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गुरुवार, 20 जून 2019

दूसरे दिन, परमेश्वर के अधिकार ने मनुष्य के जीवित रहने के लिए जल का प्रबन्ध किया, और आसमान, और अंतरीक्ष को बनाया

आओ हम बाइबल के दूसरे अंश को पढ़ें: फिर परमेश्वर ने कहा, "जल के बीच एक अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।" तब परमेश्वर ने एक अन्तर बनाकर उसके नीचे के जल को और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया।(उत्पत्ति 1:6-7)। कौन सा परिवर्तन हुआ जब परमेश्वर ने कहा " जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए?" पवित्र शास्त्र में कहा गया हैः "तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल को और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा हो गया।" जब परमेश्वर ने ऐसा कहा और ऐसा किया तो परिणाम क्या हुआ? इसका उत्तर अंश के आखिरी भाग में हैं: "और ऐसा हो गया।"
इन दोनों छोटे वाक्यों में एक शोभायमान घटना दर्ज है, और एक बेहतरीन दृश्य का चित्रण करता है - एक भयंकर प्रारम्भ जिसमें परमेश्वर ने जल को नियन्त्रित किया, और एक अन्तर को बनाया जिसमें मनुष्य अस्तित्व में रह सकता है....।
इस तस्वीर में, आकाश का जल परमेश्वर की आँखों के सामने एकदम से प्रगट होता है, और वे परमेश्वर के वचनों के अधिकार के द्वारा विभाजित हो जाते हैं, और परमेश्वर के द्वारा निर्धारित रीति के अनुसार ऊपर के और नीचे के जल के रूप में अलग हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के द्वारा बनाए गए आकाश ने न केवल नीचे के जल को ढँका बल्कि ऊपर के जल को भी सँभाला....। इस में, मनुष्य बस टकटकी लगाकर देखने, भौंचक्का होने, और उस दृश्य के वैभव की तारीफ में आह भरने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है, जिसमें सृष्टिकर्ता ने जल को रूपान्तरित किया, और अपने अधिकार की सामर्थ से जल को आज्ञा दी, और आकाश को बनाया। परमेश्वर के वचनों, और परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर के अधिकार के द्वारा परमेश्वर ने एक और महान आश्चर्यकर्म को अंजाम दिया। क्या यह सृष्टिकर्ता की सामर्थ नहीं है? आओ हम परमेश्वर के कामों का बखान करने के लिए पवित्र शास्त्र का उपयोग करें: परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, और परमेश्वर के इन वचनों के द्वारा जल के मध्य में आकाश बन गया। उसी समय, परमेश्वर के इन वचनों के द्वारा आकाश के अन्तर में एक भयंकर परिवर्तन हुआ, और यह सामान्य रूप से परिवर्तित नहीं हुआ, बल्कि एक प्रकार का प्रतिस्थापन था जिसमें कुछ नहीं से कुछ बन गया। यह सृष्टिकर्ता के विचारों से उत्पन्न हुआ था, और सृष्टिकर्ता के बोले गए वचनो के द्वारा कुछ नहीं से कुछ बन गया, और, इसके अतिरिक्त, इस बिन्दु से आगे यह अस्तित्व में रहेगा और स्थिर बना रहेगा, और सृष्टिकर्ता के विचारों के मेल के अनुसार, यह सृष्टिकर्ता के लिए बदल जाएगा, और परिवर्तित होगा, और नया हो जाएगा। यह अंश सम्पूर्ण संसार की सृष्टि में सृष्टिकर्ता के दूसरे कार्य का उल्लेख करता है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ का एक और प्रदर्शन था, और सृष्टिकर्ता के एक और पहले कदम की शुरूआत थी। यह दिन जगत की नींव डालने के समय से लेकर दूसरा दिन था जिसे सृष्टिकर्ता ने बिताया था, और वह उसके लिए एक और बेहतरीन दिन थाः वह उजियाले के बीच में चला, आकाश को लाया, उसने जल का प्रबन्ध किया, और उसके कार्य, उसका अधिकार, और उसकी सामर्थ उस नए दिन में काम करने के लिए एक हो गए थे.....।
परमेश्वर के द्वारा इन वचनों को कहने से पहले क्या आकाश जल के मध्य में था? बिलकुल नहीं! और परमेश्वर के ऐसा कहने के बाद क्या हुआ "फिर परमेश्वर ने कहा कि जल के बीच में एक ऐसा अन्तर हो?" परमेश्वर के द्वारा इच्छित चीज़ें प्रगट हो गई थीं; जल के मध्य में आकाश था, और जल विभाजित हो गया क्योंकि परमेश्वर ने कहा था "कि जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो जाए कि जल दो भाग हो जाए।" इस तरह से, परमेश्वर के वचनों का अनुसरण करके, परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ के परिणामस्वरूप दो नए पदार्थ, नई जन्मीं दो चीज़ें सब वस्तुओं के मध्य प्रगट हुईं। और इन दो नई चीज़ों के प्रकटीकरण से तुम लोग कैसा महसूस करते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता की सामर्थ की महानता का एहसास करते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता के अद्वितीय और असाधारण बल का एहसास करते हो? ऐसे बल और सामर्थ की महानता परमेश्वर के अधिकार के कारण है, और यह अधिकार स्वयं परमेश्वर का प्रदर्शन है और स्वयं परमेश्वर का एक अद्वितीय गुण है।
क्या यह अंश तुम लोगों को परमेश्वर की अद्वितीयता का एक और गहरा एहसास देता है? परन्तु यह पर्याप्तता से कहीं बढ़कर है; सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ इससे कहीं दूर तक जाता है। उसकी अद्वितीयता मात्र इसलिए नहीं है क्योंकि वह किसी अन्य जीव से अलग हस्ती धारण किए हुए है, परन्तु क्योंकि उसका अधिकार और सामर्थ असाधारण है, साथ ही असीमित, सबसे बढ़कर, और चमत्कार करने वाला है, और, उससे भी बढ़कर, उसका अधिकार और जो उसके पास है और उसका अस्तित्व जीवन की सृष्टि कर सकता है और चमत्कारों को बना सकता है, और वह प्रत्येक और हर एक कौतुहलपूर्ण और असाधारण मिनट और सैकण्ड की सृष्टि कर सकता है, और उसी समय में, वह उस जीवन पर शासन करने में सक्षम है जिसकी वह सृष्टि करता है, और चमत्कारों और हर मिनट और सैकण्ड जिसे उसने बनाया उसके ऊपर संप्रभुता रखता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
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