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गुरुवार, 1 नवंबर 2018

6. क्या धार्मिक दुनिया में सच्चाई और परमेश्वर की सत्ता होती है, या मसीह-शत्रु और शैतान की सत्ता है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्‍ती 23:13)।
"यीशु ने परमेश्‍वर के मन्दिर में जाकर उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं; और उनसे कहा, 'लिखा है, "मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा"; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो'" (मत्‍ती 21:12-13)।

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

4. क्या धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग सभी वास्तव में परमेश्वर द्वारा प्रतिष्ठित हैं? क्या धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों के प्रति स्वीकृति और आज्ञाकारिता परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और उसके अनुसरण को दर्शा सकती हैं?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"इसलिये अब सुन, इस्राएलियों की चिल्‍लाहट मुझे सुनाई पड़ी है, और मिस्रियों का उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है। इसलिये आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए" (निर्गमन 3:9-10)।
"भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, 'हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है?' ... उसने उससे कहा, 'मेरे मेमनों को चरा।' उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, 'हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?' ... उसने उससे कहा, 'मेरी भेड़ों की रखवाली कर' (युहन्ना 21:15-16)।

रविवार, 28 अक्टूबर 2018

2. यह क्यों कहा जाता है कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग सभी फरीसियों के मार्ग पर चल रहे हैं? उनका सार क्या है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"फिर वह दृष्‍टान्तों में उनसे बातें करने लगा: "किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा, और रस का कुण्ड खोदा, और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। फिर फल के मौसम में उसने किसानों के पास एक दास को भेजा कि किसानों से दाख की बारी के फलों का भाग ले। पर उन्होंने उसे पकड़कर पीटा और छूछे हाथ लौटा दिया। फिर उसने एक और दास को उनके पास भेजा; उन्होंने उसका सिर फोड़ डाला और उसका अपमान किया।

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

1. प्रभु यीशु ने फरीसियों को क्यों शाप दिया था? वास्तव में फरीसियों का सार क्या है?


1. प्रभु यीशु ने फरीसियों को क्यों शाप दिया था? वास्तव में फरीसियों का सार क्या है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्‍वर की आज्ञा टालते हो? क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है, 'अपने पिता और अपनी माता का आदर करना', और 'जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।'

शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

3. व्यवस्था के युग में नबियों के द्वारा दिए गए परमेश्वर के वचनों और देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त परमेश्वर के वचनों में क्या अंतर है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

अनुग्रह के युग में, यीशु ने भी काफ़ी बातचीत की और काफ़ी कार्य किया। वह यशायाह से किस प्रकार भिन्न था? वह दानिय्येल से किस प्रकार भिन्न था? क्या वह कोई भविष्यद्वक्ता था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह मसीह है? उनके मध्य क्या भिन्नताएँ हैं? वे सभी मनुष्य थे जिन्होंने वचन बोले थे, और मनुष्य को उनके वचन लगभग एक से प्रतीत होते थे। उन सभी ने बातें की और कार्य किए। पुराने विधान के भविष्यवद्क्ताओं ने भविष्यवाणियाँ की, और उसी तरह से, यीशु भी वैसा ही कर सका। ऐसा क्यों है? यहाँ कार्य की प्रकृति के आधार पर भिन्नता है।

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

5. परमेश्वर में सच्चा विश्वास वास्तव में क्या है? किसी को परमेश्वर में कैसे विश्वास करना चाहिए कि वह परमेश्वर से प्रशंसा प्राप्त कर सके?




5. परमेश्वर में सच्चा विश्वास वास्तव में क्या है? किसी को परमेश्वर में कैसे विश्वास करना चाहिए कि वह परमेश्वर से प्रशंसा प्राप्त कर सके?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

यद्यपि बहुत से लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, किंतु बहुत कम लोग समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ क्या है, और परमेश्वर के मन के अनुरूप बनने के लिये उन्हें क्या करना चाहिए।

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

4. बाइबल में अनन्त जीवन का कोई मार्ग नहीं है; यदि मनुष्य बाइबल को थामे रहता है और उसकी आराधना करता है, तो वह अनन्त जीवन को प्राप्त नहीं करेगा।

4. बाइबल में अनन्त जीवन का कोई मार्ग नहीं है; यदि मनुष्य बाइबल को थामे रहता है और उसकी आराधना करता है, तो वह अनन्त जीवन को प्राप्त नहीं करेगा।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, या ढूँढ़ो क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (युहन्ना 5:39-40)।
"मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (युहन्ना 14:6)।

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

2. धार्मिक दुनिया का मानना है कि सभी शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिए गए हैं और ये सब परमेश्वर के ही वचन हैं; इस कथन के प्रति हर किसी को क्या विवेक रखना चाहिए?


2. धार्मिक दुनिया का मानना है कि सभी शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिए गए हैं और ये सब परमेश्वर के ही वचन हैं; इस कथन के प्रति हर किसी को क्या विवेक रखना चाहिए?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

बाइबल की हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का लिखित दस्तावेज़ नहीं है। बाइबल सामान्यतः परमेश्वर के कार्य की पिछली दो अवस्थाओं का आलेख करती है, उसमें से एक भाग है जो पैग़म्बरों की भविष्यवाणियों का लिखित दस्तावेज़ है, और एक भाग वह अनुभव और ज्ञान है जिन्हें युगों के दौरान उन लोगों के द्वारा लिखा गया था जिन्हें परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किया गया था।

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

5. परमेश्वर कैसे पूरे ब्रह्मांड पर प्रभुत्व रखता है और प्रशासन करता है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

इस विशाल ब्रह्मांड में ऐसे कितने प्राणी हैं जो सृष्टि के नियम का बार-बार पालन करते हुए, एक ही निरंतर नियम पर चल रहे हैं और प्रजनन कार्य में लगे हैं। जो लोग मर जाते हैं वे जीवितों की कहानियों को अपने साथ ले जाते हैं और जो जीवित हैं वे मरे हुओं के वही त्रासदीपूर्ण इतिहास को दोहराते रहते हैं। मानवजाति बेबसी में स्वयं से पूछती हैः हम क्यों जीवित हैं?

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

3. परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता और ज्ञान मुख्यतः किन पहलुओं में प्रकट हैं?


परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

परमेश्वर के वचन अधिकार हैं, परमेश्वर के वचन प्रमाणित सत्य हैं, और उसके मुँह से वचन के निकलने से पहले ही, दूसरे शब्दों में, जब परमेश्वर कुछ करने का निर्णय लेता है, तब ही उस चीज़ को पहले से ही पूरा करा जा चुका होता है।
"वचन देह में प्रकट होता है से आगे जारी" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I" से

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

2. क्या मसीह वास्तव में परमेश्वर का पुत्र है या वह खुद ही परमेश्वर है?

2. क्या मसीह वास्तव में परमेश्वर का पुत्र है या वह खुद ही परमेश्वर है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"फिलिप्पुस ने उससे कहा, 'हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है।' यीशु ने उससे कहा, 'हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। मेरा विश्‍वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्‍वास करो'" (यूहन्ना 14:8-11)।
"मैं और पिता एक हैं" (यूहन्ना 10:30)।

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

3. हर व्यक्ति को देहधारी मसीह और झूठे मसीहों/झूठे भविष्यद्वक्ताओं के बीच रहे अंतर को अवश्य पहचानना चाहिए।


3. हर व्यक्ति को देहधारी मसीह और झूठे मसीहों/झूठे भविष्यद्वक्ताओं के बीच रहे अंतर को अवश्य पहचानना चाहिए।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:24)।
"मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)।

शनिवार, 29 सितंबर 2018

1. परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के बीच सारभूत अंतर क्या है?


1. परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के काम के बीच सारभूत अंतर क्या है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

स्वयं परमेश्वर के कार्य में सम्पूर्ण मानवजाति का कार्य सम्मिलित है, और यह सम्पूर्ण युग के कार्य का भी प्रतिनिधित्व करता है। कहने का तात्पर्य है, परमेश्वर का स्वयं का कार्य पवित्र आत्मा के सभी कार्य की गति एवं प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि प्रेरितों का कार्य परमेश्वर के स्वयं के कार्य का अनुसरण करता है और युग की अगुवाई नहीं करता है, न ही यह सम्पूर्ण युग में पवित्र आत्मा के कार्य करने की प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

2. हर किसी को यह समझना चाहिए कि अंतिम दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त की गई सारी सच्चाई अनन्त जीवन का मार्ग है।



2. हर किसी को यह समझना चाहिए कि अंतिम दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त की गई सारी सच्चाई अनन्त जीवन का मार्ग है।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)।

बुधवार, 26 सितंबर 2018

1. हर किसी को यह समझना चाहिए कि प्रभु यीशु द्वारा अनुग्रह के युग में फैलाया गया संदेश केवल पश्चाताप का मार्ग था।

1. हर किसी को यह समझना चाहिए कि प्रभु यीशु द्वारा अनुग्रह के युग में फैलाया गया संदेश केवल पश्चाताप का मार्ग था।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)।
"क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये fपापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है" (मत्ती 26:28)।
"और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा" (लूका 24:47)।

शनिवार, 22 सितंबर 2018

3. अनुग्रह के युग की तुलना में राज्य के युग में, कलीसियाई जीवन में क्या अंतर है?

3. अनुग्रह के युग की तुलना में राज्य के युग में, कलीसियाई जीवन में क्या अंतर है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"जब वे खा रहे थे तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, 'लो, खाओ; यह मेरी देह है।' फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, 'तुम सब इसमें से पीओ, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है'" (मत्ती 26:26-28)।
"मैं ने स्वर्गदूत के पास जाकर कहा, 'यह छोटी पुस्तक मुझे दे।' उसने मुझ से कहा, 'ले, इसे खा ले; यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, पर तेरे मुँह में मधु सी मीठी लगेगी'" (प्रकाशितवाक्य 10:9)।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

जब, अनुग्रह के युग में, परमेश्वर तीसरे स्वर्ग में लौटा, तो समस्त मानव जाति के छुटकारे का परमेश्वर का कार्य वास्तव में पहले से ही अपनी समापन की क्रिया में चला गया था।

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?

1. अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त वचनों और राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में क्या अंतर है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)।
"और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा" (लूका 24:47)।
"यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।" (यूहन्ना 12:47-48)।
"क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1पतरस 4:17)।

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

3. परमेश्वर का नाम बदल सकता है, लेकिन उसका सार कभी नहीं बदलेगा।

3. परमेश्वर का नाम बदल सकता है, लेकिन उसका सार कभी नहीं बदलेगा।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किन्तु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता का संकेत करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता है कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य हमेशा वैसा ही बना रहता है, तो क्या वह अपनी छः-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना को पूरा करने में सक्षम होगा

सोमवार, 17 सितंबर 2018

2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?


2. परमेश्वर के कार्य के हर चरण और उसके नाम के बीच क्या संबंध है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"फिर परमेश्‍वर ने मूसा से यह भी कहा, 'तू इस्राएलियों से यह कहना, "तुम्हारे पितरों का परमेश्‍वर, अर्थात् अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर, और याक़ूब का परमेश्‍वर, यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है।" देख, सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा'" (निर्गमन 3:15)।

रविवार, 16 सितंबर 2018

1. विभिन्न युगों में परमेश्वर को अलग-अलग नामों से क्यों बुलाया जाता है? परमेश्वर के नामों के महत्व क्या हैं?


1. विभिन्न युगों में परमेश्वर को अलग-अलग नामों से क्यों बुलाया जाता है? परमेश्वर के नामों के महत्व क्या हैं?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

तुम्हें पता होना चाहिए कि मूल रूप से परमेश्वर का का कोई नाम नहीं था। उसने केवल एक, या दो या कई नाम धारण किए क्योंकि उसके पास करने के लिए काम था और उसे मानव जाति का प्रबंधन करना था। चाहे उसे किसी भी नाम से बुलाया जाए, क्या यह उसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से चुना नहीं जाता है?

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं। (उत्पत्ति 19...