमेश्वर के हृदय में प्रेम है? क्या इसके पास कोई चिंता है? इन वचनों में परमेश्वर के प्रेम एवं चिंता को न केवल लोगों के द्वारा सराहा जा सकता, लेकिन इसे भली भांति एवं सचमुच में महसूस भी किया जा सकता है। क्या यह ऐसा ही नहीं है? अब मैंने इन बातों को कहा है, क्या तुम लोग अब भी सोचते हो कि ये बस कुछ साधारण वचन हैं? इतने साधारण नहीं हैं, ठीक है? क्या तुम लोग इसे पहले से देख सकते थे? यदि परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से तुम्हें इन थोड़े से साधारण वचनों को कहा होता, तो तुम भीतर से कैसा महसूस करते? यदि तुम एक दयालु व्यक्ति नहीं हो, यदि तुम्हारा हृदय बर्फ के समान ठण्डा पड़ गया है, तो तुम कुछ भी महसूस नहीं करोगे, तुम परमेश्वर के प्रेम की सराहना नहीं करोगे, और तुम परमेश्वर के हृदय को समझने की कोशिश नहीं करोगे। लेकिन यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसके पास विवेक है, एवं मानवता है, तो तुम कुछ अलग महसूस करोगे। तुम सुखद महसूस करोगे, तुम महसूस करोगे कि तुम्हारी परवाह की जाती है और तुम्हें प्रेम किया जाता है, और तुम खुशी महसूस करोगे। क्या यह सही नहीं है? जब तुम इन चीज़ों को महसूस करते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रति किस प्रकार कार्य करोगे? क्या तुम परमेश्वर से जुड़ा हुआ महसूस करोगे? क्या तुम अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर से प्रेम और उसका सम्मान करोगे? क्या तुम्हारा हृदय परमेश्वर के और करीब जाएगा? तुम इससे देख सकते हो कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महत्वपूर्ण है? लेकिन जो और भी अधिक महत्वपूर्ण है वह परमेश्वर के प्रेम के विषय में मनुष्य की सराहना एवं समझ है। वास्तव में, क्या परमेश्वर ने अपने कार्य के इस चरण के दौरान ऐसी बहुत सी चीज़ों को नहीं कहा था? लेकिन क्या आज के लोग परमेश्वर के हृदय की सराहना करते हैं? क्या तुम लोग परमेश्वर की इच्छा का आभास कर सकते हो जिसके बारे में मैंने बस अभी-अभी कहा था? तुम लोग परमेश्वर की इच्छा को भी परख नहीं सकते हो जब यह इतना ठोस, स्पर्शगम्य, एवं यथार्थवादी है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोगों के पास परमेश्वर के विषय में वास्तविक ज्ञान एवं समझ नहीं है। क्या यह सत्य नहीं है? हम इस भाग में बस इतनी ही चर्चा करेंगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

परमेश्वर आदम और हव्वा के वस्त्र बनाने के लिए जानवर की खालों का इस्तेमाल करता है

(उत्पत्ति 3:20-21) आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।
आओ हम इस तीसरे अंश पर एक नज़र डालें, जो बताता है कि उस नाम के पीछे एक अर्थ है जिसे आदम ने हव्वा को दिया था, ठीक है? यह दर्शाता है कि सृजे जाने के बाद, आदम के पास अपने स्वयं के विचार थे और वह बहुत सी चीज़ों को समझता था। लेकिन फिलहाल हम जो कुछ वह समझता था या कितना कुछ वह समझता था उसका अध्ययन या उसकी खोज करने नहीं जा रहे हैं क्योंकि यह वह मुख्य बिन्दु नहीं है जिस पर मैं तीसरे अंश में चर्चा करना चाहता हूँ। अतः तीसरे अंश का मुख्य बिन्दु क्या है। आइए हम इस पंक्ति पर एक नज़र डालें, "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।" यदि आज हम पवित्र शास्त्र की इस पंक्ति के बारे में संगति नहीं करें, तो हो सकता है कि तुम लोग इन वचनों के पीछे निहित अर्थों का कभी एहसास न कर एँपाओ। सबसे पहले, मुझे कुछ सुराग देने दो। अपनी कल्पना को विस्तृत करो और अदन के बाग की तस्वीर देखिए, जिसमें आदम और हव्वा रहते हैं। परमेश्वर उनसे मिलने जाता है, लेकिन वे छिप जाते हैं क्योंकि वे नग्न हैं। परमेश्वर उन्हें देख नहीं सकता है, और जब वह उन्हें पुकारता है उसके बाद, वे कहते हैं, "हममें तुझे देखने की हिम्मत नहीं है क्योंकि हमारे शरीर नग्न हैं।" वे परमेश्वर को देखने की हिम्मत नहीं करते हैं क्योंकि वे नग्न हैं। तो यहोवा परमेश्वर उनके लिए क्या करता है? मूल पाठ कहता है: "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।" अब क्या तुम लोग जानते हो कि परमेश्वर ने उनके वस्त्रों को बनाने के लिए क्या उपयोग किया था? परमेश्वर ने उनके वस्त्रों को बनाने के लिए जानवर के चमड़े का उपयोग किया था। कहने का तात्पर्य है, जो वस्त्र परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया वह एक रोएँदार कोट था। यह वस्त्र का पहला टुकड़ा था जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया था। एक रोएँदार कोट आज की जीवनशैली के अनुसार ऊँचे बाज़ार का मद है, ऐसी चीज़ जिसे पहनने के लिए हर कोई खरीद नहीं सकता है। यदि तुमसे कोई पूछे: मानवजाति के पूर्वजों के द्वारा पहना गया वस्त्र का पहला टुकड़ा क्या था? तुम उत्तर दे सकते हो: यह एक रोएँदार कोट था। यह रोएँदार कोट किसने बनाया था? तुम आगे प्रत्युत्तर दे सकते हो: परमेश्वर ने इसे बनाया था! यही मुख्य बिन्दु है: इस वस्त्र को परमेश्वर के द्वारा बनाया गया था। क्या यह ऐसी चीज़ नहीं है जो ध्यान देने के योग्य है? फिलहाल मैंने अभी-अभी इसका वर्णन किया है, क्या तुम्हारे मनों में एक छवि उभर कर आई है? इसकी कम से कम एक अनुमानित रुपरेखा होनी चाहिए। आज तुम लोगों को बताने का बिन्दु यह नहीं है कि तुम लोग जानो कि मनुष्य के वस्त्र का पहला टुकड़ा क्या था। तो फिर बिन्दु क्या है? यह बिन्दु रोएँदार कोट नहीं है, परन्तु यह है कि परमेश्वर के द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव एवं अस्तित्व एवं व्यावहारिक सम्पदाओं (गुणों) को कैसे जाने जब वह यह कार्य कर रहा था।
      "और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए," इसकी छवि में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका निभाता है जब वह आदम और हव्वा के साथ है? मात्र दो मानव प्राणियों के साथ एक संसार में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका में प्रकट होता है? परमेश्वर की भूमिका के रूप में? हौंग कौंग के भाइयों एवं बहनों, कृपया उत्तर दीजिए। (एक पिता की भूमिका के रूप में।) दक्षिण कोरिया के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो कि परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका में प्रकट होता है? (परिवार के मुखिया।) ताइवान के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो? (आदम और हव्वा के परिवार में किसी व्यक्ति की भूमिका, परिवार के एक सदस्य की भूमिका।) तुम लोगों में से कुछ सोचते हैं कि परमेश्वर आदम और हव्वा के परिवार के एक सदस्य के रूप में प्रकट होता है, जबकि कुछ कहते हैं कि परमेश्वर परिवार के एक मुखिया के रूप में प्रकट होता है और अन्य लोग कहते हैं एक पिता के रूप में। इनमें से सब बिलकुल उपयुक्त हैं। लेकिन वह क्या है जिस तक मैं पहुँच रहा हूँ? परमेश्वर ने इन दो लोगों की सृष्टि की और उनके साथ अपने सहयोगियों के समान व्यवहार किया था। उनके एकमात्र परिवार के समान, परमेश्वर ने उनके रहन-सहन का ख्याल रखा और और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा। यहाँ, परमेश्वर आदम और हव्वा के माता-पिता के रूप में प्रकट होता है। जब परमेश्वर यह करता है, मनुष्य नहीं देखता कि परमेश्वर कितना ऊंचा है; वह परमेश्वर की सबसे ऊँची सर्वोच्चता, उसकी रहस्यमयता को नहीं देखता है, और ख़ासकर उसके क्रोध या प्रताप को नहीं देखता है। जो कुछ वह देखता है वह परमेश्वर की नम्रता, उसका स्नेह, मनुष्य के लिए उसकी चिंता और उसके प्रति उसकी ज़िम्मेदारी एवं देखभाल है। वह मनोवृत्ति एवं तरीका जिसके अंतर्गत परमेश्वर आदम और हव्वा के साथ व्यवहार करता है वह इसके समान है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए चिंता करते हैं। यह इसके समान भी है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने पुत्र एवं पुत्रियों से प्रेम करते हैं, उन पर ध्यान देते हैं, और उनकी देखरेख करते हैं—वास्तविक, दृश्यमान, और स्पर्शगम्य। अपने आपको एक ऊँचे एवं सामर्थी पद पर रखने के बजाए, परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के लिए पहरावा बनाने के लिए चमड़ों का उपयोग किया था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनकी लज्जा को छुपाने के लिए या उन्हें ठण्ड से बचाने के लिए इस रोएँदार कोट का उपयोग किया गया था। संक्षेप में, यह पहरावा जो मनुष्य के शरीर को ढंका करता था उसे परमेश्वर के द्वारा उसके अपने हाथों से बनाया गया था। इसे सरलता से विचार के माध्यम से या चमत्कारीय तरीके से बनाने के बजाय जैसा लोग सोचते हैं, परमेश्वर ने वैधानिक तौर पर कुछ ऐसा किया जिसके विषय में मनुष्य सोचता है कि परमेश्वर नहीं कर सकता था और उसे नहीं करना चाहिए था। यह एक साधारण कार्य हो सकता है कि कुछ लोग यहाँ तक सोचें कि यह जिक्र करने के लायक भी नहीं है, परन्तु यह उन सब को अनुमति भी देता है जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं परन्तु उसके विषय में पहले अस्पष्ट विचारों से भरे हुए थे कि वे उसकी विशुद्धता एवं मनोहरता में अन्तःदृष्टि प्राप्त करें, और उसके विश्वासयोग्य एवं दीन स्वभाव को देखें। यह अत्यधिक अभिमानी लोगों को, जो सोचते हैं कि वे ऊँचे एवं शक्तिशाली हैं, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता के सामने लज्जा से अपने अहंकारी सिरों को झुकाने के लिए मजबूर करता है। यहाँ, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता लोगों को यह देखने के लिए और अधिक योग्य बनाती है कि परमेश्वर कितना प्यारा है। इसके विपरीत, "असीम" परमेश्वर, "प्यारा" परमेश्वर और "सर्वशक्तिमान" परमेश्वर लोगों के हृदय में कितना छोटा, एवं नीरस है, और एक प्रहार को भी सहने में असमर्थ है। जब तुम इस वचन को देखते हो और इस कहानी को सुनते हो, तो क्या तुम परमेश्वर को नीचा देखते हो क्योंकि उसने एक ऐसा कार्य किया था? शायद कुछ लोग सोचें, लेकिन दूसरों के लिए यह पूर्णत: विपरीत होगा। वे सोचेंगे कि परमेश्वर विशुद्ध एवं प्यारा है, यह बिलकुल परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता है जो उन्हें द्रवित करती है। जितना अधिक वे परमेश्वर के वास्तविक पहलू को देखते हैं, उतना ही अधिक वे परमेश्वर के प्रेम के सच्चे अस्तित्व की, अपने हृदय में परमेश्वर के महत्व की, और वह किस प्रकार हर घड़ी उनके बगल में खड़ा होता है उसकी सराहना कर सकते हैं।

इस बिन्दु पर, हमें हमारी बातचीत को वर्तमान से जोड़ना चाहिए। यदि परमेश्वर मनुष्यों के लिए ये विभिन्न छोटी छोटी चीज़ें कर सकता था जिन्हें उसने बिलकुल शुरुआत में सृजा था, यहाँ तक कि ऐसी चीज़ें भी जिनके विषय में लोग कभी सोचने या अपेक्षा करने की हिम्मत भी नहीं करेंगे, तो क्या परमेश्वर आज के लोगों के लिए ऐसी चीज़ें करेगा? कुछ लोग कहते हैं, "हाँ!" ऐसा क्यों है? क्योंकि परमेश्वर का सार जाली नहीं है, उसकी मनोहरता जाली नहीं है। क्योंकि परमेश्वर का सार सचमुच में अस्तित्व में है और यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे दूसरों के द्वारा मिलाया गया है, और निश्चित रूप से ऐसी चीज़ नहीं है जो समय, स्थान एवं युगों में परिवर्तन के साथ बदलता जाता है। परमेश्वर की विशुद्धता एवं मनोहरता को कुछ ऐसा करने के द्वारा सामने लाया जा सकता है जिसे लोग सोचते हैं कि साधारण एवं मामूली है, ऐसी चीज़ जो बहुत छोटी है कि लोग सोचते भी नहीं हैं कि वह कभी करेगा। परमेश्वर अभिमानी नहीं है। उसके स्वभाव एवं सार में कोई अतिशयोक्ति, छद्मवेश, गर्व, या अहंकार नहीं है। वह कभी डींगें नहीं मारता है, बल्कि इसके बजाए प्रेम करता है, चिंता करता है, ध्यान देता है, और मानव प्राणियों की अगुवाई करता है जिन्हें उसने विश्वासयोग्यता एवं ईमानदारी से बनाया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग इसमें से कितनी चीज़ों की सराहना, एवं एहसास कर सकते हैं, या देख सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर निश्चय ही इन चीज़ों को कर रहा है। क्या यह जानना कि परमेश्वर के पास ऐसा सार है उसके लिए लोगों के प्रेम को प्रभावित करेगा? क्या यह परमेश्वर के विषय में उनके भय को प्रभावित करेगा? मैं आशा करता हूँ कि जब तुम परमेश्वर के वास्तविक पहलु को समझ जाते हो तो तुम उसके और भी करीब हो एँजाओगे और तुम मानवजाति के प्रति उसके प्रेम एवं देखभाल की सचमुच में और भी अधिक सराहना करने के योग्य होगे, जबकि ठीक उसी समय तुम अपना हृदय भी परमेश्वर को देते हो और आगे से तुम्हारे पास उसके प्रति कोई सन्देह या शंका नहीं होती है। परमेश्वर मनुष्य के लिए सबकुछ चुपचाप कर रहा है, वह यह सब अपनी ईमानदारी, विश्वासयोग्यता एवं प्रेम के जरिए खामोशी से कर रहा है। लेकिन उन सब के लिए जिसे वह करता है उसे कभी कोई शंका या खेद नहीं हुआ, न ही उसे कभी आवश्यकता हुई कि कोई उसे किसी रीति से बदले में कुछ दे या न ही उसके पास कभी मानवजाति से कोई चीज़ प्राप्त करने के इरादे हैं। वह सब कुछ जो उसने हमेशा किया है उसका एकमात्र उद्देश्य यह है ताकि वह मानवजाति के सच्चे विश्वास एवं प्रेम को प्राप्त कर सके।
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शनिवार, 6 जुलाई 2019

परमेश्वर हव्वा को बनाता है

(उत्पत्ति 2:18-20) फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, "आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं है; मैं उसके लिए एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए।" और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिए कोई ऐसा सहायक न मिला जो उस से मेल खा सके।
(उत्पत्ति 2:22-23) और यहोवा परमेश्वर ने उस पसली को जो उस ने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। तब आदम ने कहा, अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है: इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।
पवित्र शास्त्र के इस भाग में यहाँ कुछ मुख्य वाक्यांश है: कृपया उन्हें रेखांकित करें: "और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।" अतः किसने सभी जीवित प्राणियों को उनका नाम दिया था? यह आदम था, परमेश्वर नहीं। यह वाक्यांश मानवजाति को एक तथ्य बताता है: परमेश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी जब उसने उसकी सृष्टि की थी। कहने का तात्पर्य है, मनुष्य की बुद्धि परमेश्वर से आई थी। यह एक निश्चितता है। लेकिन क्यों? परमेश्वर ने आदम को बनाया उसके बाद, क्या आदम विद्यालय गया था? क्या वह जानता था कि कैसे पढ़ते हैं? परमेश्वर ने विभिन्न जीवित प्राणियों को बनाया उसके बाद, क्या आदम ने इन सभी पशुओं को पहचाना था? क्या परमेश्वर ने उसे बताया कि उनके नाम क्या थे? हाँ वास्तव में, परमेश्वर ने उसे यह भी नहीं सिखाया था कि इन प्राणियों के नाम कैसे रखने हैं। यही वह सच्चाई है! तो उसने कैसे जाना कि इन जीवित प्राणियों को उनके नाम कैसे देने थे और उन्हें किस प्रकार के नाम देने थे? यह उस प्रश्न से जुड़ा हुआ है कि परमेश्वर ने आदम में क्या जोड़ा जब उसने उसकी सृष्टि की थी। तथ्य यह साबित करते हैं कि जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तो उसने अपनी बुद्धि को उसमें जोड़ दिया था। यह एक मुख्य बिन्दु है। क्या तुम सब लोगों ने ध्यानपूर्वक सुना? एक अन्य मुख्य बिन्दु है जो तुम लोगों को स्पष्ट होना चाहिए: आदम ने इन जीवित प्राणियों को उनका नाम दिया उसके बाद, ये नाम परमेश्वर के शब्दकोश में निर्धारित हो गए थे। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? यह परमेश्वर के स्वभाव को भी शामिल करता है, और मुझे इसे समझाना ही होगा।
परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की, उसमें जीवन का श्वास फूंका, और उसे अपनी कुछ बुद्धि, अपनी योग्यताएँ, और जो उसके पास है एवं जो वह वे भी दीं। परमेश्वर ने मनुष्य को ये सब चीज़ें दीं उसके बाद, मनुष्य आत्मनिर्भरता से कुछ चीज़ों को करने और अपने आप सोचने के योग्य था। यदि मनुष्य किसी समस्या का समाधान पा लेता है और वह करता जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, तो परमेश्वर इसे स्वीकार करता है और हस्तक्षेप नहीं करता है। यदि जो कुछ मनुष्य करता है वह सही है, तो परमेश्वर उसे भलाई के लिए ऐसे ही होने देगा। अतः वह वाक्यांश "और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया" क्या सूचित करता है? यह सुझाव देता है कि परमेश्वर ने विभिन्न जीवित प्राणियों के नामों में कोई भी सुधार नहीं किया था। आदम उनका जो भी नाम रखता, परमेश्वर कहता "हाँ" और उस नाम को वैसे ही दर्ज करता है। क्या परमेश्वर ने कोई राय व्यक्त की? नहीं, यह बिलकुल निश्चित है। तो तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? परमेश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी और मनुष्य ने कार्यों को अंजाम देने के लिए अपनी परमेश्वर-प्रदत्त बुद्धि का उपयोग किया। यदि जो कुछ मनुष्य करता है वह परमेश्वर की नज़रों में सकारात्मक है, तो इसे बिना किसी मूल्यांकन या आलोचना के परमेश्वर के द्वारा पुष्ट, मान्य, एवं स्वीकार किया जाता है। यह कुछ ऐसा है जिसे कोई व्यक्ति या दुष्ट आत्मा, या शैतान नहीं कर सकता है। क्या तुम लोग यहाँ परमेश्वर के स्वभाव के एक प्रकाशन को देखते हो? क्या एक मानव प्राणी, एक भ्रष्ट किए गए मानव प्राणी, या शैतान दूसरों को स्वीकार करेंगे कि उनकी नाक के नीचे कार्यों को अंजाम देने के लिए उनका प्रतिनिधित्व करें? बिलकुल भी नहीं! क्या वे पद्वी के लिए उस अन्य व्यक्ति या अन्य शक्ति से लड़ाई करेंगे जो उनसे अलग है? हाँ वास्तव में वे करेंगे! उस घड़ी, यदि वह एक भ्रष्ट किया गया व्यक्ति या शैतान होता जो आदम के साथ था, तो जो कुछ आदम कर रहा था उन्होंने निश्चित रूप से उसे ठुकरा दिया होता। यह साबित करने के लिए कि उनके पास स्वतन्त्र रूप से सोचने की योग्यता है और उनके पास अपनी अनोखी अन्तःदृष्टियाँ हैं, तो जो कुछ भी आदम ने किया था उन्होंने पूरी तरह से उसे नकार दिया होता: क्या तुम इसे यह कहकर बुलाना चाहते हो? ठीक है, मैं इसे यह कहकर नहीं बुलानेवाला हूँ, मैं इसे वह कहकर बुलानेवाला हूँ; तुमने इसे टॉम कहा था लेकिन मैं इसे हैरी कहकर बुलानेवाला हूँ। मुझे अपनी प्रतिभा का दिखावा करना है। यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या यह अनियन्त्रित रूप से अहंकारी होना नहीं है? लेकिन क्या परमेश्वर के पास ऐसा स्वभाव है? यह कार्य जिसे आदम ने किया था क्या उसके प्रति परमेश्वर के पास कुछ असामान्य आपत्तियाँ थीं? स्पष्ट रूप से उत्तर है नहीं! उस स्वभाव के विषय में जिसे परमेश्वर प्रकाशित करता है, उसमें जरा सी भी तार्किकता, अहंकार, या आत्म-दंभ नहीं है। यहाँ यह बहुतायत से स्पष्ट है। यह तो बस एक छोटी सी बात है, लेकिन यदि तुम परमेश्वर के सार को नहीं समझते हो, यदि तुम्हारा हृदय यह पता लगाने की कोशिश नहीं करता है कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है और उसकी मनोवृत्ति क्या है, तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को नहीं जानोगे या परमेश्वर के स्वभाव की अभिव्यक्तियों एवं प्रकाशन को नहीं देखोगे। क्या यह ऐसा नहीं है? क्या तुम उससे सहमत हो जिसे मैंने अभी अभी तुम्हें समझाया था? आदम के कार्यों के प्रत्युत्तर में, परमेश्वर ने जोर से घोषणा नहीं की, "तुमने अच्छा किया। तुमने सही किया।" मैं सहमत हूँ। फिर भी, जो कुछ आदम ने किया परमेश्वर ने अपने हृदय में उसकी स्वीकृति दी, उसकी सराहना, एवं तारीफ की थी। सृष्टि के समय से यह पहला कार्य था जिसे मनुष्य ने उसके निर्देशन पर परमेश्वर के लिए किया था। यह कुछ ऐसा था जिसे मनुष्य ने परमेश्वर के स्थान पर और परमेश्वर की ओर से किया था। परमेश्वर की नज़रों में, यह उस बुद्धिमत्ता से उदय हुआ था जिसे परमेश्वर ने मनुष्य को प्रदान किया था। परमेश्वर ने इसे एक अच्छी चीज़, एवं एक सकारात्मक चीज़ के रूप में देखा था। जो कुछ आदम ने उस समय किया था वह मनुष्य पर परमेश्वर की बुद्धिमत्ता का पहला प्रकटीकरण था। परमेश्वर के दृष्टिकोण से यह एक उत्तम प्रकटीकरण था। जो कुछ मैं यहाँ तुम लोगों को बताना चाहता हूँ वह यह है कि जो उसके पास है एवं जो वह है और उसकी बुद्धिमत्ता के एक अंश को मनुष्य से जोड़ने में परमेश्वर का यह लक्ष्य था ताकि मानवजाति ऐसा जीवित प्राणी बन सके जो उसको प्रदर्शित करे। एक ऐसे जीवित प्राणी के लिए उसकी ओर से ऐसे कार्यों को करना बिलकुल वैसा था जिसे देखने हेतु परमेश्वर लालसा कर रहा था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से

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बुधवार, 3 जुलाई 2019

आदम के लिए परमेश्वर की आज्ञा

(उत्पत्ति 2:15-17) तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे। और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।"
क्या तुम लोगों को इन वचनों से कुछ मिला था? पवित्र शास्त्र का यह भाग तुम लोगों को कैसा महसूस कराता है? पवित्र शास्त्र से "आदम के लिए परमेश्वर की आज्ञा" के उद्धरण को क्यों लिया गया था? क्या अब तुम लोगों में से प्रत्येक के पास अपने-अपने मन में परमेश्वर और आदम की एक त्वरित तस्वीर है? तुम लोग कल्पना करने की कोशिश कर सकते हो: यदि तुम लोग उस दृश्य में एक पात्र होते, तो तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर किस के समान होगा? यह तस्वीर तुम लोगों को कौन सी भावनाओं का एहसास कराती है? यह एक द्रवित करनेवाली और दिल को छू लेनेवाली तस्वीर है। यद्यपि इसमें केवल परमेश्वर एवं मनुष्य ही है, फिर भी उनके बीच की घनिष्ठता ईर्ष्या के कितने योग्य है: परमेश्वर के प्रचुर प्रेम को मनुष्य को मुफ्त में प्रदान किया गया है, यह मनुष्य को घेरे रहता है; मनुष्य भोला भाला एवं निर्दोष, भारमुक्त एवं लापरवाह है, वह आनन्दपूर्वक परमेश्वर की दृष्टि के अधीन जीवन बिताता है; परमेश्वर मनुष्य के लिए चिंता करता है, जबकि मनुष्य परमेश्वर की सुरक्षा एवं आशीष के अधीन जीवन बिताता है; हर एक चीज़ जिसे मनुष्य करता एवं कहता है वह परमेश्वर से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ होता है और उससे अविभाज्य है।
तुम लोग कह सकते हो कि यह पहली आज्ञा है जिसे परमेश्वर ने मनुष्य को दिया था जब उसने उसे बनाया था। यह आज्ञा क्या उठाए हुए है? यह परमेश्वर की इच्छा को उठाए हुए है, परन्तु साथ ही यह मानवजाति के लिए उसकी चिंताओं को भी उठाए हुए है। यह परमेश्वर की पहली आज्ञा है, और साथ ही यह पहली बार भी है जब परमेश्वर मनुष्य के विषय में चिंता करता है। कहने का तात्पर्य है, जब से परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया उस घड़ी से उसके पास उसके प्रति एक ज़िम्मेदारी है। उसकी ज़िम्मेदारी क्या है? उसे मनुष्य की सुरक्षा करनी है, और मनुष्य की देखभाल करनी है। वह आशा करता है कि मनुष्य भरोसा कर सकता है और उसके वचनों का पालन कर सकता है। यह मनुष्य से परमेश्वर की पहली अपेक्षा भी है। इसी अपेक्षा के साथ परमेश्वर निम्नलिखित वचन कहता है: "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।" ये साधारण वचन परमेश्वर की इच्छा को दर्शाते हैं। वे यह भी प्रकट करते हैं कि परमेश्वर के हृदय ने पहले से ही मनुष्य के लिए चिंता प्रकट करना शुरू कर दिया है। सब चीज़ों के मध्य, केवल आदम को ही परमेश्वर के स्वरुप में बनाया गया था; आदम ही एकमात्र जीवित प्राणी था जिसके पास परमेश्वर के जीवन की श्वास है; वह परमेश्वर के साथ चल सकता था, परमेश्वर के साथ बात कर सकता है। इसी लिए परमेश्वर ने उसे एक ऐसी आज्ञा दी थी। परमेश्वर ने इस आज्ञा में बिलकुल साफ कर दिया था कि वह क्या कर सकता है, साथ ही साथ वह क्या नहीं कर सकता है।
इन कुछ साधारण वचनों में, हम परमेश्वर के हृदय को देखते हैं। लेकिन हम किस प्रकार का हृदय देखते हैं? क्या परमेश्वर के हृदय में प्रेम है? क्या इसके पास कोई चिंता है? इन वचनों में परमेश्वर के प्रेम एवं चिंता को न केवल लोगों के द्वारा सराहा जा सकता, लेकिन इसे भली भांति एवं सचमुच में महसूस भी किया जा सकता है। क्या यह ऐसा ही नहीं है? अब मैंने इन बातों को कहा है, क्या तुम लोग अब भी सोचते हो कि ये बस कुछ साधारण वचन हैं? इतने साधारण नहीं हैं, ठीक है? क्या तुम लोग इसे पहले से देख सकते थे? यदि परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से तुम्हें इन थोड़े से साधारण वचनों को कहा होता, तो तुम भीतर से कैसा महसूस करते? यदि तुम एक दयालु व्यक्ति नहीं हो, यदि तुम्हारा हृदय बर्फ के समान ठण्डा पड़ गया है, तो तुम कुछ भी महसूस नहीं करोगे, तुम परमेश्वर के प्रेम की सराहना नहीं करोगे, और तुम परमेश्वर के हृदय को समझने की कोशिश नहीं करोगे। लेकिन यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसके पास विवेक है, एवं मानवता है, तो तुम कुछ अलग महसूस करोगे। तुम सुखद महसूस करोगे, तुम महसूस करोगे कि तुम्हारी परवाह की जाती है और तुम्हें प्रेम किया जाता है, और तुम खुशी महसूस करोगे। क्या यह सही नहीं है? जब तुम इन चीज़ों को महसूस करते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रति किस प्रकार कार्य करोगे? क्या तुम परमेश्वर से जुड़ा हुआ महसूस करोगे? क्या तुम अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर से प्रेम और उसका सम्मान करोगे? क्या तुम्हारा हृदय परमेश्वर के और करीब जाएगा? तुम इससे देख सकते हो कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महत्वपूर्ण है? लेकिन जो और भी अधिक महत्वपूर्ण है वह परमेश्वर के प्रेम के विषय में मनुष्य की सराहना एवं समझ है। वास्तव में, क्या परमेश्वर ने अपने कार्य के इस चरण के दौरान ऐसी बहुत सी चीज़ों को नहीं कहा था? लेकिन क्या आज के लोग परमेश्वर के हृदय की सराहना करते हैं? क्या तुम लोग परमेश्वर की इच्छा का आभास कर सकते हो जिसके बारे में मैंने बस अभी-अभी कहा था? तुम लोग परमेश्वर की इच्छा को भी परख नहीं सकते हो जब यह इतना ठोस, स्पर्शगम्य, एवं यथार्थवादी है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोगों के पास परमेश्वर के विषय में वास्तविक ज्ञान एवं समझ नहीं है। क्या यह सत्य नहीं है? हम इस भाग में बस इतनी ही चर्चा करेंगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
और पढ़ें:प्रार्थना क्या है? “सच्ची प्रार्थना” का क्या मतलब है?

शनिवार, 15 जून 2019

परमेश्वर उदास कैसे न हो?



  • I
  • परमेश्वर ने तीखा, मीठा, कड़वा, खट्टा,
  • इंसानी अनुभव का हर स्वाद चखा है।
  • हवाओं में वो आता है, बरसात में चला जाता है।
  • परिवार की यातनाएँ भी झेली हैं उसने,
  • उतार-चढ़ाव भी ज़िन्दगी के देखे हैं उसने,
  • अपने देह से जुदा होने का ग़म भी झेला है उसने।
  • जब धरती पर आया परमेश्वर,
  • मुश्किलें जो झेलीं उसने उनकी ख़ातिर,
  • बजाय उसका स्वागत करने के, ठुकरा दिया "अदब से"
  • परमेश्वर के नेक इरादों को इंसान ने।
  • कैसे न उसका दिल दुखे, कैसे न वो उदास हो इससे?
  • II
  • इसी तरह का अंत पाने के लिए
  • क्या देहधारण किया परमेश्वर ने?
  • क्यों नहीं इंसान करता प्रेम परमेश्वर से?
  • क्यों दिया जाता है प्रतिदान उसके प्रेम का नफ़रत से?
  • क्या इसलिये कि परमेश्वर यातना सहे इसी तरह से?
  • III
  • चूँकि परमेश्वर ने मुश्किलें सहीं धरती पर,
  • इसलिये हमदर्दी के आँसू बहाए हैं इंसान ने।
  • उसकी बदकिस्मती के अन्याय की निंदा की इंसान ने।
  • परमेश्वर के दिल को सचमुच फिर भी किसने जाना है?
  • IV
  • कौन समझ सकता है उसके जज़्बात को?
  • परमेश्वर के लिये कभी गहरी चाहत थी इंसान में,
  • कामना करता था अक्सर अपने ख़्वाबों में उसकी।
  • धरती के निवासी मगर कैसे समझें स्वर्ग में इच्छा उसकी,
  • स्वर्ग में इच्छा उसकी?
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से
      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

अनुशंसित:मसीही गीत

मंगलवार, 11 जून 2019

परमेश्वर के वचन का न्याय इंसान को बचाने के लिये है

  • I
  • हालाँकि ताड़ना और न्याय के बहुत से वचन
  • कहे हैं तुम लोगों से परमेश्वर ने,
  • लागू नहीं किये गए हैं वे तुम लोगों पर,
  • हाँ, काम के तौर पर लागू नहीं किये गए हैं तुम लोगों पर।
  • परमेश्वर आया है अपना काम करने और वचन बोलने।
  • हालाँकि कठोर हो सकते हैं उसके वचन,
  • तुम्हारी भ्रष्टता के, विद्रोह के न्याय की ख़ातिर
  • बोले जाते हैं ये वचन।
  • ऐसा करके इंसान को नुकसान पहुँचाना
  • नहीं है परमेश्वर का मकसद,
  • बल्कि शैतान के प्रभुत्व से इंसान को बचाना है उसका मकसद।
  • परिणाम हासिल करना है परमेश्वर के कठोर वचनों का मकसद।
  • इसी कार्य-शैली से
  • खुद को जान सकता है इंसान,
  • अपने विद्रोही स्वभाव से पीछा छुड़ा सकता है इंसान।
  • हालाँकि कठोर हो सकते हैं परमेश्वर के वचन,
  • इंसान के उद्धार के लिये बोले जाते हैं ये वचन,
  • क्योंकि वो केवल वचन बोल रहा है,
  • इंसान की देह को सज़ा नहीं दे रहा है।
  • इंसान को रोशनी में जीने में मदद करते हैं ये वचन,
  • रोशनी का अस्तित्व है, ये बेशकीमती है बताते हैं ये वचन,
  • इंसान के लिये ये फ़ायदेमंद हैं, समझाते हैं ये वचन।
  • परमेश्वर उद्धार है, ज्ञान कराते हैं ये वचन।
  • II
  • वचनों के काम के बड़े मायने हैं:
  • सत्य को जानकर अमल में ला सकता है इंसान,
  • अपने स्वभाव में बदलाव ला सकता है इंसान,
  • ख़ुद को और परमेश्वर के काम को जान सकता है इंसान।
  • इस तरह बोलकर काम करने के ज़रिये ही
  • परमेश्वर और इंसान के बीच
  • बढ़ाया जा सकता है रिश्तों को।
  • और केवल वचन ही समझा सकते हैं सत्य को।
  • यह बेहतरीन तरीका है जीतने का इंसान को।
  • वचन बोलने के अलावा कोई तरीका,
  • नहीं है जिसके ज़रिये इंसान जान सके
  • सारे सत्य और परमेश्वर के सारे काम को।
  • अनजाने सत्य और राज़ उजागर करने,
  • इंसान को सत्य मार्ग और जीवन हासिल कराने,
  • अपने काम के अंतिम चरण में बोलता है परमेश्वर,
  • और इस तरह पूरी होती है इच्छा परमेश्वर की।
  • हालाँकि कठोर हो सकते हैं परमेश्वर के वचन,
  • इंसान के उद्धार के लिये बोले जाते हैं ये वचन,
  • क्योंकि वो केवल वचन बोल रहा है,
  • इंसान की देह को सज़ा नहीं दे रहा है।
  • इंसान को रोशनी में जीने में मदद करते हैं ये वचन,
  • रोशनी का अस्तित्व है, ये बेशकीमती है बताते हैं ये वचन,
  • इंसान के लिये ये फ़ायदेमंद हैं, समझाते हैं ये वचन।
  • परमेश्वर उद्धार है, ज्ञान कराते हैं ये वचन।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से
      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

अनुशंसित:मसीही गीत

गुरुवार, 30 मई 2019

Hindi Christian Video "विपरीत परिस्थितियों में मधुरता" क्लिप 2



चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने पागलपन के साथ धार्मिक विश्वास पर पूरी तरह से धावा बोला, उसे कुचला और प्रतिबंधित कर दियाI वह ईसाईयों को राज्य के मुख्य अपराधियों की तरह देखते हैI वह ईसाईयों को कुचलने, पकड़ने, सताने और यहाँ तक कि उनकी हत्या करने जैसी क्रांतिकारी कार्यवाही करने में भी संकोच नहीं करतीI इन चीजों को करने के पीछे उसके क्या कारण हैं? जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे परमेश्वर को महान मानकर उनका सत्कार करते हैंI वे परमेश्वर का सम्मान करते हैं और सत्य को खोजने और जीवन के उचित मार्ग पर चलने पर ध्यान केन्द्रित करते हैंI चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ईसाईयों को दुश्मन क्यों मानती है? वह परमेश्वर में विश्वास करने वालों की परस्पर-विरोधी क्यों हैं? यह वीडियो उन कारणों का पता लगाएगा कि क्यों चीनी कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक विश्वास को सताया करती है।
अनुशंसित:An Amazing Christian Testimony | Hindi Gospel Movie "विपरीत परिस्थितियों में मधुरता" (Hindi Dubbed)


      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं। (उत्पत्ति 19...