घर

परमेश्वर के शासन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
परमेश्वर के शासन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 30 जून 2019

सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन, सभी चीज़ें पूर्ण हैं

      परमेश्वर के द्वारा सब वस्तुओं की सृष्टि की गई, जिन में वे शामिल हैं जो चल फिर सकते थे और वे जो चल फिर नहीं सकते थे, जैसे पक्षी और मछलियाँ, जैसे वृक्ष और फूल, और जिसमें पशुओं का झुण्ड, कीड़े मकौड़े, और छठवें दिन बनाए गए जंगली जानवर भी शामिल थ—वे सभी परमेश्वर के साथ अच्छे से थे, और, इसके अतिरिक्त, परमेश्वर की निगाहों में ये वस्तुएँ उसकी योजना के अनुरूप थे, और पूर्णता के शिखर को प्राप्त कर चुके थे, और एक ऐसे स्तर तक पहुँच गए थे जिस तक पहुँचाने की परमेश्वर ने अभिलाषा की थी। कदम दर कदम, सृष्टिकर्ता ने उन कार्यों को किया जो वह अपनी योजना के अनुसार करने का इरादा रखता था। एक के बाद दूसरा, जो कुछ उसने बनाने का इरादा किया था प्रगट होते गए, और प्रत्येक का प्रकटीकरण सृष्टिकर्ता के अधिकार का प्रतिबिम्ब था, और उसके अधिकार के विचारों का ठोस रूप था, और विचारों के इन ठोस रूपों के कारण, सभी जीवधारी सृष्टिकर्ता के अनुग्रह, और सृष्टिकर्ता के प्रयोजन के लिए धन्यवादित होने के सिवाए कुछ नहीं कर सकते थे। जैसे ही परमेश्वर के चमत्कारी कार्यों ने अपने आपको प्रगट किया, यह संसार अंश अंश कर के परमेश्वर के द्वारा सृजी गई सब वस्तुओं से फैल गया, और यह बर्बादी और अँधकार से स्वच्छता और जगमगाहट में बदल गया, घातक निश्चलता से जीवन्त और असीमित जीवन चेतना में बदल गया। सृष्टि की सब वस्तुओं के मध्य, बड़े से लेकर छोटे तक, और छोटे से लेकर सूक्ष्म तक, ऐसा कोई भी नहीं था जो सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ के द्वारा सृजा नहीं गया था, और हर एक जीवधारी के अस्तित्व की एक अद्वितीय और अंतर्निहित आवश्यकता और मूल्य था। उनके आकार और ढांचे के अन्तर के बावजूद भी, उन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा बनाया जाना था ताकि सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन अस्तित्व में बने रहें।…

अतः, सृष्टिकर्ता के अधिकार के अधीन सब वस्तुएँ सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के लिए सुर में सुर मिलाकर गाती हो, और उसके नए दिन के कार्य के लिए एक बेहतरीन भूमिका का काम करती हैं, और इस समय सृष्टिकर्ता भी अपने कार्य के प्रबन्ध में एक नया पृष्ठ खोलेगा! बसंत ऋतु के अँकुरों, ग्रीष्म ऋतु की परिपक्वता, शरद ऋतु की कटनी, और शीत ऋतु के भण्डारण की व्यवस्था के अनुसार जिसे सृष्टिकर्ता के द्वारा नियुक्त किया गया था, सब वस्तुएँ सृष्टिकर्ता की प्रबंधकीय योजना के साथ प्रतिध्वनित होंगे, और वे अपने स्वयं के नए दिन, नई शुरूआत, और नए जीवन पथक्रम का स्वागत करेंगे, और वे सृष्टिकर्ता के अधिकार की संप्रभुता के अधीन हर दिन का अभिनन्दन करने के लिए कभी न खत्म होनेवाले अनुक्रम के अनुसार जल्द ही पुनः उत्पन्न करेंगे।…
"वचन देह में प्रकट होता है" से
और पढ़ें:प्रार्थनाओं का सही तरीका क्या है, परमेश्वर से वास्तव में प्रार्थना कैसे करें?

गुरुवार, 27 जून 2019

छठवें दिन, सृष्टिकर्ता ने कहा, और हर प्रकार के जीवित प्राणी जो उसके मस्तिष्क में थे एक के बाद एक अपने आप को प्रगट करने लगे

स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर न होते हुए, सब वस्तुओं को बनाने के लिए सृष्टिकर्ता का कार्य लगातार पाँचवे दिन तक चलता रहा, उसके तुरन्त बाद सृष्टिकर्ता ने सब वस्तुओं की सृष्टि के छठवें दिन का स्वागत किया। यह दिन एक और नई शाम थी, तथा एक और असाधारण दिन था। तब, इस नए दिन की शाम के लिए सृष्टिकर्ता की क्या योजना थी? कौन से नए जीव जन्तुओं को उसने उत्पन्न, और पैदा करना चाहा? ध्यान से सुनो, यह सृष्टिकर्ता की आवाज़ है....।
"फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलु पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया। सो परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वनपशुओं को, और जाति जाति के घरेलु पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को भी बनायाः और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है" (उत्पत्ति 1:24-25)। इन में कौन कौन से जीवित प्राणी शामिल हैं? पवित्र शास्त्र कहता हैः पालतु जानवर, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के जाति जाति के जंगली पशु। कहने का तात्पर्य है कि, उस दिन वहाँ पृथ्वी के सब प्रकार के जीवित प्राणी ही नहीं थे, परन्तु उन सभों को प्रजाति के अनुसार वर्गीकृत किया गया था, और, उसी प्रकार, "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।"
पिछले पाँच दिनों के दौरान, उसी लय में होकर, छ्ठे दिन सृष्टिकर्ता ने अपने इच्छित प्राणियों के जन्म का आदेश दिया, और हर एक अपनी अपनी प्रजाति के अनुसार पृथ्वी पर प्रकट हुआ। जब सृष्टिकर्ता ने अपने अधिकार का इस्तेमाल किया, उसके कोई भी वचन व्यर्थ में नहीं बोले गए, और इस प्रकार, छ्ठे दिन, हर प्राणी, जिसको उसने बनाने की इच्छा की थी, समय पर प्रकट हो गए। जैसे ही सृष्टिकर्ता ने कहा "पृथ्वी से एक एक जाति के प्राणी, उत्पन्न हों," पृथ्वी तुरन्त जीवन से भर गई, और पृथ्वी के ऊपर अचानक ही हर प्रकार के प्राणियों की श्वास प्रकट हुई....। हरे भरे घास के जंगली मैदानों में, हृष्ट पुष्ट गाएँ, अपनी पूछों को इधर उधर हिलाते हुए, एक के बाद एक प्रगट होने लगीं, मिमियाती हुई भेड़ें झुण्डों में इकट्ठे होने लगीं, और हिनहिनाते हुए घोड़े सरपट दौड़ने लगे....। एक पल में ही, शांत घास के मैदानों की विशालता में जीवन अंगड़ाई लेने लगा....। पशुओं के इन विभिन्न झुण्डों का प्रकटीकरण निश्चल घास के मैदान का एक सुन्दर दृश्य था, और अपने साथ असीमित जीवन शक्ति लेकर आया था....। वे घास के मैदानों के साथी, और घास के मैदानों के स्वामी होंगे, और प्रत्येक एक दूसरे पर निर्भर होगा; वे भी इन घास के मैदानों के संरक्षक और रखवाले होंगे, जो उनका स्थायी निवास होगा, जो उन्हें उनकी सारी ज़रूरतों को प्रदान करेगा, और उनके अस्तित्व के लिए अनंत पोषण का स्रोत होगा।
उसी दिन जब ये विभिन्न मवेशी सृष्टिकर्ता के वचनों द्वारा अस्तित्व में आए थे, ढेर सारे कीड़े मकौड़े भी एक के बाद एक प्रगट हुए। भले ही वे सभी जीवधारियों में सबसे छोटे थे, परन्तु उनकी जीवन शक्ति अभी भी सृष्टिकर्ता की अद्भुत सृष्टि थी, और वे बहुत देरी से नहीं आए थे.....। कुछ ने अपने पंखों को फड़फड़ाया, जबकि कुछ अन्य धीर धीरे रेंगने लगे; कुछ उछलने और कूदने लगे, और कुछ अन्य लड़खड़ाने लगे, कुछ आगे बढ़कर खोल में घुस गए, जबकि अन्य जल्दी से पीछे लौट गए; कुछ दूसरी ओर चले गए, कुछ अन्य ऊँची और नीची छलांग लगाने लगे....। वे सभी अपने लिए घर ढूँढ़ने के प्रयास में व्यस्त हो गएः कुछ ने घास में घुसकर अपना रास्ता बनाया, कुछ ने भूमि खोदकर छेद बनाना शुरू कर दिया, कुछ उड़कर पेड़ों पर चढ़ गए, और जंगल में छिप गए.....। यद्यपि वे आकार में छोटे थे, परन्तु वे खाली पेट की तकलीफ को सहना नहीं चाहते थे, और अपने घरों को बनाने के बाद, वे अपना पोषण करने के लिए भोजन की तलाश में चल पड़े। कुछ घास के कोमल तिनकों को खाने के लिए उस पर चढ़ गए, कुछ ने धूल से अपना मुँह भर लिया और अपना पेट भरा, और स्वाद और आनंद के साथ खाने लगे (उनके लिए, धूल भी एक स्वादिष्ट भोजन था); कुछ जंगल में छिप गए, परन्तु आराम करने के लिए नहीं रूके, क्योंकि चमकीले गहरे हरे पत्तों के भीतर के रस ने रसीला भोजन प्रदान किया....। सन्तुष्ट होने के बाद भी कीड़े मकौड़ों ने अपनी गतिविधियों को समाप्त नहीं किया, भले ही वे आकार में छोटे थे, फिर भी वे भरपूर ऊर्जा और असीमित उत्साह से भरे हुए थे, और उसी प्रकार सभी जीवधारी भी, वे सबसे अधिक सक्रिय, और सबसे अधिक परिश्रमी थे। वे कभी आलसी न हुए, और न कभी आराम से पड़े रहे। एक बार संतृप्त होने के बाद, उन्होंने फिर से अपने भविष्य के लिए परिश्रम करना प्रारम्भ कर दिया, अपने आने वाले कल के लिए अपने आपको व्यस्त रखा, और जीवित बने रहने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ते गए....। उन्होंने मधुरता से विभिन्न प्रकार की धुनों और सुरों को गुनगुनाकर अपने आपको आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया। उन्होंने घास, वृक्षों, और ज़मीन के हर इन्च में आनंद का समावेश किया, और हर दिन और हर वर्ष को अद्वितीय बना दिया....। अपनी भाषा और अपने तरीकों से, उन्होंने भूमि के सभी प्राणियों तक जानकारी पहुँचायी। और अपने स्वयं के विशेष जीवन पथक्रम का उपयोग करते हुए, उन्होंने सब वस्तुओं को जिनके ऊपर उन्होंने निशान छोड़े थे चिन्हित किया....। उनका मिट्टी, घास, और जंगलों के साथ घनिष्ठ संबंध था, और वे मिट्टी, घास, और वनों में शक्ति और जीवन चेतना लेकर आए, और सभी प्राणियों को सृष्टिकर्ता का प्रोत्साहन और अभिनंदन पहुँचाया....।

सृष्टिकर्ता की निगाहें सब वस्तुओं पर पड़ीं जिन्हें उसने बनाया था, और इस पल उसकी निगाहें जंगलों और पर्वतों पर आकर ठहर गईं, और उसका मस्तिष्क मोड़ ले रहा था। जैसे ही उसके वचन घने जंगलों, और पहाड़ों के ऊपर बोले गए, इस प्रकार के पशु प्रगट हुए जो पहले कभी नहीं आए थेः वे "जंगली जानवर" थे जो परमेश्वर के वचन के द्वारा बोले गए थे। लम्बे समय से प्रतीक्षारत, उन्होंने अपने अनोखे चेहरे के साथ अपने अपने सिरों को हिलाया और हर एक ने अपनी अपनी पूंछ को लहराया। कुछ के पास रोंएदार लबादे थे, कुछ हथियारों से लैस थे, कुछ के खुले हुए ज़हरीले दाँत थे, कुछ के पास घातक मुस्कान थी, कुछ लम्बी गर्दन वाले थे, कुछ के पास छोटी पूँछ थी, कुछ के पास ख़तरनाक आँखें थीं, कुछ डर के साथ देखते थे, कुछ घास खाने के लिए झुके हुए थे, कुछ के पूरे मुँह में ख़ून लगा हुआ था, कुछ दो पाँव से उछलते थे, कुछ चार खुरों से धीरे धीरे चलते थे, कुछ पेड़ों के ऊपर से दूर तक देखते थे, कुछ जंगलों में इन्तज़ार में लेटे हुए थे, कुछ आराम करने के लिए गुफाओं की खोज में थे, कुछ मैदानों में दौड़ते और उछलते थे, कुछ शिकार के लिए जंगलों में गश्त लगा रहे थे.....; कुछ गरज रहे थे, कुछ हुँकार भर रहे थे, कुछ भौंक रहे थे, कुछ रो रहे थे.....; कुछ ऊँचे सुर , कुछ नीची सुर वाले, कुछ खुले गले वाले, कुछ साफ साफ और मधुरस्वर वाले थे....; कुछ भयानक थे, कुछ सुन्दर थे, कुछ बड़े अजीब से थे, और कुछ प्यारे-से थे, कुछ डरावने थे, कुछ बहुत ही आकर्षक थे....। एक के बाद एक वे आने लगे। देखिए कि वे गर्व से कितने फूले हुए थे, उन्मुक्त-जीव थे, एक दूसरे से बिलकुल उदासीन थे, एक दूसरे को एक झलक देखने की भी परवाह नहीं करते थे....। प्रत्येक उस विशेष जीवन को जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दिया गया था, और अपनी बर्बरता, और क्रूरता को धारण किए हुए, जंगलों और पहाड़ियों के ऊपर प्रगट हो गए। सबसे घृणित, पूरी तरह ढीठ - किसने उन्हें पहाड़ियों और जंगलों का सच्चा स्वामी बना दिया था? उस घड़ी से जब से सृष्टिकर्ता ने उनके आविर्भाव को स्वीकृति दी थी, उन्होंने जंगलों पर "दावा किया," और पहाड़ों पर भी "दावा किया," क्योंकि सृष्टिकर्ता ने पहले से ही उनकी सीमाओं को ठहरा दिया था और उनके अस्तित्व के पैमाने को निश्चित कर दिया था। केवल वे ही जंगलों और पहाड़ों के सच्चे स्वामी थे, इसलिए वे इतने प्रचण्ड और ढीठ थे। उन्हें पूरी तरह "जंगली जानवर" इसी लिए कहा जाता था क्योंकि, सभी प्राणियों में, वे ही थे जो इतने जंगली, क्रूर, और वश में न आने योग्य थे। उन्हें पालतू नहीं बनाया जा सकता था, इस प्रकार उनका पालन पोषण नहीं किया जा सकता था और वे मानवजाति के साथ एकता से नहीं रह सकते थे या मानवजाति के बदले परिश्रम नहीं कर सकते थे। यह इसलिए था क्योंकि उनका पालन पोषण नहीं किया जा सकता था, वे मानवजाति के लिए काम नहीं कर सकते थे, और यह कि उन्हें मानवजाति से दूर रहकर जीवन बिताना था, और मनुष्य उनके पास नहीं आ सकते थे, और यह इसलिए था क्योंकि वे मानवजाति से दूरी पर जीवन बिताते थे। और मनुष्य उनके पास नहीं आ सकते थे, वे उन ज़िम्मेदारियों को निभा सकते थे जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दी गई थी: अर्थात् पर्वतों और जंगलों की सुरक्षा करना। उनके जंगलीपन ने पर्वतों की सुरक्षा की और जंगलों की हिफाज़त की, और उनके अस्तित्व और बढो‌तरी के लिए सबसे बेहतरीन सुरक्षा और आश्वासन था। उसी समय, उनकी बर्बरता ने सब वस्तुओं के मध्य सन्तुलन को कायम और सुनिश्चित किया। उनका आगमन पर्वतों और जंगलों के लिए सहयोग और टिके रहने के लिए सहारा लेकर आया; उनके आगमन ने शांत तथा रिक्त पर्वतों और जंगलों में शक्ति और जीवन चेतना का संचार किया। उसके बाद से, पर्वत और जंगल उनके स्थायी निवास बन गए, और वे अपने घरों से कभी वंचित नहीं रहेंगे, क्योंकि पर्वत और पहाड़ उनके लिए प्रगट हुए और अस्तित्व में आए थे, और जंगली जानवर अपने कर्तव्य को पूरा करेंगे, और उनकी हिफाज़त करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। इस प्रकार, जंगली जानवर भी सृष्टिकर्ता के प्रोत्साहन के द्वारा दृढ़ता से रहना चाहते थे ताकि अपने सीमा क्षेत्र को थामे रह सकें, और सब वस्तुओं के सन्तुलन को कायम रखने के लिए अपने जंगली स्वभाव का निरन्तर उपयोग कर सकें जिसे सृष्टिकर्ता के द्वारा स्थापित किया गया था, और सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ को प्रकट कर सकें!
"वचन देह में प्रकट होता है" से
अनुशंसित:प्रभु यीशु मसीह के वचन——आपको नये प्रकाश रोशनी में लाना——अधिक जानने के लिए क्लिक करें

सोमवार, 24 जून 2019

पाँचवे दिन, जीवन के विविध और विभिन्न रूप अलग अलग तरीकों से सृष्टिकर्ता के अधिकार को प्रदर्शित करते हैं

पवित्र शास्त्र कहता है, "फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें। इसलिए परमेश्वर ने जाति जाति बड़े बड़े जल जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जातियों के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि कीः और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है" (उत्पत्ति 1:20-21)। पवित्र शास्त्र साफ साफ कहता है कि, इस दिन, परमेश्वर ने जल के जन्तुओं और आकाश के पक्षियों को बनाया, कहने का तात्पर्य है कि उसने विभिन्न प्रकार की मछलियों और पक्षियों को बनाया, और उनकी प्रजाति के अनुसार उन्हें वर्गीकृत किया। इस तरह, परमेश्वर की सृष्टि से पृथ्वी, आकाश, और जल समृद्ध हो गए....।
जैसे ही परमेश्वर के वचन कहे गए, नई ज़िन्दगियाँ, हर एक अलग आकार में, सृष्टिकर्ता के वचनों के मध्य एकदम से जीवित हो गईं। वे इस संसार में अपने स्थान के लिए एक दूसरे को धकेलते, कूदते और आनंद से खेलते हुए आ गए....। हर प्रकार एवं आकार की मछलियाँ जल के आर-पार तैरने लगीं, और सभी किस्मों की सीप वाली मछलियाँ रेत में उत्पन्न होने लगीं, कवचधारी, सीप वाली, और बिना रीढ़ वाले जीव जन्तु, चाहे बड़े हों या छोटे, लम्बे हों या छोटे, विभिन्न रूपों में जल्दी से प्रगट हो गए। विभिन्न प्रकार के समुद्री पौधे शीघ्रता से उगना शुरू हो गए, विविध प्रकार के समुद्री जीवन के बहाव में बहने लगे, लहराते हुए, स्थिर जल को उत्तेजित करते हुए, मानो उनसे कहना चाहते हैं: अपना एक पैर हिलाओ! अपने मित्रों को लेकर आओ! क्योंकि तुम सभी फिर अकेले नहीं रहोगे! उस घड़ी जब परमेश्वर के द्वारा बनाए गए जीवित प्राणी जल में प्रगट हुए, प्रत्येक नए जीवन ने उस जल में जीवन शक्ति डाल दी जो इतने लम्बे समय से शांत था, और एक नए युग से परिचय किया....। उस समय के बाद से, वे एक दूसरे के आस पास रहने लगे, और एक दूसरे की सहभागिता की, और एक दूसरे के साथ कोई भेद नहीं किया। अपने भीतर के जीवधारियों के लिए जल अस्तित्व में आया था, और हर एक जीवन की जो उसकी बाँहों में आया था उसका पोषण करने लगा, और प्रत्येक जीवन जल और उसके पोषण के कारण अस्तित्व में बना रहा। प्रत्येक ने दूसरे को जीवन दिया, और उसी समय, हर एक ने, उसी रीति से, सृष्टिकर्ता की सृष्टि की अद्भुतता और महानता और सृष्टिकर्ता के अधिकार और अद्वितीय सामर्थ के लिए गवाही दी।
जैसे समुद्र अब शांत न रहा, उसी प्रकार जीवन ने आकाश को भरना प्रारम्भ कर दिया। एक के बाद, छोटे और बड़े पक्षी, भूमि से आकाश में उड़ने लगे। समुद्र के जीवों से अलग, उनके पास पंख और पर थे जो उनके दुबले और आर्कषक आकारों को ढँके हुए थे। उन्होंने अपने पंखों को फड़फड़ाया, और गर्व और अभिमान से अपने परों के आकर्षक लबादे को और अपनी विशेष क्रियाओं और कुशलताओं को प्रदर्शित करने लगे जिन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें प्रदान किया गया था। वे स्वतन्त्रता के साथ हवा में लहराने लगे, और कुशलता से आकाश और पृथ्वी के बीच, घास के मैदानों और जंगलों के आर पार यहाँ वहाँ उड़ने लगे....। वे हवा के प्रियतम थे, वे हर चीज़ के प्रियतम थे। वे जल्द ही स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में एक बन्धन बननेवाले थे, और जल्द ही उन सन्देशों को सभी चीज़ों तक पहुँचानेवाले थे....। वे गीत गाने लगे, वे आनंद के साथ यहाँ वहाँ झपट्टा मारने लगे, वे हर्षोल्लास एवं हँसी लेकर आए, और एक समय ख़ाली पड़े संसार में कम्पन पैदा किया.....। उन्होंने अपने स्पष्ट, एवं मधुर गीतों का उपयोग किया, और अपने हृदय के शब्दों का उपयोग कर उस जीवन के लिए सृष्टिकर्ता की प्रशंसा की जो उसने उन्हें दिया था। उन्होंने सृष्टिकर्ता की पूर्णता और अद्भुतता को प्रदर्शित करने के लिए हर्षोल्लास के साथ नृत्य किया, और वे, उस विशेष जीवन के द्वारा जो उसने उन्हें दिया था, सृष्टिकर्ता के अधिकार की गवाही देते हुए अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित कर देंगे।
इसके बावजूद कि वे जल में थे या आकाश में, सृष्टिकर्ता की आज्ञा के द्वारा, जीवित प्राणियों की यह अधिकता जीवन के विभिन्न रूपों में मौजूद थी, और सृष्टिकर्ता की आज्ञा के द्वारा, वे अपनी अपनी प्रजाति के अनुसार इकट्ठे हो गए - और यह व्यवस्था और यह नियम किसी भी जीवधारी के लिए अपरिवर्तनीय था। और उनके लिए सृष्टिकर्ता के द्वारा जो भी सीमाएँ बनाई गई थीं उन्होंने कभी भी उसके पार जाने की हिम्मत नहीं की, और न ही वे ऐसा करने में समर्थ थे। जैसा सृष्टिकर्ता के द्वारा नियुक्त किया गया था, वे जीवित और बहुगुणित होते रहे, और सृष्टिकर्ता के द्वारा बनाए गए जीवन क्रम और व्यवस्था से कड़ाई से चिपके रहे, और सचेतता से उसकी अनकही आज्ञाओं, स्वर्गीय आदेशों और नियमों में बने रहे जो उसने उन्हें तब से लेकर आज तक दिया था। वे सृष्टिकर्ता से अपने एक विशेष अन्दाज़ में बात करते थे, और सृष्टिकर्ता के अर्थ की प्रशंसा करने और उसकी आज्ञा मानने के लिए आए थे। किसी ने कभी भी सृष्टिकर्ता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया, और उनके ऊपर उसकी संप्रभुता और आज्ञाओं का उपयोग उसके विचारों के तहत हुआ था; कोई वचन नहीं दिए गए थे, परन्तु वह अधिकार जो सृष्टिकर्ता के लिए अद्वितीय था उसने उससे ख़ामोशी से सभी चीज़ों का नियन्त्रण किया जिसमें भाषा की कोई क्रिया नहीं थी, और मानवजाति से भिन्न था। इस विशेष रीति से उसके अधिकार के इस्तेमाल ने नए ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को बाध्य किया, और सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की एक नई व्याख्या की। यहाँ, मुझे तुम्हें बताना होगा कि इस नए दिन में, परमेश्वर के अधिकार के इस्तेमाल ने एक बार और सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता का प्रदर्शन किया।

आगे, आओ हम पवित्र शास्त्र के इस अंश के अंतिम वाक्य पर एक नज़र डालें: "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।" तुम लोग क्या सोचते हो कि इसका अर्थ क्या है? इन वचनों में परमेश्वर की भावनाएं भरी हैं। परमेश्वर ने उन सभी चीज़ों को देखा जिन्हें उसने बनाया था जो उसके वचनों के कारण अस्तित्व में आए और स्थिर बने रहे, और धीरे धीरे परिवर्तित होने लगे। उसी समय, परमेश्वर ने अपने वचनों के द्वारा जिन विभिन्न चीज़ों को बनाया था, और वे विभिन्न कार्य जिन्हें उसने पूरा किया था क्या वह उनसे सन्तुष्ट था? उत्तर है कि "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।" तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? इससे क्या प्रकट होता है कि "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है?" यह किसकी ओर संकेत करता है? इसका अर्थ है कि जो कुछ परमेश्वर ने योजना बनाया और निर्देश दिया था उसे पूरा करने के लिए, और उन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए जिन्हें वह पूरा करने निकला था परमेश्वर के पास सामर्थ और बुद्धि थी। जब परमेश्वर ने हर एक कार्य को पूरा कर लिया, तो क्या वह खेदित हुआ? उत्तर अभी भी यही है "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।" दूसरे शब्दों में, उसने कोई खेद महसूस नहीं किया, बल्कि उसके बजाए वह सन्तुष्ट था। इसका मतलब क्या था कि उसे कोई खेद महसूस नहीं हुआ? इसका मतलब है कि परमेश्वर की योजना पूर्ण है, उसकी सामर्थ और बुद्धि पूर्ण है, और यह कि सिर्फ उसकी सामर्थ के द्वारा ही ऐसी पूर्णता को प्राप्त किया जा सकता है। जब कोई मुनष्य कार्य करता है, तो परमेश्वर के समान, क्या वह देख सकता है, कि वह अच्छा है? क्या हर चीज़ जो मनुष्य करता है उसमें पूर्णता होती है? क्या मनुष्य किसी चीज़ को पूरी अनंतता के लिए पूरा कर सकता है? जैसा मनुष्य कहता है, "कोई भी पूर्ण नहीं है, बस थोड़ा बेहतर होता है," ऐसा कुछ भी नहीं है जो मनुष्य करे और वह पूर्णता को प्राप्त करे। जब परमेश्वर ने देखा कि जो कुछ उसने बनाया और पूर्ण किया वह अच्छा था, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई हर वस्तु उसके वचन के द्वारा स्थिर हुई, कहने का तात्पर्य है कि, जब "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है," तब जो कुछ भी उसने बनाया उसे चिरस्थायी रूप में स्वीकृति दी, उसके किस्मों के अनुसार उन्हें वर्गीकृत किया गया, और उन्हें पूरी अनंतता के लिए एक दृढ़ स्थिति, उद्देश्य, और कार्यप्रणाली दी गई। इसके अतिरिक्त, सब वस्तुओं के बीच उनकी भूमिका, और वह यात्रा जिन से उन्हें परमेश्वर की सब वस्तुओं के प्रबन्ध के दौरान गुज़रना था, उन्हें परमेश्वर के द्वारा पहले से ही नियुक्त कर दिया गया था, और वे बदलनेवाले नहीं थे। यह वह स्वर्गीय नियम था जिसे सब वस्तुओं के सृष्टिकर्ता के द्वारा दिया गया था।
"परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है," इन सामान्य, कम महत्व के शब्दों की कई बार उपेक्षा की जाती है, परन्तु ये स्वर्गीय नियम और स्वर्गीय आदेश हैं जिन्हें सभी प्राणियों को परमेश्वर के द्वारा दिया गया है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक और मूर्त रूप है, जो अधिक व्यावहारिक, और अति गंभीर है। अपने वचनों के जरिए, सृष्टिकर्ता न केवल वह सबकुछ हासिल करने में सक्षम हुआ जिसे वह हासिल करने निकला था, और सब कुछ प्राप्त किया जिसे वह प्राप्त करने निकला था, बल्कि जो कुछ भी उसने सृजा था, उसका नियन्त्रण कर सकता था, और जो कुछ उसने अपने अधिकार के अधीन बनाया था उस पर शासन कर सकता था, और, इसके अतिरिक्त, सब कुछ क्रमानुसार और निरन्तर बने रहनेवाला था। सभी वस्तुएँ उसके वचन के द्वारा जीवित हुईं और मर भी गईं और, उसके अतिरिक्त उसके अधिकार के कारण वे उसके द्वारा बनाई गई व्यवस्था के मध्य अस्तित्व में बने रहे, और कोई भी नहीं छूटा! यह व्यवस्था बिलकुल उसी घड़ी शुरू हो गई थी जब "परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है," और वह बना रहेगा, और जारी रहेगा, और परमेश्वर के प्रबंधकीय योजना के लिए उस दिन तक कार्य करता रहेगा जब तक वह सृष्टिकर्ता के द्वारा रद्द न कर दिया जाए! सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार न केवल सब वस्तुओं को बनाने, और सब वस्तुओं के अस्तित्व में आने की आज्ञा की काबिलियत में प्रकट हुआ, बल्कि सब वस्तुओं पर शासन करने और सब वस्तुओं पर संप्रभुता रखने, और सब वस्तुओं में चेतना और जीवन देने, और, इसके अतिरिक्त, सब वस्तुओं को पूरी अनंतता के लिए बनाने की उसकी योग्यता में भी प्रगट हुआ था जिसे वह अपनी योजना में बनाना चाहता था ताकि वे एक ऐसे संसार में प्रगट हो सकें और अस्तित्व में आ जाएँ जिन्हें उसके द्वारा एक पूर्ण आकार, और एक पूर्ण जीवन संरचना, और एक पूर्ण भूमिका में बनाया गया था। यह भी इस तरह से सृष्टिकर्ता के विचारों में प्रकट हुआ जो किसी विवशता के अधीन नहीं था, और समय, अंतरिक्ष, और भूगोल के द्वारा सीमित नहीं किए गए थे। उसके अधिकार के समान, सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान अनंतकाल से लेकर अनंतकाल तक अपरिवर्तनीय बनी रहेगी। उसका अधिकार सर्वदा उसकी अद्वितीय पहचान का एक प्रदर्शन और प्रतीक बना रहेगा, और उसका अधिकार हमेशा उसकी अद्वितीय पहचान के अगल बगल बना रहेगा!
"वचन देह में प्रकट होता है" से‘                
अनुशंसित:प्रार्थनाओं का सही तरीका क्या है, परमेश्वर से वास्तव में प्रार्थना कैसे करें?

शनिवार, 22 जून 2019

चौथे दिन, जब परमेश्वर ने एक बार फिर से अपने अधिकार का उपयोग किया तो मानवजाति के लिए मौसम, दिन, और वर्ष अस्तित्व में आ गए

सृष्टिकर्ता ने अपनी योजना को पूरा करने के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल किया, और इस तरह से उसने अपनी योजना के पहले तीन दिनों को गुज़ारा। इन तीन दिनों के दौरान, परमेश्वर इधर उधर के कामों में व्यस्त, या अपने प में थका हुआ दिखाई नहीं दिया; इसके विपरीत, उसने अपनी योजना के तीन बेहतरीन दिनों को गुज़ारा, और संसार के मूल रूपान्तरण के महान कार्य को पूरा किया। एक बिलकुल नया संसार उसकी आँखों में दृष्टिगोचर हुआ, और अंश अंश कर के वह ख़ूबसूरत तस्वीर जो उसके विचारों में मुहरबन्द थी अंततः परमेश्वर के वचनों में प्रगट हो गई। हर चीज़ का प्रकटीकरण एक नए जन्मे हुए बच्चे के समान था, और सृष्टिकर्ता उस तस्वीर से आनंदित हुआ जो एक समय उसके विचारों में था, परन्तु जिसे अब जीवन्त कर दिया गया था। उसी समय, उसके हृदय ने चाँन्दी की सी संतुष्टि प्राप्त की, परन्तु उसकी योजना बस अभी शुरू ही हुई थी। आँखों के पलक झपकते ही, एक नया दिन आ गया था - और सृष्टिकर्ता की योजना में अगला पृष्ठ
      क्या था? उसने क्या कहा था? और उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया था? और, उसी समय, इस नए संसार में कौन सी नई चीज़ें आ गईं? सृष्टिकर्ता के मार्गदर्शन का अनुसरण करते हुए, हमारी निगाहें चौथे दिन पर आ टिकीं जिसमें परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी, एक ऐसा दिन जिसमें एक और नई शुरूआत होने वाली थी। वास्तव में, यह सृष्टिकर्ता के लिए निःसन्देह एक और बेहतरीन दिन था, और आज की मानवजाति के लिए यह एक और अति महत्वपूर्ण दिन था। यह, वास्तव में, एक बहुमूल्य दिन था। वह इतना बेहतरीन क्यों था, वह इतना महत्वपूर्ण क्यों था, और वह इतना बहुमूल्य कैसे था? आओ सबसे पहले सृष्टिकर्ता के द्वारा बोले गए वचनों को सुनें.....।

"फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिए आकाश के अन्तर में ज्योंतियाँ हों; और वे चिन्हों और नियत समयों, और दिनों और वर्षों के कारण हों। और वे ज्योंतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया" (उत्पत्ति 1:14-15)। सूखी भूमि और उसके पौधों की सृष्टि के बाद यह परमेश्वर के अधिकार का एक और उद्यम था जो सृजी गई चीज़ों के द्वारा दिखाया गया था। परमेश्वर के लिए ऐसा कार्य उतना ही सरल था, क्योंकि परमेश्वर के पास ऐसी सामर्थ है; परमेश्वर अपने वचन के समान ही भला है, और उसके वचन पूरे होंगे। परमेश्वर ने ज्योतियों को आज्ञा दी कि वे आकाश में प्रगट हों, और ये ज्योतियाँ न केवल पृथ्वी के ऊपर आकाश में रोशनी देती थीं, बल्कि दिन और रात, और ऋतुओं, दिनों, और वर्षों के लिए भी चिन्ह के रूप में कार्य करते थे। इस प्रकार, जब परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, हर एक कार्य जिसे परमेश्वर पूरा करना चाहता था वह परमेश्वर के अभिप्राय और जिस रीति से परमेश्वर ने उन्हें नियुक्त किया था उसके अनुसार पूरा हो गया।
आकाश में जो ज्योतियाँ हैं वे आसमान के पदार्थ हैं जो प्रकाश को इधर उधर फैला सकते हैं; वे आकाश को ज्योतिर्मय कर सकती हैं, और भूमि और समुद्र को प्रकाशमय कर सकती हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार लय एवं तीव्रता में परिक्रमा करती हैं, और विभिन्न समयकालों पर भूमि पर प्रकाश देती हैं, और इस रीति से, ज्योतियों की परिक्रमा के चक्र के कारण भूमि के पूर्वी और पश्चिमी छोर पर दिन और रात होते हैं, और वे न केवल दिन और रात के लिए चिन्ह हैं, बल्कि इन विभिन्न चक्रों के द्वारा वे मानवजाति के लिए त्योहारों और विशेष दिनों को भी चिन्हित करती हैं। वे चारों ऋतुओं के पूर्ण पूरक और सहायक हैं - बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, और शीत ऋतु - जिन्हें परमेश्वर के द्वारा भेजा जाता है, जिस से ज्योतियाँ एकरूपता के साथ मानवजाति के लिए चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों के लिए एक निरन्तर और सटीक चिन्ह के रूप में एक साथ कार्य करती हैं। यद्यपि यह केवल कृषि के आगमन के बाद ही हुआ जब मानवजाति ने समझना प्रारम्भ किया और परमेश्वर द्वारा बनाई गई ज्योतियों द्वारा चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और वर्षों के विभाजन का सामना किया, और वास्तव में चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और वर्षों को जिन्हें मनुष्य आज समझता है वे बहुत पहले ही चौथे दिन प्रारम्भ हो चुके थे जब परमेश्वर ने सभी वस्तुओं की सृष्टि की थी, और इस प्रकार अपने आप में बदलनेवाले बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, और शीत ऋतु के चक्र भी जिन्हें मनुष्य के द्वारा अनुभव किया जाता है वे बहुत पहले ही चौथे दिन प्रारम्भ हो चुके थे जब परमेश्वर ने सभी वस्तुओं की सृष्टि की थी। परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियों ने मनुष्य को इस योग्य बनाया कि वे लगातार, सटीक ढंग से, और साफ साफ दिन और रात के बीच अन्तर कर सकें, और दिनों को गिन सकें, और साफ साफ चन्द्रमा की स्थितियों और वर्षों का हिसाब रख सकें। (पूर्ण चन्द्रमा का दिन एक महिने की समाप्ति को दर्शाता था, और इससे मनुष्य जान गया कि ज्योतियों के प्रकाशन ने एक नए चक्र की शुरूआत की थी; अर्ध चन्द्रमा का दिन आधे महीने की समाप्ति को दर्शाता था, जिसने मनुष्य को यह बताया कि चन्द्रमा की एक नई स्थिति शुरू हुई है, इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि चन्द्रमा की एक स्थिति में कितने दिन और रात होते हैं, और एक ऋतु में चन्द्रमा की कितनी स्थितियाँ होती हैं, और एक साल में कितनी ऋतुएँ होती हैं, और सब कुछ लगातार प्रदर्शित हो रहा था।) और इस प्रकार, मनुष्य ज्योतियों की परिक्रमाओं के चिन्हाँकन से आसानी से चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों का पता लगा सकता था। इस बिन्दु के आगे से, मानवजाति और सभी चीज़ें एहसास न करते हुए दिन एवं रात के क्रमानुसार परस्पर परिवर्तन और ज्योतियों की परिक्रमाओं से उत्पन्न ऋतुओं के बदलाव के मध्य जीवन बिताने लगे। यह सृष्टिकर्ता की सृष्टि का महत्व था जब उसने चौथे दिन ज्योतियों की सृष्टि की थी। उसी प्रकार, सृष्टिकर्ता के इस कार्य के उद्देश्य और महत्व अभी भी उसके अधिकार और सामर्थ से अविभाजित थे। और इस प्रकार, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियाँ और वह मूल्य जो वे शीघ्र ही मनुष्य के लिए लानेवाले थे, वे सृष्टिकर्ता के अधिकार के इस्तेमाल में एक और महानतम कार्य थे।
इस नए संसार में, जिसमें मानवजाति अभी तक प्रकट नहीं हुआ था, सृष्टिकर्ता ने "साँझ और सवेरे," "आकाश," "भूमि और समुद्र," "घास, सागपात और विभिन्न प्रकार के वृक्ष," और "ज्योतियों, ऋतुओं, दिनों, और वर्षों" को उस नए जीवन के लिए बनाया जिसे वह शीघ्र उत्पन्न करने वाला था। सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ हर उस नई चीज़ में प्रगट हुआ जिसे उसने बनाया था, और उसके वचन और उपलब्धियाँ बिना किसी लेश मात्र विरोद्ध, और बिना किसी लेश मात्र अन्तराल के एक साथ घटित होती हैं। इन सभी नई चीज़ों का प्रकटीकरण और जन्म सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ के प्रमाण थे; वह अपने वचन के समान ही भला है, और उसका वचन पूरा होगा, और जो पूर्ण हुआ है वो हमेशा बना रहेगा। यह सच्चाई कभी नहीं बदलीः यह भूतकाल में ऐसा था, यह वर्तमान में ऐसा है, और पूरे अनंतकाल के लिए भी ऐसा ही बना रहेगा। जब तुम लोग पवित्र शास्त्र के उन वचनों को एक बार और देखते हो, तो क्या वे तुम्हें तरोताज़ा दिखाई देते हो? क्या तुम सबने नए ब्योरों को देखा है, और नई नई खोज की है? यह इसलिए है क्योंकि सृष्टिकर्ता के कार्यों ने तुम लोगों के हृदय को उकसा दिया है, और अपने अधिकार और सामर्थ की दिशा में तुम सबके ज्ञान का मार्गदर्शन किया है, और सृष्टिकर्ता के लिए तुम लोगों की समझ के द्वार को खोल दिया है, और उसके कार्य और अधिकार ने इन वचनों को जीवन दिया है। और इस प्रकार इन वचनों में मनुष्य ने सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक वास्तविक, स्पष्ट प्रकटीकरण देखा है, और सचमुच में सृष्टिकर्ता की सर्वोच्चता के गवाह बने हैं, और सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ की असाधारणता को देखा है।
सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ ने चमत्कार के ऊपर चमत्कार किया है, और उसने मनुष्य के ध्यान को आकर्षित किया है, और मनुष्य उसके अधिकार के उपयोग से पैदा हुए आश्चर्यजनक कार्यों को टकटकी लगाकर देखने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है। उसकी प्रगट सामर्थ आनंद के बाद आनंद लेकर आती है, और मनुष्य भौंचक्का हो जाता है और अतिउत्साह से भर जाता है, और प्रशंसा में आहें भरता है, और भय से ग्रसित, और हर्षित हो जाता है; और इससे अधिक क्या, मनुष्य दृश्यमान रूप से कायल हो जाता है, और उस में आदर, सम्मान, और लगाव उत्पन्न होने लग जाता है। मनुष्य के आत्मा के ऊपर सृष्टिकर्ता के अधिकार और कार्यों का एक बड़ा प्रभाव होता है, और मनुष्य के आत्मा को शुद्ध कर देता है, और, इसके अतिरिक्त, मनुष्य के आत्मा को स्थिर कर देता है। उसके हर एक विचार, उसके हर एक बोल, और उसके अधिकार का हर एक प्रकाशन सभी चीज़ों में अति उत्तम रचना हैं, और यह एक महान कार्य है और सृजी गई मानवजाति की गहरी समझ और ज्ञान के लिए बहुत ही योग्य है। जब हम सृष्टिकर्ता के वचनों से सृजे गए हर एक जीवधारी की गणना करते हैं, तो हमारा आत्मा परमेश्वर की सामर्थ के आश्चर्य की ओर खींचा चला जाता है, और हम अगले दिन अपने आप को सृष्टिकर्ता के कदमों के निशानों के पीछे पीछे चलते हुए पाते हैं: सभी चीज़ों की सृष्टि का पाँचवा दिन।
जब हम सृष्टिकर्ता के और कार्यों को देखते हैं, तो आओ हम अंश अंश करके पवित्र शास्त्र को पढ़ना प्रारम्भ करें।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
अनुशंसित:प्रार्थनाओं का सही तरीका क्या है, परमेश्वर से वास्तव में प्रार्थना कैसे करें?

शुक्रवार, 21 जून 2019

तीसरे दिन, परमेश्वर के वचनों ने पृथ्वी और समुद्रों की उत्पत्ति की, और परमेश्वर के अधिकार ने संसार को जीवन से लबालब भर दिया

आगे आईए हम उत्पत्ति 1:9-11 के पहले वाक्य को पढ़ें: "फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे।" जब परमेश्वर ने साधारण रूप से कहा तो क्या परिवर्तन हुआ, "फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे।" और इस अन्तर में उजियाले और आकाश के अलावा क्या था? पवित्र शास्त्र में ऐसा लिखा हैः "और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा; तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा"और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। दूसरे शब्दों में, अब इस अन्तर में भूमि और समुद्र थे, और भूमि और समुद्र विभाजित हो गए थे। इन दो नई चीज़ों के प्रकटीकरण ने परमेश्वर की मुँह की आज्ञा का पालन किया, "और ऐसा हो गया।" क्या पवित्र शास्त्र इस प्रकार वर्णन करता है कि जब परमेश्वर यह सब कर रहा था तब बहुत व्यस्त था? क्या यह ऐसा वर्णन करता है कि परमेश्वर शारीरिक परिश्रम में लगा हुआ था? तब, परमेश्वर के द्वारा सब कुछ कैसे किया गया था? परमेश्वर ने इन नई वस्तुओं को उत्पन्न कैसे किया? स्वतः प्रगट है, परमेश्वर ने इन सब को पूरा करने के लिए, और इसकी सम्पूर्णता की सृष्टि करने के लिए वचनों का उपयोग किया।
उपर्युक्त तीन अंशों में, हम ने तीन बड़ी घटनाओं के घटित होने के बारे में सीखा। ये तीन घटनाएँ प्रगट हुईं, और उन्हें परमेश्वर के वचनों के द्वारा अस्तित्व में लाया गया, और ऐसा एक के बाद एक उसके वचनों के द्वारा हुआ, जो परमेश्वर की आँखों के सामने प्रगट हुए थे। इस प्रकार ऐसा कहा जा सकता है कि "परमेश्वर कहेगा, और वह पूरा हो जाएगा; वह आज्ञा देगा, और वह बना रहेगा" और वे खोखले वचन नहीं हैं। परमेश्वर की यह हस्ती उसी पल दृढ़ हो गई थी जब उसने विचार धारण किया था, और उसकी हस्ती पूर्णतया प्रतिबिम्बित हो गई थी जब परमेश्वर ने बोलने के लिए अपना मुँह खोला था।
आओ हम इस अंश के अन्तिम वाक्य में आगे बढ़ें: "फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया।" जब परमेश्वर बोल रहा था, परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करते हुए ये सभी चीज़ें अस्तित्व में आ गईं, और एक क्षण में ही, अलग अलग प्रकार की छोटी छोटी नाज़ुक ज़िन्दगियाँ बेतरतीब ढंग से मिट्टी से बाहर आने के लिए अपने सिरों को ऊपर उठाने लगीं, और इससे पहले कि वे अपने शरीरों से थोड़ी सी धूल भी झाड़ पातीं वे उत्सुकता से एक दूसरे का अभिनन्दन करते हुए यहाँ वहाँ मँडराने, सिर हिला हिलाकर संकेत देने और इस संसार पर मुस्कुराने लगीं थीं। उन्होंने सृष्टिकर्ता को उस जीवन के लिए धन्यवाद दिया जो उसने उन्हें दिया था, और संसार को यह घोषित किया कि वे भी इस संसार की सभी चीज़ों के एक भाग हैं, और उन में से प्रत्येक सृष्टिकर्ता के अधिकार को दर्शाने के लिए अपना जीवन समर्पित करेगा। जैसे ही परमेश्वर के वचन कहे गए, भूमि रसीली और हरीभरी हो गई, सब प्रकार के सागपात जिनका मनुष्यों के द्वारा आनन्द लिया जा सकता था अँकुरित हो गए, और भूमि को भेदकर बाहर निकले, और पर्वत और तराईयाँ वृक्षों एवं जंगलों से बहुतायत से भर गए.....। इस बंजर संसार में, जिसमें जीवन का कोई निशान नहीं था, शीघ्रता से घास, सागपात, और वृक्षों एवं उमड़ती हुई हरीयाली की बहुतायत से भर गए ......। घास की महक और मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू हवा में फैल गई, और सुसज्जित पौधों की कतारें हवा के चक्र के साथ एक साथ साँस लेने लगीं, और बढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उसी समय, परमेश्वर के वचन के कारण और परमेश्वर के विचारों का अनुसरण करके, सभी पौधों ने अपनी सनातन जीवन यात्रा शुरू कर दी जिसमें वे बढ़ने, खिलने, फल उत्पन्न करने, और बहुगुणित होने लगे। वे अपने अपने जीवन पथों से कड़ाई से चिपके रहे, और सभी चीज़ों में अपनी अपनी भूमिकाओं को अदा करना शुरू कर दिया.....। वे सभी सृष्टिकर्ता के वचनों के कारण उत्पन्न हुए, और जीवन बिताया। वे सृष्टिकर्ता के कभी न खत्म होनेवाली भोजन सामग्री और पोषण को प्राप्त करेंगे, और परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ को दर्शाने के लिए भूमि के किसी भी कोने में दृढ़संकल्प के साथ ज़िन्दा रहेंगे, और वे हमेशा उस जीवन शक्ति को दर्शाते रहेंगे जो सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें दिया गया है....।
सृष्टिकर्ता का जीवन असाधारण है, उसके विचार असाधारण हैं, और उसका अधिकार असाधारण है, और इस प्रकार, जब उसके वचन उच्चारित किए गए थे, तो उसका अन्तिम परिणाम था "और ऐसा हो गया।" स्पष्ट रूप से, जब परमेश्वर कार्य करता है तो उसे अपने हाथों से काम करने की आवश्यकता नहीं होती है; वह बस आज्ञा देने के लिए अपने विचारों का और आदेश देने के लिए अपने वचनों का उपयोग करता है, और इस रीति से कार्यों को पूरा किया जाता है। इस दिन, परमेश्वर ने जल को एक साथ एक जगह पर इक्ट्ठा किया, और सूखी भूमि दिखाई दी, उसके बाद परमेश्वर ने भूमि से घास को उगाया, और छोटे छोटे पौधे जो बीज उत्पन्न करते थे, और पेड़ जो फल उत्पन्न करते थे उग आए, और परमेश्वर ने प्रजाति के अनुसार उनका वर्गीकरण किया, और हर एक में उसका स्वयं का बीज दिया। यह सब कुछ परमेश्वर के विचारों और परमेश्वर के वचनों की आज्ञाओं के अनुसार वास्तविक हुआ है और इस नए संसार में हर चीज़ एक के बाद एक प्रगट होती है।
जब वह अपना काम शुरू करनेवाला था, परमेश्वर के पास पहले से ही एक तस्वीर थी जिसे वह अपने मस्तिष्क में पूर्ण करना चाहता था, और जब परमेश्वर ने इन चीज़ों को पूर्ण करना प्रारम्भ किया, ऐसा तब भी हुआ जब परमेश्वर ने इस तस्वीर की विषयवस्तु के बारे में बोलने के लिए अपना मुँह खोला था, तो परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ के कारण सभी चीज़ों में बदलाव होना प्रारम्भ हो गया था। इस पर ध्यान न देते हुए कि परमेश्वर ने इसे कैसे किया, या किस प्रकार अपने अधिकार का इस्तेमाल किया, सब कुछ कदम दर कदम परमेश्वर की योजना के अनुसार और परमेश्वर के वचन के कारण पूरा किया गया था, और परमेश्वर के वचनों और उसके अधिकार के कारण कदम दर कदम आकाश और पृथ्वी के बीच में परिवर्तन होने लगा था। ये सभी परिवर्तन और घटनाएँ परमेश्वर के अधिकार, और सृष्टिकर्ता के जीवन की असाधारणता और सामर्थ की महानता को दर्शाते हैं। उसके विचार सामान्य युक्तियाँ नहीं हैं, या खाली तस्वीर नहीं है, परन्तु अधिकार हैं जो जीवनशक्ति और असाधारण ऊर्जा से भरे हुए हैं, और वे ऐसी सामर्थ हैं जो सभी चीज़ों को परिवर्तित कर सकते हैं, पुनः सुधार कर सकते हैं, फिर से नया बना सकते हैं, और नष्ट कर सकते हैं। और इसकी वजह से, उसके विचारों के कारण सभी चीज़ें कार्य करती हैं, और, उसके मुँह के वचनों के कारण, उसी समय, पूर्ण होते हैं....।
सभी वस्तुओं के प्रकट होने से पहले, परमेश्वर के विचारों में एक सम्पूर्ण योजना बहुत पहले से ही बन चुकी थी, और एक नया संसार बहुत पहले ही आकार ले चुका था। यद्यपि तीसरे दिन भूमि पर हर प्रकार के पौधे प्रकट हुए, किन्तु परमेश्वर के पास इस संसार की सृष्टि के कदमों को रोकने का कोई कारण नहीं था; उसने लगातार अपने शब्दों को बोलना चाहा ताकि हर नई चीज़ की सृष्टि को निरन्तर पूरा कर सके। वह बोलेगा, और अपनी आज्ञाओं को देगा, और अपने अधिकार का इस्तेमाल करेगा और अपनी सामर्थ को दिखाएगा, और उसने सभी चीज़ों और मानवजाति के लिए वह सब कुछ बनाया जिन्हें बनाने की उसने योजना बनाई थी और उनकी सृष्टि करने की अभिलाषा की थी....।
"वचन देह में प्रकट होता है" 
और पढ़ेंप्रार्थना क्या है? “सच्ची प्रार्थना” का क्या मतलब है?

बुधवार, 19 जून 2019

पहले दिन, परमेश्वर के अधिकार के कारण मानवजाति के दिन और रात उत्पन्न हुए और स्थिर बने हुए हैं

      आओ हम पहले अंश को देखें: "जब परमेश्वर ने कहा, "उजियाला हो," तो उजियाला हो गया। और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया। और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अंधियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया" (उत्पत्ति 1:3-5)। यह अंश सृष्टि की शुरूआत में परमेश्वर के प्रथम कार्य का विवरण देता है, और पहला दिन जिसे परमेश्वर ने गुज़ारा जिसमें एक शाम और एक सुबह थी। परन्तु वह एक असाधारण दिन थाः परमेश्वर ने सभी चीज़ों के लिए उजियाले को तैयार किया, और इसके अतिरिक्त, उजियाले को अंधियारे से अलग किया। इस दिन, परमेश्वर ने बोलना शुरू किया, और उसके वचन और अधिकार अगल बगल अस्तित्व में थे। सभी चीज़ों के मध्य उसका अधिकार दिखाई देना शुरू हुआ, और उसके वचन के परिणामस्वरूप उसकी सामर्थ सभी चीज़ों में फैल गई। इस दिन के आगे से, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के अधिकार, और परमेश्वर की सामर्थ के कारण सभी चीजों को बनाया गया और वे स्थिर हो गए, और उन्होंने परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के अधिकार, और परमेश्वर की सामर्थ की वज़ह से काम करना प्रारम्भ कर दिया। जब परमेश्वर ने वचनों को कहा "उजियाला हो," और उजियाला हो गया। परमेश्वर ने किसी जोखिम के काम का प्रारम्भ नहीं किया था; उसके वचनों के परिणामस्वरूप उजियाला प्रगट हुआ था। यह वो उजियाला था जिसे परमेश्वर ने दिन कहा, और जिस पर आज भी मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए निर्भर रहता है। परमेश्वर की आज्ञाओं के द्वारा, उसकी हस्ती और मूल्य कभी भी नहीं बदले, और वे कभी भी ग़ायब नहीं हुए। उनकी उपस्थिति परमेश्वर के अधिकार और उसकी सामर्थ को दिखाते हैं, और सृष्टिकर्ता के अस्तित्व की घोषणा करते हैं, और बार बार सृष्टिकर्ता की हैसियत और पहचान को दृढ़ करते हैं। यह अस्पृश्य या माया नहीं है, लेकिन एक वास्तविक ज्योति है जिसे मनुष्य के द्वारा देखा जा सकता है। उस समय के उपरान्त, इस खाली संसार में जिसमें "पृथ्वी बेडौल और सुनसान थी; और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था," पहली भौतिक वस्तु पैदा हुई। यह वस्तु परमेश्वर के मुँह के वचनों से आई, और परमेश्वर के अधिकार और उच्चारण के कारण सभी वस्तुओं की सृष्टि के प्रथम कार्य के रूप में प्रगट हुई। उसके तुरन्त बाद, परमेश्वर ने उजियाले और अंधियारे को अलग अलग होने की आज्ञा दी....। परमेश्वर के वचन के कारण हर चीज़ बदल गई और पूर्ण हो गई....। परमेश्वर ने इस उजियाले को "दिन" कहा और अंधियारे को उसने "रात" कहा। उस समय से, संसार में पहली शाम और पहली सुबह हुई जिन्हें परमेश्वर उत्पन्न करना चाहता था, और परमेश्वर ने कहा कि यह पहला दिन था। सृष्टिकर्ता के द्वारा सभी वस्तुओं की सृष्टि का यह पहला दिन था, और सभी वस्तुओं की सृष्टि का प्रारम्भ था, और यह पहली बार था जब सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ इस संसार में जिसे उसने सृजा था प्रकट हुआ था।

इन वचनों के द्वारा, मनुष्य परमेश्वर के अधिकार, और परमेश्वर के वचनों का अधिकार, और परमेश्वर की सामर्थ को देखने के योग्य हुआ। क्योंकि परमेश्वर ही ऐसी सामर्थ धारण करता है, और इस प्रकार केवल परमेश्वर के पास ही ऐसा अधिकार है, और क्योंकि परमेश्वर ऐसे अधिकार को धारण करता है, और इस प्रकार केवल परमेश्वर के पास ही ऐसी सामर्थ है। क्या कोई मनुष्य या पदार्थ ऐसा अधिकार और सामर्थ धारण करता है? क्या तुम लोगों के दिल में कोई उत्तर है? परमेश्वर को छोड़, क्या कोई सृजा गया और न सृजा गया प्राणी ऐसा अधिकार धारण करता है? क्या तुम सबने किसी पुस्तक या पुस्तकों के प्रकाशन में कभी किसी ऐसी चीज़ का उदाहरण देखा है? क्या कोई लेखा जोखा है कि किसी ने आकाश और पृथ्वी और सभी चीज़ों की सृष्टि की थी? यह किसी अन्य पुस्तक या लेखे में पाया नहीं जाता हैः ये वास्तव में केवल परमेश्वर के महिमामय संसार की सृष्टि के विषय में अधिकारयुक्त और सामर्थी वचन हैं, जो बाईबिल में दर्ज हैं, और ये वचन परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार, और परमेश्वर की अद्वितीय पहचान के विषय में बोलते हैं। क्या ऐसे अधिकार और सामर्थ के बारे में कहा जा सकता है कि वे परमेश्वर की अद्वितीय पहचान के प्रतीक हैं? क्या ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर, और सिर्फ परमेश्वर ही उनको धारण किए हुए है? बिना किसी सन्देह के, सिर्फ परमेश्वर ही ऐसा अधिकार और सामर्थ धारण करता है! इस अधिकार और सामर्थ को किसी सृजे गए या न सृजे गए प्राणी के द्वारा धारण नहीं किया जा सकता है और न बदला जा सकता है! क्या यह स्वयं अद्वितीय परमेश्वर के गुणों में से एक है? क्या तुम सब इसके साक्षी बने हो? ये वचन शीघ्रता और स्पष्टता से लोगों को सत्य को समझने की अनुमति देते हैं कि परमेश्वर अद्वितीय अधिकार, और अद्वितीय सामर्थ धारण करता है, और वह सर्वोच्च पहचान और हैसियत धारण किए हुए है। उपर्युक्त बातों की सहभागिता से, क्या तुम लोग कह सकते हो कि वह परमेश्वर जिस पर तुम सब विश्वास करते हो वह अद्वितीय परमेश्वर है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से
और पढ़ें:प्रभु यीशु के वचन——वे प्रभु की इच्छा रखते हैं——अधिक जानने के लिए अभी पढ़ें

सोमवार, 17 जून 2019

कैसे शासन करता है हर चीज़ पर परमेश्वर



  • I
  • जिस पल रोते हुए दुनिया में आते हो तुम,
  • उस पल से अपना काम करना शुरू कर देते हो तुम।
  • उसकी योजना और विधान में, अपनी अपनाकर भूमिका,
  • ज़िंदगी के सफ़र की शुरुआत कर देते हो तुम।
  • कैसे भी हों पहले के हालात, कैसा भी हो आगे का सफ़र,
  • बच नहीं सकता स्वर्ग की व्यवस्था से कोई,
  • नहीं है किसी के काबू में तकदीर उसकी,
  • जो करता है हर चीज़ पे शासन इस काम के काबिल है वही।
  • II
  • जिस दिन से आया है इंसान वजूद में,
  • तब से लगा है परमेश्वर अविचल अपने काम में,
  • कर रहा है प्रबंधन कायनात का, दे रहा है निर्देश बदलाव को,
  • कर रहा है संचालन हर चीज़ का वो।
  • हर चीज़ की तरह, इंसान अनजाने में, ख़ामोशी से,
  • पाता है मधुरता, बारिश और शबनम का पोषण परमेश्वर से।
  • हर चीज़ की तरह, इंसान अनजाने में,
  • जीता है परमेश्वर के हाथों के आयोजन के तले।
  •  
  • थाम रखे हैं दिल और आत्मा इंसान के परमेश्वर के हाथों ने,
  • पूरी ज़िंदगी इंसान की सामने है परमेश्वर की आँखों के।
  • तुम्हें यकीन हो न हो,
  • हर चीज़ का, वो ज़िंदा हो या मुर्दा हो,
  • परमेश्वर के विचार के मुताबिक बदलेगी जगह,
  • तब्दील होगी, नई हो जाएगी, ग़ायब हो जाएगी हर चीज़।
  • इस तरह शासन करता है हर चीज़ पर परमेश्वर, हर चीज़ पर परमेश्वर।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

  •       चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

  • अनुशंसित:मसीही गीत

बुधवार, 15 मई 2019

जो कुछ भी लोग कहते और करते हैं, वह बच नहीं सकता परमेश्वर की नज़र से



  • I
  • आस्था बहुत सुंदर है तुम लोगों की, तुम कहते हो,
  • अपना जीवन समर्पित करना कामना है तुम्हारी परमेश्वर के कार्य के लिये,
  • और जो कुछ तुम कर सकते हो करना चाहोगे उसके लिये।
  • लेकिन बदला नहीं है ज़्यादा स्वभाव तुम्हारा।
  • अहंकार के शब्द हैं जो बोले हैं तुमने,
  • मगर असलियत में जो करते हो तुम वो दयनीय है।
  • जैसे ज़बान और होंठ स्वर्ग में हों तुम्हारे,
  • लेकिन पाँव बहुत दूर धरती पर हैं तुम्हारे।
  • इस तरह शब्द, शोहरत और कर्म भयावह स्थिति में हैं तुम्हारे।
  • क्या लगता है तुम्हें, पा सकते हो अधिकार
  • प्रवेश करने का परमेश्वर के कार्य और वचनों की पावन धरती पर
  • उसके द्वारा बिना तुम्हारे तमाम शब्दों और कर्मों की परीक्षा के?
  • क्या दे सकता है धोखा कोई उसकी आँखों को?
  • कैसे बच सकते हैं नीच कर्म और तुच्छ बातें तुम्हारी उसकी नज़रों से?
  • II
  • खंडित हो चुकी है ख्याति तुम्हारी,
  • गिरता जा रहा है व्यवहार तुम्हारा, तुच्छ हैं शब्द तुम्हारे,
  • घिनौना है जीवन तुम्हारा, अधम है मानवता तुम्हारी।
  • बहुत तंग-ख़्याल हो इंसानों के प्रति तुम,
  • मोल-भाव करते हो हर छोटी बात तुम।
  • तकरार करते हो हैसियत और प्रतिष्ठा जैसी बातों पर तुम,
  • इस हद तक कि नरक के रास्ते पर जाने को तैयार हो तुम,
  • आग के दरिया में भी कूद जाओगे तुम।
  • मौजूदा शब्द और कर्म तुम्हारे काफ़ी हैं
  • परमेश्वर के लिये ये बताने को कि पापी हो तुम।
  • III
  • परमेश्वर के काम के प्रति रवैया तुम्हारा पर्याप्त है
  • उसे यह तय करने देने के लिये कि अधार्मिक हो तुम लोग।
  • तमाम स्वभाव तुम्हारे काफ़ी हैं ये बताने के लिये,
  • घृणित चीज़ों से भरे, मलिन आत्मा हो तुम लोग।
  • जो कुछ तुम लोग करते हो, प्रकट करते हो, एक मायने हो सकते हैं उसके:
  • पिया है भरपूर रक्त मैली आत्माओं का तुम लोगों ने।
  • ज़िक्र आता है जब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश का,
  • तो प्रयास करते हो तुम लोग अपने जज़्बात को अपने तक ही रखने का।
  • क्या काफ़ी हैं परमेश्वर के राज्य तक जाने के लिये तरीके तुम्हारे?
  • क्या लगता है तुम्हें, पा सकते हो अधिकार
  • प्रवेश करने का परमेश्वर के कार्य और वचनों की पावन धरती पर
  • उसके द्वारा बिना तुम्हारे तमाम शब्दों और कर्मों की परीक्षा के?
  • क्या दे सकता है धोखा कोई उसकी आँखों को?
  • कैसे बच सकते हैं नीच कर्म और तुच्छ बातें तुम्हारी उसकी नज़रों से?
  • नज़र रखता है परमेश्वर तमाम लोगों के दिलों पर
  • क्योंकि इंसान को बनाने से बहुत पहले,
  • थाम लिया था लोगों के दिलों को अपने हाथों में उसने।
  • देख लिया था लोगों के दिलों में बहुत पहले उसने,
  • इसलिये कैसे बच सकते हैं ख़्याल इंसान के दिल में उसकी नज़रों से?
  • कैसे मिल सकता है उन्हें पर्याप्त समय बचने का उसके आत्मा की तपन से,
  • उसके आत्मा की तपन से?
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

गुरुवार, 9 मई 2019

सृष्टिकर्ता के अधिकार के तहत हर चीज़ अत्युत्तम है



  • I
  • परमेश्वर ने बनायीं हैं जो सभी चीज़ें,
  • चल-अचल सभी चीज़ें,
  • जैसे मछली, पक्षी, फूल और पेड़-पौधे,
  • पशुधन, जंगली जीव और कीड़े-मकौड़े,
  • परमेश्वर की नज़रों में वे भले थे,
  • थे परमेश्वर की नजरों में, उसकी योजना के हिसाब से
  • अपनी पूर्णता की चोटी पे,
  • परमेश्वर चाहता था जो, उस दर्जे को वे पा चुके थे।
  • II
  • कदम-दर-कदम उसने काम किया,
  • उसकी योजना में था जो वो सब किया।
  • एक एक कर प्रकट हुईं वो चीज़ें,
  • जिन्हें बनाने का उसने इरादा किया था।
  • हर एक चीज़ है अभिव्यक्ति उसके अधिकार की और है उसका नतीजा।
  • और इसके कारण ही, सभी प्राणी
  • हैं सृष्टिकर्ता के अनुग्रह के आभारी,
  • हैं सृष्टिकर्ता के अनुग्रह के आभारी।
  • III
  • जैसे जैसे स्पष्ट होने लगे,
  • अद्भुत कर्म परमेश्वर के,
  • ये जहाँ, एक एक कर भर गया
  • परमेश्वर द्वारा बनाई गयी चीज़ों से।
  • बदल गया ये जहाँ,
  • अव्यवस्था से स्पष्टता में,
  • अंधकार से उजाले में,
  • स्थिरता से सजीवता में,
  • मौत सी स्थिरता से, अनंत जीवन चेतना में।
  • IV
  • सृष्टि की सारी चीज़ों में,
  • सबसे बड़ी से सबसे छोटी तक,
  • छोटी से बहुत ही छोटी तक,
  • नहीं थी ऐसी कोई चीज़ जो बनाई न गयी,
  • परमेश्वर के अधिकार से, परमेश्वर के सामर्थ्य से।
  • हर एक प्राणी के अस्तित्व के पीछे,
  • थी एक अनूठी, निहित ज़रूरत और महत्व।
  • चाहे हो कोई भी रूप या आकार उनका,
  • उसके अधिकार के तहत ही अस्तित्व है सभी का।
  • V
  • सृष्टिकर्ता के अधिकार में,
  • सभी प्राणी उसकी प्रभुता के लिए नई धुन बजायेंगे, बजायेंगे,
  • नये दिन के उसके कार्य से पर्दा उठाएंगे, उठाएंगे।
  • और इसी क्षण में,
  • अपने प्रबन्धन के कार्य में,
  • सृष्टिकर्ता खोलेगा नया पन्ना।
  • हाँ, सृष्टिकर्ता खोलेगा नया पन्ना।
  • VI
  • सृष्टिकर्ता द्वारा निश्चित,
  • बसंत के अंकुरण, गर्मी की परिपक्वता,
  • शरद की कटनी और सर्दी के संचय
  • की व्यवस्था के अनुसार सभी चीज़ें,
  • परमेश्वर की प्रबन्धन योजना से गूंजेंगी,
  • अपने नये दिन का, नई शुरुआत का,
  • नये जीवन पथक्रम का स्वागत करेंगीं।
  • जल्द ही पीढ़ी दर पीढ़ी प्रजनन करेंगीं,
  • ताकि परमेश्वर के अधिकार की प्रभुता के अधीन,
  • वे करें स्वागत हर नये दिन का।
  • सब कुछ अत्युत्तम है।
  • सब कुछ अत्युत्तम है।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से



      ​चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं। (उत्पत्ति 19...