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गुरुवार, 20 जून 2019

दूसरे दिन, परमेश्वर के अधिकार ने मनुष्य के जीवित रहने के लिए जल का प्रबन्ध किया, और आसमान, और अंतरीक्ष को बनाया

आओ हम बाइबल के दूसरे अंश को पढ़ें: फिर परमेश्वर ने कहा, "जल के बीच एक अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।" तब परमेश्वर ने एक अन्तर बनाकर उसके नीचे के जल को और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया।(उत्पत्ति 1:6-7)। कौन सा परिवर्तन हुआ जब परमेश्वर ने कहा " जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए?" पवित्र शास्त्र में कहा गया हैः "तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल को और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा हो गया।" जब परमेश्वर ने ऐसा कहा और ऐसा किया तो परिणाम क्या हुआ? इसका उत्तर अंश के आखिरी भाग में हैं: "और ऐसा हो गया।"
इन दोनों छोटे वाक्यों में एक शोभायमान घटना दर्ज है, और एक बेहतरीन दृश्य का चित्रण करता है - एक भयंकर प्रारम्भ जिसमें परमेश्वर ने जल को नियन्त्रित किया, और एक अन्तर को बनाया जिसमें मनुष्य अस्तित्व में रह सकता है....।
इस तस्वीर में, आकाश का जल परमेश्वर की आँखों के सामने एकदम से प्रगट होता है, और वे परमेश्वर के वचनों के अधिकार के द्वारा विभाजित हो जाते हैं, और परमेश्वर के द्वारा निर्धारित रीति के अनुसार ऊपर के और नीचे के जल के रूप में अलग हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के द्वारा बनाए गए आकाश ने न केवल नीचे के जल को ढँका बल्कि ऊपर के जल को भी सँभाला....। इस में, मनुष्य बस टकटकी लगाकर देखने, भौंचक्का होने, और उस दृश्य के वैभव की तारीफ में आह भरने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है, जिसमें सृष्टिकर्ता ने जल को रूपान्तरित किया, और अपने अधिकार की सामर्थ से जल को आज्ञा दी, और आकाश को बनाया। परमेश्वर के वचनों, और परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर के अधिकार के द्वारा परमेश्वर ने एक और महान आश्चर्यकर्म को अंजाम दिया। क्या यह सृष्टिकर्ता की सामर्थ नहीं है? आओ हम परमेश्वर के कामों का बखान करने के लिए पवित्र शास्त्र का उपयोग करें: परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, और परमेश्वर के इन वचनों के द्वारा जल के मध्य में आकाश बन गया। उसी समय, परमेश्वर के इन वचनों के द्वारा आकाश के अन्तर में एक भयंकर परिवर्तन हुआ, और यह सामान्य रूप से परिवर्तित नहीं हुआ, बल्कि एक प्रकार का प्रतिस्थापन था जिसमें कुछ नहीं से कुछ बन गया। यह सृष्टिकर्ता के विचारों से उत्पन्न हुआ था, और सृष्टिकर्ता के बोले गए वचनो के द्वारा कुछ नहीं से कुछ बन गया, और, इसके अतिरिक्त, इस बिन्दु से आगे यह अस्तित्व में रहेगा और स्थिर बना रहेगा, और सृष्टिकर्ता के विचारों के मेल के अनुसार, यह सृष्टिकर्ता के लिए बदल जाएगा, और परिवर्तित होगा, और नया हो जाएगा। यह अंश सम्पूर्ण संसार की सृष्टि में सृष्टिकर्ता के दूसरे कार्य का उल्लेख करता है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ का एक और प्रदर्शन था, और सृष्टिकर्ता के एक और पहले कदम की शुरूआत थी। यह दिन जगत की नींव डालने के समय से लेकर दूसरा दिन था जिसे सृष्टिकर्ता ने बिताया था, और वह उसके लिए एक और बेहतरीन दिन थाः वह उजियाले के बीच में चला, आकाश को लाया, उसने जल का प्रबन्ध किया, और उसके कार्य, उसका अधिकार, और उसकी सामर्थ उस नए दिन में काम करने के लिए एक हो गए थे.....।
परमेश्वर के द्वारा इन वचनों को कहने से पहले क्या आकाश जल के मध्य में था? बिलकुल नहीं! और परमेश्वर के ऐसा कहने के बाद क्या हुआ "फिर परमेश्वर ने कहा कि जल के बीच में एक ऐसा अन्तर हो?" परमेश्वर के द्वारा इच्छित चीज़ें प्रगट हो गई थीं; जल के मध्य में आकाश था, और जल विभाजित हो गया क्योंकि परमेश्वर ने कहा था "कि जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो जाए कि जल दो भाग हो जाए।" इस तरह से, परमेश्वर के वचनों का अनुसरण करके, परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ के परिणामस्वरूप दो नए पदार्थ, नई जन्मीं दो चीज़ें सब वस्तुओं के मध्य प्रगट हुईं। और इन दो नई चीज़ों के प्रकटीकरण से तुम लोग कैसा महसूस करते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता की सामर्थ की महानता का एहसास करते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता के अद्वितीय और असाधारण बल का एहसास करते हो? ऐसे बल और सामर्थ की महानता परमेश्वर के अधिकार के कारण है, और यह अधिकार स्वयं परमेश्वर का प्रदर्शन है और स्वयं परमेश्वर का एक अद्वितीय गुण है।
क्या यह अंश तुम लोगों को परमेश्वर की अद्वितीयता का एक और गहरा एहसास देता है? परन्तु यह पर्याप्तता से कहीं बढ़कर है; सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ इससे कहीं दूर तक जाता है। उसकी अद्वितीयता मात्र इसलिए नहीं है क्योंकि वह किसी अन्य जीव से अलग हस्ती धारण किए हुए है, परन्तु क्योंकि उसका अधिकार और सामर्थ असाधारण है, साथ ही असीमित, सबसे बढ़कर, और चमत्कार करने वाला है, और, उससे भी बढ़कर, उसका अधिकार और जो उसके पास है और उसका अस्तित्व जीवन की सृष्टि कर सकता है और चमत्कारों को बना सकता है, और वह प्रत्येक और हर एक कौतुहलपूर्ण और असाधारण मिनट और सैकण्ड की सृष्टि कर सकता है, और उसी समय में, वह उस जीवन पर शासन करने में सक्षम है जिसकी वह सृष्टि करता है, और चमत्कारों और हर मिनट और सैकण्ड जिसे उसने बनाया उसके ऊपर संप्रभुता रखता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
और पढ़ें:प्रार्थना क्या है - प्रार्थना का महत्व जानें - सीखें कि प्रार्थना कैसे करें

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

परमेश्वर को भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से क्यों पुकारा जाता है?

अध्याय 2 तुम्हें परमेश्वर के नामों की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।
      2. परमेश्वर को भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से क्यों पुकारा जाता है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

      प्रत्येक युग में,परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है;वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है?वह पुराने सेकैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्यहेतु लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा तो तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा?क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं कि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक ही नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? इस तरह, भिन्न युग में परमेश्वर को भिन्न नाम के द्वारा अवश्य बुलाया जाना चाहिए, उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए नाम का उपयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से परमेश्वर स्वयं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। और प्रत्येक नाम केवल एक निश्चित युग के दौरान परमेश्वर के स्वभाव का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है और प्रत्येक नाम केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए आवश्यक है। इसलिए, समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर अपने स्वभाव के लिए हितकारी किसी भी नाम को चुन सकता है।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

"यहोवा" वह नाम है जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोग) का परमेश्वर जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन दे सकता है। इसका अर्थ है वह परमेश्वर जिसके पास बड़ी सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है।…अर्थात्, केवल यहोवा ही इस्राएल के चुने हुए लोगों का परमेश्वर, इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, मूसा का परमेश्वर, और इस्राएल के सभी लोगों का परमेश्वर है। और इसलिए वर्तमान युग में, यहूदा के कुटुम्ब के अलावा सभी इस्राएली यहोवा की आराधना करते हैं।…यहोवा का नाम इस्राएल के लोगों के लिए एक विशेष नाम है जो व्यवस्था के अधीन जीए थे। प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में, मेरा नाम आधारहीन नहीं है, किन्तु प्रतिनिधिक महत्व रखता हैः प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से

      व्यवस्था के युग के दौरान, मानव जाति के मार्गदर्शन का कार्य यहोवा के नाम के अधीन किया गया था, और कार्य का पहला चरण पृथ्वी पर किया गया था। इस चरण का कार्य मंदिर और वेदी का निर्माण करना, और इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था का उपयोग करना और उनके बीच कार्य करना था। इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करके, उसने पृथ्वी पर अपने कार्य के लिए एक आधार स्थापित किया। इस आधार से, उसने अपने कार्य का विस्तार इस्राइल से बाहर किया, जिसका अर्थ है, कि इस्राएल से शुरू करके, उसने अपने कार्य का बाहर की ओर विस्तार किया, जिसकी वजह से बाद की पीढ़ियों को धीरे-धीरे पता चला कि यहोवा परमेश्वर था, और यह कि यहोवा ने ही स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का निर्माण किया था, सभी प्राणियों को बनाया था। उसने इस्राएल के लोगों के माध्यम से अपने कार्यको फैलाया। इस्राएल की भूमि पृथ्वी पर यहोवा के कार्य का पहला पवित्र स्थान था, और पृथ्वी पर परमेश्वर का सबसे पहले का कार्य पूरे इस्राएल देश में किया गया था। वह व्यवस्था के युग का कार्य था।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

      यीशु के नाम ने अनुग्रह के युग की शुरुआत को प्रख्यात किया। जब यीशु ने अपनी सेवकाई आरंभ की, तो पवित्र आत्मा ने यीशु के नाम की गवाही देनी आरंभ कर दी, और यहोवा का नाम अब और नहीं बोला जा रहा था, और इसके बजाय पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से नया कार्य आरंभ किया था। जो यीशु में विश्वास करते थे उन लोगों की गवाही, यीशु मसीह के लिए थी, और उन्होंने जो कार्य किया वह भी यीशु मसीह के लिए था। पुराने विधान के व्यवस्था के युग का निष्कर्ष यह था कि मुख्य रूप से यहोवा के नाम पर आयोजित किया गया कार्य समापन पर पहुँच गया था। इसके बाद, परमेश्वर का नाम यहोवा अब और नहीं था अब परमेश्वर का नाम यहोवा नहीं रह गया था; इसके बजाय उसे यीशु कहा जाता था, और यहाँ से पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम के अधीन कार्य करना आरंभ किया।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

      "यीशु" इम्मानुएल है, और इसका मतलब है वह पाप बलि जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा देता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबन्धन योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है।…केवल यीशु ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला है। यीशु वह पाप बलि है जिसने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिलाया है। जिसका अर्थ है, कि यीशु का नाम अनुग्रह के युग से आया, और अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य के कारण विद्यमान रहा। अनुग्रह के युग के लोगों को आध्यात्मिक रूप से पुनर्जीवित किए जाने और उनका उद्धार किए जाने हेतु अनुमति देने के लिए यीशु का नाम विद्यमान था, और यीशु का नाम पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है। और इस प्रकार यीशु का नाम छुटकारे के कार्य को दर्शाता है, और अनुग्रह के युग का द्योतक है।…"यहोवा" व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और यह उस परमेश्वर के लिए सम्मानसूचक है जिसकी आराधना इस्राएल के लोगों के द्वारा की जाती है।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से

      व्यवस्था के युग के दौरान, मानव जाति के मार्गदर्शन का कार्य यहोवा के नाम के अधीन किया गया था, और कार्य का पहला चरण पृथ्वी पर किया गया था। इस चरण का कार्य मंदिर और वेदी का निर्माण करना, और इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था का उपयोग करना और उनके बीच कार्य करना था। इस्राएल के लोगों का मार्गदर्शन करके, उसने पृथ्वी पर अपने कार्य के लिए एक आधार स्थापित किया। इस आधार से, उसने अपने कार्य का विस्तार इस्राइल से बाहर किया, जिसका अर्थ है, कि इस्राएल से शुरू करके, उसने अपने कार्य का बाहर की ओर विस्तार किया, जिसकी वजह से बाद की पीढ़ियों को धीरे-धीरे पता चला कि यहोवा परमेश्वर था, और यह कि यहोवा ने ही स्वर्ग और पृथ्वी का और सभी चीजों का निर्माण किया था, सभी प्राणियों को बनाया था। उसने इस्राएल के लोगों के माध्यम से अपने कार्यको फैलाया। इस्राएल की भूमि पृथ्वी पर यहोवा के कार्य का पहला पवित्र स्थान था, और पृथ्वी पर परमेश्वर का सबसे पहले का कार्य पूरे इस्राएल देश में किया गया था। वह व्यवस्था के युग का कार्य था।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

      और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा, या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं, बल्कि मुझे स्वयं सामर्थ्यवान सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के अंतर्गत मैं समस्त युग को समाप्त करूँगा। एक समय मुझे यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीह भी कहा जाता था, और लोगों ने एक बार मुझे उद्धारकर्त्ता यीशु कहा था क्योंकि वे मुझ से प्रेम करते थे और मेरा आदर करते थे। किन्तु आज मैं वह यहोवा और यीशु नहीं हूँ जिसे लोग बीते समयों में जानते थे—मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आ गया है, वह परमेश्वर जो युग को समाप्त करेगा। वह परमेश्वर मैं स्वयं हूँ जो अपने स्वभाव की परिपूर्णता के साथ, और अधिकार, आदर एवं महिमा से भरपूर होकर पृथ्वी के अंतिम छोर से उदय होता हूँ। लोग कभी भी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और मेरे स्वभाव के प्रति हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक, एक मनुष्य ने भी मुझे नहीं देखा है। यह वह परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है किन्तु वह मनुष्य के बीच में छिपा हुआ है। वह, सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भर हुआ, धधकते हुए सूरज और दहकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसका न्याय मेरे वचनों के द्वारा नहीं किया जाएगा, और कोई ऐसा मनुष्य या चीज़ नहीं है जिसे आग की जलती हुई लपटों के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः, मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हों जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्त्ता हूँ जो वापस लौट आया है, मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है, और मैं एक समय मनुष्य के लिए पाप बलि था, किन्तु अंत के दिनों में मैं सूरज की आग की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों का मेरा कार्य ऐसा ही है। मैंने इस नाम को अपनाया है और मेरा यह स्वभाव है ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं धर्मी परमेश्वर हूँ, और धधकता हुआ सूरज हूँ, और दहकती हुई आग हूँ। ऐसा इसलिए है ताकि सभी मेरी, एकमात्र सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें: मैं न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर हूँ, और न मात्र छुटकारा दिलाने वाला हूँ—मैं समस्त आकाश और पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से

      मसीह के आने की भविष्यवाणी की गई थी, तो फिर क्यों यीशु नाम का एक व्यक्ति आया? परमेश्वर का नाम क्यों बदला गया? क्या इस तरह का कार्य काफी समय पहले नहीं किया गया था? क्या परमेश्वर आज के दिन कोई नया कार्य नहीं कर सकता है? कल का कार्य बदला जा सकता है, और यीशु का कार्य यहोवा के कार्य के बाद नहीं आ सकता है। क्या यीशु के कार्य के बाद कोई अन्य कार्य नहीं हो सकता है? यदि यहोवा का नाम बदल कर यीशु हो सकता है, तो क्या यीशु का नाम भी नहीं बदला जा सकता है? यह असामान्य नहीं है, और लोग ऐसा[क] केवल अपनी नासमझी के कारण सोचते हैं। परमेश्वर हमेशा परमेश्वर ही रहेगा। उसके कार्य और नाम में परिवर्तन की परवाह किए बिना, उसका स्वभाव और विवेक हमेशा अपरिवर्तित रहता है, वह कभी भी नहीं बदलेगा। यदि तुम मानते हो कि परमेश्वर केवल यीशु के नाम से ही पुकारा जा सकता है, तो तुम्हें बहुत कम ज्ञान है। क्या तुम यह दृढ़तापूर्वक कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर का नाम यीशु हमेशा के लिए है, और परमेश्वर हमेशा और निरंतर यीशु के ही नाम से जाना जाएगा, और कि यह कभी नहीं बदलेगा? क्या तुम यह निश्चितता से दृढ़तापूर्वक कहने का साहस कर सकते हो कि यह यीशु का नाम ही है जिसने व्यवस्था के युग का समापन किया और अंतिम युग का भी समापन करता है? कौन कह सकता है कि यीशु का अनुग्रह युग का समापन कर सकता है?

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "वह मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर के प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है जिसने उसे अपनी ही धारणाओं में परिभाषित किया है?" से

      यदि प्रत्येक युग में परमेश्वर का कार्य हमेशा एक ही होता है, और उसे हमेशा उसी नाम से बुलाया जाता है, तो मनुष्य उसे कैसे जान पाता? परमेश्वर को यहोवा अवश्य कहा जाना चाहिए, और यहोवा कहे जाने वाले किसी परमेश्वर के अलावा किसी अन्य नाम से कहा जाने वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर नहीं है। वरना परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है, और परमेश्वर को यीशु के सिवाय किसी भी अन्य नाम से नहीं बुलाया जा सकता है; यीशु के अलावा, यहोवा परमेश्वर नहीं है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी परमेश्वर नहीं है। मनुष्य का मानना ​​है कि यह सत्य है कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, किन्तु परमेश्वर मनुष्य के साथ एक परमेश्वर है; उसे यीशु अवश्य कहा जाना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के साथ है। ऐसा करना सिद्धांत का पालन करना है, और एक दायरे में परमेश्वर को बाधित करना है। इसलिए, जो कार्य परमेश्वर हर युग में करता है, वह नाम जिससे उसे बुलाया जाता है, और वह छवि जिसे वह अपनाता है, और आज तक उसके कार्य का प्रत्येक चरण, एक भी विनियम का पालन नहीं करते हैं, और किसी भी बाध्यता के अधीन नहीं हैं। वह यहोवा है, किन्तु वह यीशु भी है, और साथ ही मसीहा, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी है। उसका कार्य धीरे-धीरे बदल सकता है, और उसके नाम में भी अनुरूपी परिवर्तन होते हैं। कोई भी अकेला नाम पूरी तरह से उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, किन्तु वे सभी नाम जिनसे उसे बुलाया जाता है, उसका प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होते हैं, और प्रत्येक युग में उसके द्वारा किया गया कार्य उसके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

      हर बार जब परमेश्वर पृथ्वी पर आएगा, तो वह अपना नाम, अपना लिंग, अपनी छवि, और अपना कार्य बदल देगा; वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है, और वह हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है। जब वह पहले आया, उसे यीशु कहा गया था; जब वह इस बार फिर से आता है तो क्या उसे अभी भी यीशु कहा जा सकता है?… ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किन्तु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता का संकेत करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता है कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य हमेशा वैसा ही बना रहता है, तो क्या वह अपनी छः-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना को पूरा करने में सक्षम होगा? तुम केवल यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा ही अपरिवर्तनीय है, किन्तु क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है?

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

      और इसलिए, हर बार जब परमेश्वर आता है, तो उसे एक नाम से बुलाया जाता है, वह एक युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह एक नया मार्ग खोलता है; और प्रत्येक नए मार्ग पर, वह एक नया नाम अपनाता है, जो दर्शाता है कि परमेश्वर हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं पड़ता है, और यह कि उसका कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है। इतिहास हमेशा आगे बढ़ रहा है, और परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है। उसकी छः-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना के अंत तक पहुँचने के लिए, इसे अवश्य आगे प्रगति करते रहना चाहिए। प्रत्येक दिन उसे नया कार्य अवश्य करना चाहिए, प्रत्येक वर्ष उसे नया कार्य अवश्य करना चाहिए; उसे नए मार्गों को अवश्य खोलना चाहिए, अवश्य नए युगों को आरंभ करना चाहिए, नया और अधिक बड़ा कार्य आरंभ करना चाहिए और नए नाम और नया कार्य लाना चाहिए।

      "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

      वह दिन आ जाएगा जब परमेश्वर को यहोवा, यीशु या मसीहा नहीं कहा जाएगा—वह केवल सृष्टिकर्ता कहलाएगा। उस समय, वे सभी नाम जो उसने पृथ्वी पर धारण किए थे समाप्त हो जाएँगे, क्योंकि पृथ्वी पर उसका कार्य समाप्त हो गया होगा, जिसके बाद उसका कोई नाम नहीं होगा। जब सभी चीजें सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन आ जाती हैं, तो उसे अत्यधिक उपयुक्त फिर भी अपूर्ण नाम से क्यों बुलाएँ? क्या तुम अभी भी परमेश्वर के नाम की तलाश करते हो? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यहोवा ही कहा जाता है? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है? क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिन्दा का पाप सहन कर सकते हो?

       "वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

फुटनोटः

क. मूलपाठ में "जो है" पढ़ा जाता है।

स्रोत



बुधवार, 17 अप्रैल 2019

परमेश्वर नामों को क्यों अपनाता है, क्या एक ही नाम परमेश्वर की सम्पूर्णता का प्रतिनिधित्व कर सकता है?

अध्याय 2 तुम्हें परमेश्वर के नामों की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

1. परमेश्वर नामों को क्यों अपनाता है, क्या एक ही नाम परमेश्वर की सम्पूर्णता का प्रतिनिधित्व कर सकता है?


परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

क्या यीशु का नाम, "परमेश्वर हमारे साथ," परमेश्वर के स्वभाव को उसकी समग्रता से व्यक्त कर सकता है? क्या यह पूरी तरह से परमेश्वर को स्पष्ट कर सकता है? यदि मनुष्य कहता है कि परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है, और उसका कोई अन्य नाम नहीं हो सकता है क्योंकि परमेश्वर अपना स्वभाव नहीं बदल सकता है, तो ऐसे वचन ईशनिन्दा हैं! क्या तुम मानते हो कि यीशु नाम, परमेश्वर हमारे साथ, परमेश्वर का समग्रता से प्रतिनिधित्व कर सकता है? परमेश्वर को कई नामों से बुलाया जा सकता है, किन्तु इन कई नामों के बीच, एक भी ऐसा नहीं है जो परमेश्वर के स्वरूप को सारगर्भित रूप से व्यक्त कर सकता हो, एक भी ऐसा नहीं जो परमेश्वर का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व कर सकता हो। और इसलिए परमेश्वर के कई नाम हैं, किन्तु ये बहुत से नाम परमेश्वर के स्वभाव को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव अत्यधिक समृद्ध है, और मनुष्य के ज्ञान से परे विस्तारित है। मनुष्य की भाषा परमेश्वर की समस्त विशेषताओं को पूरी तरह से सारगर्भित रूप से व्यक्त करने में असमर्थ है। मनुष्य के पास परमेश्वर के स्वभाव के बारे में जो सब वह जानता है उसे सारगर्भित रूप से व्यक्त करने के लिए सीमित शब्दावली है: महान, आदरणीय, चमत्कारिक, अथाह, सर्वोच्च, पवित्र, धर्मी, बुद्धिमान इत्यादि। बहुत से शब्द! इतनी सीमित शब्दावली उस बात का वर्णन करने में असमर्थ है जो तुच्छ मनुष्य ने परमेश्वर के स्वभाव में देखी है। बाद में, कई लोगों ने अपने हृदय के उत्साह का बेहतर ढंग से वर्णन करने के लिए और शब्द जोड़े : परमेश्वर बहुत महान है! परमेश्वर अत्यंत पवित्र है! परमेश्वर अत्यंत प्यारा है! आज, ऐसी उक्तियाँ अपने चरम पर पहुँच गई हैं, फिर भी मनुष्य अभी भी परमेश्वर को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में असमर्थ है। और इसलिए, मनुष्य के लिए, परमेश्वर के कई नाम हैं, तब भी उसका कोई एक नाम नहीं है,और ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर का अस्तित्व अत्यधिक भरपूर है, और मनुष्य की भाषा अत्यधिक अपर्याप्त है। एक विशेष शब्द या नाम परमेश्वर का उसकी समग्रता में प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। तो क्या परमेश्वर एक निश्चित नाम धारण कर सकताहै? परमेश्वर इतना महान और पवित्र है, तो तुम उसे प्रत्येक नए युग में अपना नाम बदलने की अनुमति क्यों नहीं देते हो? वैसे तो, प्रत्येक युग में जिसमें परमेश्वर स्वयं अपना कार्य करता है, वह एक नाम का उपयोग करता है, जो उसके द्वारा किए गए कार्य की समस्त विशेषताओं को सारगर्भित रूप से व्यक्त करने के लिए युग के अनुकूल होता है। वह उस युग क अपने स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस विशेष नाम, एक नाम जो युग के महत्व से सम्पन्न है, का उपयोग करता है। परमेश्वर अपने स्वयं के स्वभाव को व्यक्त करने के लिए मनुष्य की भाषा का उपयोग करता है। फिर भी, बहुत से लोग जिन्हें आध्यात्मिक अनुभव हो चुके हैं और जिन्होंने परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से देखा है, अभी भी महसूस करते हैं कि एक विशेष नाम परमेश्वर का उसकी समग्रता से प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है—और यह कितनी दयनीय बात है! इसलिए मनुष्य परमेश्वर को किसी भी नाम से नहीं बुलाता है, और उसे केवल "परमेश्वर" कहता है। मनुष्य का हृदय प्रेम से भरा हुआ प्रतीत होता है, फिर भी यह विरोधाभासों से आक्रांत हुआ भी प्रतीत होता है, क्योंकि मनुष्य नहीं जानता है कि परमेश्वर की व्याख्या कैसे की जाए। परमेश्वर जो है वह अत्यधिक भरपूर है, इसका वर्णन करने का कोई तरीका ही नहीं है। कोई भी अकेला ऐसा नाम नहीं है जो परमेश्वर के स्वभाव को संक्षेप में प्रस्तुत कर सकता हो, और कोई भी अकेला ऐसा नाम नहीं है जो परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन कर सकता हो। यदि कोई मुझसे पूछेगा, "वास्तव में तुम किस नाम का उपयोग करते हो?" मैं उन्हें बताऊँगा, "परमेश्वर परमेश्वर है!" क्या यह परमेश्वर के लिए सर्वोत्तम नाम नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव को सर्वोत्तम सारगर्भित रूप से व्यक्त करना नहीं है? तो परमेश्वर के नाम की तलाश में इतना प्रयास क्यों लगाएँ? एक नाम के वास्ते,भोजन और नींद के बिना, इतना बारीकी से विचार क्यों करें? वह दिन आ जाएगा जब परमेश्वर को यहोवा, यीशु या मसीहा नहीं कहा जाएगा—वह केवल सृष्टिकर्ता कहलाएगा। उस समय, वे सभी नाम जो उसने पृथ्वी पर धारण किए थे समाप्त हो जाएँगे, क्योंकि पृथ्वी पर उसका कार्य समाप्त हो गया होगा, जिसके बाद उसका कोई नाम नहीं होगा।…तुम्हें पता होना चाहिए कि मूल रूप से परमेश्वर का का कोई नाम नहीं था। उसने केवल एक, या दो या कई नाम धारण किए क्योंकि उसके पास करने के लिए काम था और उसे मानव जाति का प्रबंधन करना था। चाहे उसे किसी भी नाम से बुलाया जाए, क्या यह उसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से चुना नहीं जाता है? क्या इसे तय करने के लिए उसे तुम्हारी, एक प्राणी की, आवश्यकता है? जिस नाम से परमेश्वर को बुलाया जाता है वह उसके अनुसार है जिसे मनुष्य समझ सकता है और मनुष्य की भाषा के अनुसार है, किन्तु इस नाम को मनुष्य द्वारा समस्त विशेषताओं के साथ सारगर्भित रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है। तुम केवल इतना ही कह सकते हो कि स्वर्ग में एक परमेश्वर है, कि वह परमेश्वर कहलाता है, कि वह महान सामर्थ्य वाला, अत्यधिक बुद्धिमान, अत्यधिक उच्च, अत्यधिक चमत्कारिक, अत्यधिक रहस्यमय, अत्यधिक सर्वशक्तिमान परमेश्वर स्वयं है, और तुम इससे अधिक नहीं कह सकते हो; तुम्हें बस इतना ही पता है। इस तरह, क्या यीशु का अकेला नाम परमेश्वर स्वयं का प्रतिनिधित्व कर सकता है?

"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से

प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में, मेरा नाम आधारहीन नहीं है, किन्तु प्रतिनिधिक महत्व रखता हैः प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है। "यहोवा" व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और यह उस परमेश्वर के लिए सम्मानसूचक है जिसकी आराधना इस्राएल के लोगों के द्वारा की जाती है। "यीशु" अनुग्रह के युग को दर्शाता है, और यह उन सब के परमेश्वर का नाम है जिन्हें अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारा दिया गया था। यदि मनुष्य तब भी अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्त्ता यीशु के आगमन की अभिलाषा करता है, और तब भी उस से अपेक्षा करता है कि वह उस प्रतिरूप में आए जो उसने यहूदिया में धारण किया था, तो छः हज़ार सालों की सम्पूर्ण प्रबन्धन योजना छुटकारे के युग में रूक जाएगी, और थोड़ी सी भी प्रगति करने में अक्षम होगी। इसके अतिरिक्त, अंत के दिन का आगमन कभी नहीं होगा, और युग का समापन कभी नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि उद्धारकर्त्ता यीशु सिर्फ मानवजाति के छुटकारे और उद्धार के लिए है। मैंने अनुग्रह के युग के सभी पापियों के लिए यीशु का नाम अपनाया था, और यह वह नाम नहीं है जिसके द्वारा मैं पूरी मानवजाति को समाप्त करूँगा। यद्यपि यहोवा, यीशु, और मसीहा सभी मेरे पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, किंतु ये नाम मेरी प्रबन्धन योजना में केवल विभिन्न युगों के द्योतक हैं, और मेरी सम्पूर्णता में मेरा प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। ऐसे नाम जिनके द्वारा पृथ्वी के लोग मुझे पुकारते हैं मेरे सम्पूर्ण स्वभाव को और वह सब कुछ जो मैं हूँ उसे स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते हैं। वे मात्र अलग-अलग नाम हैं जिनके द्वारा विभिन्न युगों के दौरान मुझे पुकारा जाता है। और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा, या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं, बल्कि मुझे स्वयं सामर्थ्यवान सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के अंतर्गत मैं समस्त युग को समाप्त करूँगा।

"वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से

शनिवार, 9 मार्च 2019

33. बाइबल में यह कहा गया है कि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों के बीच कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, एकमात्र उद्धारकर्ता यीशु मसीह हैं, कल भी वे ही थे, आज भी वे ही हैं, और सदा के लिए वे ही रहेंगे। लेकिन आज आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हैं?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा" (प्रकाशितवाक्य 3:12)।
परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर की चमत्कारिकता, परमेश्वर की धार्मिकता, और परमेश्वर का प्रताप कभी नहीं बदलेंगे। उसका सार और उसका स्वरूप कभी नहीं बदलेगा। उसका कार्य, हालाँकि, हमेशा आगे प्रगति कर रहा है और हमेशा गहरा होता जा रहा है, क्योंकि वह हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किन्तु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता का संकेत करता है।

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं। (उत्पत्ति 19...