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शनिवार, 17 अगस्त 2019

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं।
(उत्पत्ति 19:1-11) सांझ को वे दो दूत सदोम के पास आए और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा था। उनको देखकर वह उनसे भेंट करने के लिए उठा और मुंह के बल झुककर दण्डवत कर कहा "हे मेरे प्रभुओं, अपने दास के घर में पधारिये और रात भर विश्राम कीजिये और अपने पांव धोइये, फिर भोर को उठकर अपने मार्ग पर जाइये।" उन्होंने कहा, "नहीं हम चौक ही में रात बिताएंगे।" पर उसने उनसे बहुत विनती करके उन्हें मनाया, इसलिए वे उसके साथ चलकर उसके घर में आए और उसने उनके लिए भोजन तैयार किया और बिना खमीर की रोटियां बनाकर उनको खिलाई; उनके सो जाने से पहले, सदोम नगर के पुरुषों ने, जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया और लूत को पुकारकर कहने लगे, "जो पुरुष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहां हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ कि हम उनसे भोग करें।" तब लूत उनके पास द्वार के बाहर गया और किवाड़ को अपने पीछे बंद करके कहा "हे मेरे भाइयों ऐसे बुराई न करो। सुनो, मेरी दो बेटियां हैं जिन्होंने अब तक पुरुष का मुंह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊं और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उनसे करो, पर इन पुरुषों से कुछ न करो, क्योंकि ये मेरी छत तले आए हैं।" उन्होंने कहा "हट जा!" फिर वे कहने लगे, "तू एक परदेशी होकर यहां रहने के लिये आया, पर अब न्यायी भी बन बैठा है, इसलिये अब हम उनसे भी अधिक तेरे साथ बुराई करेंगे।" और वे उस पुरुष लूत को बहुत दबाने लगे और किवाड़ तोड़ने के लिये निकट आए।तब उन अतिथियों ने हाथ बढ़ाकर लूत को अपने पास घर में खींच लिया और किवाड़ को बंद कर दिया और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरूषों को जो द्वार पर थे, अंधा कर दिया, अतः वे द्वार को टटोलते टटोलते थक गए।

(उत्पत्ति 19:24-25) "तब यहोवा ने अपनी ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई और उन नगरों को और उस सम्पूर्ण तराई को और नगरों के सब निवासियों को, भूमि की सारी उपज समेत नष्ट कर दिया।"
इन अंशों से, यह देखना कठिन नहीं है कि सदोम का अधर्म और भ्रष्टता पहले से ही उस मात्रा तक पहुँच चुका था जो परमेश्वर और मुनष्यों दोनों के लिए घृणास्पद था, और इसलिए परमेश्वर की दृष्टि में नगर नाश किए जाने के लायक था। परन्तु नगर के नाश किए जाने से पहले उसके भीतर क्या हुआ था? हम इन घटनाओं से क्या सीख सकते हैं? इन घटनाओं के प्रति परमेश्वर की मनोवृत्ति उसके स्वभाव के विषय में हमें क्या दिखाती है? सम्पूर्ण कहानी को समझने के लिए, जो कुछ पवित्र शास्त्र में लिखा गया था आओ हम उसे सावधानीपूर्वक पढ़ें।
सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली
उस रात, लूत ने परमेश्वर के दो दूतों का स्वागत किया और उनके लिए एक भोज तैयार किया। रात्रि के भोजन पश्चात्, उनके लेटने से पहले, नगर के चारों ओर से लोगों की भीड़ ने लूत के घर को घेर लिया और लूत को बाहर बुलाने लगे। पवित्र शास्त्र उन्हें दर्ज करता है यह कहते हुए, "जो पुरुष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहां हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ कि हम उनसे भोग करें।" इन शब्दों को किसने कहा था? इन्हें किन से कहा गया था? ये सदोम के लोगों के शब्द थे, जो लूत के घर के बाहर चिल्लाते थे और ये लूत के लिए थे। इन शब्दों को सुनकर कैसा महसूस होता है? क्या तुम क्रोधित हो? क्या इन शब्दों से तुम्हें घिन आती है? क्या तुम क्रोध के मारे आगबबूला हो रहे हो? क्या ये शब्द शैतान की तीखी दुर्गन्ध नहीं है? उनके जरिए, क्या तुम इस नगर की बुराई और अन्धकार का एहसास कर सकते हो? क्या तुम उनके शब्दों के जरिए इन लोगों के व्यवहार की क्रूरता और असभ्यता का एहसास कर सकते हो? क्या तुम उनके आचरण के जरिए उनकी भ्रष्टता की गहराई का एहसास कर सकते हो? उनकी बोली की विषयवस्तु के जरिए, यह देखना कठिन नहीं है कि उनकी बुरी प्रवृत्ति और हिंसक स्वभाव एक ऐसे स्तर तक पहुँच गया था जो उनके खुद के नियन्त्रण से परे था। लूत को छोड़कर, नगर का हर अंतिम व्यक्ति शैतान से अलग नहीं था; अन्य व्यक्तियों की मात्र झलक से ही ये लोग उन्हें नुकसान पहुंचना और निगल जाना चाहते थे…. ये चीज़ें न केवल एक व्यक्ति को नगर के भयंकर और डरावने स्वभाव, साथ ही साथ इस के चारों ओर मौत के घेरे का एहसास कराती हैं; बल्कि वे एक व्यक्ति को उसकी बुराई एवं खूनी प्रवृत्ति का भी एहसास कराती हैं।

जब उसने स्वयं को अमानवीय ठगों के गिरोह के आमने-सामने पाया, ऐसे लोग जो प्राणों को निगल जाने की लालसा से भरे हुए थे, तो लूत ने कैसा प्रत्युत्तर दिया था? पवित्र शास्त्र के अनुसार: "हे भाइयों ऐसी बुराई न करो। सुनो, मेरी दो बेटियां है जिन्होंने अब तक पुरुष का मुंह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊं और तुमको जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उनसे करो, पर इन पुरुषों से कुछ न करो, क्योंकि ये मेरी छत तले आए हैं।" लूत के शब्दों का अभिप्राय निम्नलिखित था: वह दूतों को बचाने के लिए अपनी दो बेटियों को त्यागने के लिए तैयार हो गया था। इस कारण से, इन लोगों को लूत की शर्तों से सहमत हो जाना चाहिए था और दोनों दूतों को अकेला छोड़ देना चाहिए था; बहरहाल, वे दूत उनके लिए पूरी तरह से अजनबी थे, ऐसे लोग जिनका उनके साथ कोई लेना देना नहीं था; इन दोनों दूतों ने उनके हितों को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया था। फिर भी, अपनी बुरी प्रवृत्ति से प्रेरित होकर, उन्होंने उस मुद्दे को यहाँ पर नहीं छोड़ा। उसके बजाए, उन्होंने केवल अपने प्रयासों को और अधिक तेज कर दिया। यहां उनकी एक और अदला-बदली बिना किसी सन्देह के एक व्यक्ति को इन लोगों के असली पापपूर्ण स्वभाव की और अधिक अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है; उसी समय यह किसी व्यक्ति को उस कारण को जानने और बूझने की अनुमति भी देती है कि क्यों परमेश्वर इस नगर को नाश करना चाहता था।
अत: उन्होंने आगे क्या कहा? जैसा बाइबल में पढ़ते है: "हट जा!" फिर वे कहने लगे, "तू एक परदेशी होकर यहां रहने के लिए आया, पर अब न्यायी भी बन बैठा, इसलिए अब हम उनसे भी अधिक तेरे साथ बुराई करेंगे।" और वे उस पुरुष को बहुत दबाने लगे और किवाड़ तोड़ने के लिए निकट आए। वे किवाड़ को क्यों तोड़ना चाहते थे? वजह यह है कि वे उन दोनों दूतों को नुकसान पहुँचाने के लिए बहुत उत्सुक थे। वे दोनों दूत सदोम में क्या कर रहे थे? वहां आने का उनका उद्देश्य था लूत एवं उसके परिवार को बचाना; फिर भी, नगर के लोगों ने ग़लत रीति से सोचा कि वे आधिकारिक पदों पर हक़ जमाने के लिए आए थे। उनके उदेश्य को पूछे बिना, यह मात्र अनुमान ही था जिससे नगरवासियों ने असभ्यता से उन दोनों दूतों को नुकसान पहुंचाना चाहा; वे ऐसे दो जनों को चोट पहुंचाना चाहते थे जिनका उनके साथ किसी भी प्रकार का लेना देना नहीं था। यह स्पष्ट है कि नगर के लोगों ने पूरी तरह से अपनी मानवता और तर्कशक्ति को गंवा दिया था। उनके पागलपन और असभ्यता का स्तर पहले से ही मनुष्यों को नुकसान पहुँचाने वाले और निगल जानेवाले शैतान के दुष्ट स्वभाव से अलग नहीं था।
जब उन्होंने लूत से इन लोगों को मांगा, तब लूत ने क्या किया? पाठ से हमें ज्ञात होता है कि लूत ने उन्हें नहीं सौंपा। क्या लूत परमेश्वर के इन दोनों दूतों को जानता था? बिलकुल भी नहीं! परन्तु वह इन दोनों लोगों को बचाने में समर्थ क्यों था? क्या उसे मालूम था कि वे क्या करने आए थे? यद्यपि वह उनके आने के कारण से अनजान था, फिर भी वह जानता था कि वे परमेश्वर के सेवक हैं, और इस प्रकार उसने उनका स्वागत किया। सदोम के भीतर के अन्य लोगों से अलग, वह परमेश्वर के इन दासों को स्वामी कहकर बुला सकता था जो यह दिखाता है कि लूत आम तौर पर परमेश्वर का एक अनुयायी था। इसलिए, जब परमेश्वर के दूत उसके पास आए, तो इन दोनों सेवकों का स्वागत करने के लिए उसने अपने स्वयं के जीवन को जोखिम में डाल दिया था, उससे बढ़कर, इन दोनों सेवकों की सुरक्षा करने के लिए उसने अपनी बेटियों की अदला-बदली भी की थी। यह लूत का धर्मी कार्य है; साथ ही यह लूत के स्वभाव और उसकी हस्ती का एक स्पृश्य प्रकटीकरण है, और साथ ही यह वह कारण भी है कि परमेश्वर ने लूत को बचाने के लिए अपने सेवकों को भेजा था। जोखिम का सामना करते समय, लूत ने किसी भी चीज़ की परवाह किए बगैर इन दोनों सेवकों की सुरक्षा की; यहाँ तक कि उसने सेवकों की सुरक्षा के बदले में अपनी दोनों बेटियों का सौदा करने का भी प्रयास किया था। लूत के अतिरिक्त, क्या नगर के भीतर कोई ऐसा था जो कुछ इस तरह का काम कर सकता था? जैसे कि तथ्य साबित करते हैं – नहीं ! इसलिए, कहने की आवश्यकता नहीं है कि लूत को छोड़कर सदोम के भीतर हर कोई विनाश का एक लक्ष्य था साथ ही साथ एक ऐसे लक्ष्य के समान था जो विनाश के योग्य था।
                                                                      "वचन देह में प्रकट होता है" से
और पढ़ें:प्रभु यीशु के वचन——वे प्रभु की इच्छा रखते हैं——अधिक जानने के लिए अभी पढ़ें

शनिवार, 10 अगस्त 2019

परमेश्वर सदोम को नष्ट कर देते हैं

(उत्पत्ति 18:26) यहोवा ने कहा, "यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्थान को छोड़ूँगा।"
(उत्पत्ति 18:29) फिर उसने उससे दोबारा यह कहा, कदाचित् वहाँ चालीस मिलें। और उसने कहा, मैं ऐसा न करूँगा।
(उत्पत्ति 18:30) फिर उसने उससे कहा, कदाचित् वहाँ तीस मिलें। और उसने कहा, मैं ऐसा न करूँगा।
(उत्पत्ति 18:31) और उसने कहा, कदाचित् वहाँ बीस मिलें। और उसने कहा, मैं उसका नाश न करूँगा।
(उत्पत्ति 18:32) और उसने कहा, कदाचित् वहाँ दस मिलें। और उसने कहा, मैं उसका नाश न करूँगा।
ये कुछ उद्धरण हैं जिन्हें मैंने बाइबल से चुना है। वे सम्पूर्ण, एवं मूल अनुवाद नहीं हैं। यदि तुम लोग उन्हें देखना चाहते हो, तो तुम लोग स्वयं ही उन्हें बाइबल में देख सकते हो; समय बचाने के लिए, मैंने मूल विषय-वस्तु के एक भाग को हटा दिया है। मैंने यहाँ पर केवल कुछ मुख्य अंशों और वाक्यों का चयन किया है, और कई वाक्यों को हटा दिया है जिनका आज हमारी सहभागिता से कोई सम्बन्ध नहीं है। सभी अंश एवं विषय-वस्तु जिन के विषय में हम सहभागिता करते हैं, हमारा ध्यान कहानियों के विवरणों के ऊपर से और इन कहानियों में मनुष्य के आचरण के ऊपर से हट जाता है; उसके बजाए, हम केवल परमेश्वर के विचारों एवं युक्तियों के विषय में बात करते हैं जो उस समय थे। परमेश्वर के विचारों एवं युक्तियों में, हम परमेश्वर के स्वभाव को देखेंगे, और सभी चीज़ों से जो परमेश्वर ने किया था, हम सच्चे स्वयं परमेश्वर को देखेंगे—और इस में हम अपने उद्देश्य को हासिल करेंगे।
परमेश्वर केवल ऐसे लोगों के विषय में ही चिंता करता है जो उसके वचनों को मानने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने के योग्य हैं।

ऊपर दिए गए अंशों में कई मुख्य शब्द समाविष्ट हैं: संख्या। पहला, यहोवा ने कहा कि यदि उसे नगर में पचास धर्मी मिलें, तो वह उस सारे स्थान को छोड़ देगा, दूसरे शब्दों में, वह नगर का नाश नहीं करेगा। अतः क्या वहाँ सदोम के भीतर वास्तव में पचास धर्मी थे? वहाँ नहीं थे। इसके तुरन्त बाद, अब्राहम ने परमेश्वर से क्या कहा? उसने कहा, कदाचित् वहाँ चालीस मिलें। परमेश्वर ने कहा, मैं नाश नहीं करूंगा। इसके आगे, अब्राहम ने कहा, यदि वहाँ तीस मिलें? परमेश्वर ने कहा, मैं नाश नहीं करूंगा। यदि वहाँ बीस मिलें? मैं नाश नहीं करूंगा। दस? मैं नाश नहीं करूंगा। क्या वहाँ नगर के भीतर वास्तव में दस धर्मी थे? वहाँ पर दस नहीं थे—केवल एक ही था। और वह कौन था? वह लूत था। उस समय, सदोम में मात्र एक ही धर्मी व्यक्ति था, परन्तु क्या परमेश्वर बहुत कठोर था या बलपूर्वक मांग कर रहा था जब बात इस संख्या तक पहुंच गयी? नहीं, वह कठोर नहीं था। और इस प्रकार, जब मनुष्य लगातार पूछता रहा, "चालीस हों तो क्या?" "तीस हों तो क्या?" जब वह "दस हों तो क्या" तक नहीं पहुंच गया? परमेश्वर ने कहा, "यदि वहाँ पर मात्र दस भी होंगे तो मैं उस नगर को नाश नहीं करूंगा; मैं उसे बचा रखूंगा, और इन दस के कारण सभी को माफ कर दूंगा।" दस की संख्या काफी दयनीय होती, परन्तु ऐसा हुआ कि, सदोम में वास्तव में उतनी संख्या में भी धर्मी लोग नहीं थे। तो तू देख, कि परमेश्वर की नज़रों में, नगर के लोगों का पाप एवं दुष्टता ऐसी थी कि परमेश्वर के पास उसे नष्ट करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। परमेश्वर का क्या अभिप्राय था जब उसने कहा कि वह उस नगर को नष्ट नहीं करेगा यदि उस में पचास धर्मी मिलें? परमेश्वर के लिए ये संख्याएं महत्वपूर्ण नहीं थीं। जो महत्वपूर्ण था वह यह कि उस नगर में ऐसे धर्मी हैं या नहीं जिन्हें वह चाहता था। यदि उस नगर में मात्र एक धर्मी मनुष्य होता, तो परमेश्वर उस नगर के विनाश के कारण उनकी हानि की अनुमति नहीं देता। इसका अर्थ यह है कि, इसके बावजूद कि परमेश्वर उस नगर को नष्ट करने वाला था या नहीं, और इसके बावजूद कि उसके भीतर कितने धर्मी थे या नहीं, परमेश्वर के लिए यह पापी नगर श्रापित एवं घिनौना था, और इसे नष्ट किया जाना चाहिए, इसे परमेश्वर की दृष्टि से ओझल हो जाना चाहिए, जबकि धर्मी लोगों को बने रहना चाहिए। युग के बावजूद, मानवजाति के विकास की अवस्था के बावजूद, परमेश्वर की मनोवृत्ति नहीं बदलती है: वह बुराई से घृणा करता है, और अपनी नज़रों में धर्मी की परवाह करता है। परमेश्वर की यह स्पष्ट मनोवृत्ति ही परमेश्वर की हस्ती (मूल-तत्व) का सच्चा प्रकाशन है। क्योंकि वहाँ उस नगर के भीतर केवल एक ही धर्मी व्यक्ति था, इसलिए परमेश्वर और नहीं हिचकिचाया। अंत का परिणाम यह था कि सदोम को आवश्यक रूप से नष्ट किया जाएगा। इस में तुम लोग क्या देखते हो? उस युग में, परमेश्वर ने उस नगर को नष्ट नहीं किया होता यदि उसके भीतर पचास धर्मी होते, और तब भी नष्ट नहीं करता यदि दस धर्मी भी होते, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर ने मानवजाति को क्षमा करने और उसके प्रति सहनशील होने का निर्णय लिया होता, या कुछ लोगों के कारण मार्गदर्शन देने का कार्य किया होता जो उसका आदर करने और उसकी आराधना करने के योग्य होते। परमेश्वर मनुष्य की धार्मिकता में बड़ा विश्वास करता है, ऐसे लोगों में बड़ा विश्वास करता है जो उसकी आराधना करने के योग्य हैं, और वह ऐसे लोगों में बड़ा विश्वास करता है जो उसके सामने भले कार्यों को करने के योग्य हैं।
परमेश्वर उन लोगों के प्रति अत्यंत दयालु है जिनकी वह परवाह करता है, और उन लोगों के प्रति अत्याधिक क्रोधित है जिनसे वह घृणा करताएवं अस्वीकार करता है
बाइबल के लेखों में, क्या सदोम में परमेश्वर के दस सेवक थे? नहीं, वहाँ नहीं थे! क्या वह नगर परमेश्वर के द्वारा बचाए जाने के योग्य था? उस नगर में केवल एक व्यक्ति—लूत—ने परमेश्वर के संदेशवाहकों को ग्रहण किया था। इसका आशय यह है कि उस नगर में केवल एक ही परमेश्वर का दास था, और इस प्रकार परमेश्वर के पास लूत को बचाने और सदोम के नगर को नष्ट करने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं था। हो सकता है कि अब्राहम और परमेश्वर के बीच का संवाद साधारण दिखाई दे, परन्तु वे कुछ ऐसी बात को प्रदर्शित करते हैं जो बहुत ही गम्भीर हैं: परमेश्वर के कार्यों के कुछ सिद्धान्त होते हैं, और किसी निर्णय को लेने से पहले वह अवलोकन एवं चिंतन करते हुए लम्बा समय बिताएगा; इससे पहले कि सही समय आए, वह निश्चित तौर पर कोई निर्णय नहीं लेगा या एकदम से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगा। परमेश्वर एवं अब्राहम के बीच का संवाद हमें यह दिखाता है कि सदोम को नाश करने का परमेश्वर का निर्णय जरा सा भी ग़लत नहीं था, क्योंकि परमेश्वर पहले से ही जानता था कि उस नगर में चालीस धर्मी नहीं थे, न ही तीस धर्मी थे, या न ही बीस धर्मी थे। वहाँ पर तो दस धर्मी भी नहीं थे। उस नगर में एकमात्र धर्मी व्यक्ति लूत था। वह सब जो सदोम में हुआ था और उसकी परिस्थितियों का परमेश्वर के द्वारा अवलोकन किया गया था, और वे परमेश्वर के लिए उसके हाथ के समान ही चिरपरिचित थे। इस प्रकार, उसका निर्णय ग़लत नहीं हो सकता था। इसके विपरीत, परमेश्वर की सर्वसामर्थता की तुलना में, मनुष्य कितना सुन्न, कितना मूर्ख एवं अज्ञानी, और कितना निकट-दर्शी है। यह वही बात है जिसे हम परमेश्वर एवं अब्राहम के बीच संवादों में देखते हैं। परमेश्वर आरम्भ से लेकर आज के दिन तक अपने स्वभाव को प्रकट करता रहा है। उसी प्रकार यहाँ पर भी परमेश्वर का स्वभाव है जिसे हमें देखना चाहिए। संख्याएँ सरल हैं, और किसी भी चीज़ को प्रदर्शित नहीं करती हैं, परन्तु यहाँ पर परमेश्वर के स्वभाव का अति महत्वपूर्ण प्रकटीकरण है। परमेश्वर पचास धर्मियों के कारण नगर को नाश नहीं करेगा। क्या यह परमेश्वर की दया के कारण है? क्या यह उसके प्रेम एवं सहिष्णुता के कारण है? क्या तुम लोगों ने परमेश्वर के स्वभाव के इस पहलू को देखाहै? भले ही वहाँ केवल दस धर्मी ही होते, फिर भी परमेश्वर इन दस धर्मियों के कारण उस नगर को नष्ट नहीं करता। यह परमेश्वर की सहनशीलता एवं प्रेम है या नहीं? उन धर्मी लोगों के प्रति परमेश्वर की दया, सहिष्णुता और चिंता के कारण, उसने उस नगर को नष्ट नहीं किया होता। यह परमेश्वर की सहनशीलता है। और अंत में, हम क्या परिणाम देखते हैं? जब अब्राहम ने कहा, "कदाचित् वहाँ दस मिलें," परमेश्वर ने कहा, "मैं उसका नाश न करूँगा।" इसके बाद, अब्राहम ने और कुछ नहीं कहा—क्योंकि सदोम के भीतर ऐसे दस धर्मी नहीं थे जिनकी ओर उसने संकेत किया था, और उसके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था, और उस समय उसने जाना कि परमेश्वर ने क्यों सदोम को नष्ट करने के लिए दृढ़ निश्चय किया था। इस में, तुम लोग परमेश्वर के किस स्वभाव को देखते हो? परमेश्वर ने किस प्रकार का दृढ़ निश्चय किया था? अर्थात्, यदि उस नगर में दस धर्मी नहीं होते, तो परमेश्वर उसके अस्तित्व की अनुमति नहीं देता, और वह अनिवार्य रूप से उसे नष्ट कर देता। क्या यह परमेश्वर का क्रोध नहीं है? क्या यह क्रोध परमेश्वर के स्वभाव को दर्शाता है? क्या यह स्वभाव परमेश्वर की पवित्र हस्ती (मूल-तत्व) का प्रकाशन है? क्या यह परमेश्वर के धर्मी सार का प्रकाशन है, जिसका अपमान मनुष्य को नहीं करना चाहिए? इस बात की पुष्टि के बाद कि सदोम में दस धर्मी भी नहीं थे, परमेश्वर निश्चित था कि नगर का नाश कर दे, और परमेश्वर उस नगर के भीतर के लोगों को कठोरता से दण्ड देगा, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर का विरोध किया था, और वे बहुत ही गन्दे एवं भ्रष्ट थे।
हमने क्यों इन अंशों का इस रीति से विश्लेषण किया है? क्योंकि ये कुछ साधारण वाक्य अत्यंत दया एवं अत्याधिक क्रोध के विषय में परमेश्वर के स्वभाव की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। ठीक उसी समय धर्मियों को सहेजकर रखते हुए, उन पर दया करते हुए, उनको सहते हुए, और उनकी देखभाल करते हुए, परमेश्वर के हृदय में सदोम के सभी लोगों के लिए अत्यंत घृणा थी जो भ्रष्ट हो चुके थे। क्या यह अत्यंत दया एवं अत्याधिक क्रोध था, या नहीं? परमेश्वर ने किस तरह से उस नगर को नष्ट किया था? आग से। और उसने आग का इस्तेमाल करके उसे क्यों नष्ट किया था? जब तू किसी चीज़ को आग के द्वारा जलते हुए देखता है, या जब तू किसी चीज़ को जलाने वाला होता है, तो उसके प्रति तेरी भावनाएं क्या होती हैं? तू इसे क्यों जलाना चाहता है? क्या तू महसूस करता है कि अब तुझे इसकी आवश्यकता नहीं है, यह कि तू इसे अब और नहीं देखना चाहता है? क्या तू इसका परित्याग करना चाहता है? परमेश्वर के द्वारा आग का इस्तेमाल करने का अर्थ है परित्याग, एवं घृणा, और यह कि वह सदोम को अब और देखना नहीं चाहता था। यह वह भावना थी जिसने परमेश्वर से आग द्वारा सदोम का सम्पूर्ण विनाश करवाया। आग का इस्तेमाल दर्शाता है कि परमेश्वर कितना क्रोधित था। परमेश्वर की दया एवं सहनशीलता वास्तव में मौजूद है, किन्तु जब वह अपने क्रोध को तीव्रता से प्रवाहित करता है तो परमेश्वर की पवित्रता एवं धार्मिकता मनुष्य को परमेश्वर का वह पहलु भी दिखाती है जो किसी गुनाह की अनुमति नहीं देता है। जब मनुष्य परमेश्वर की आज्ञाओं को पूरी तरह से मानने में समर्थ होता है और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करता है, तो परमेश्वर मनुष्य के प्रति अपनी दया से भरपूर होता है; जब मनुष्य भ्रष्टता, घृणा एवं उसके प्रति शत्रुता से भर जाता है, तो परमेश्वर बहुत अधिक क्रोधित होता है। और वह किस हद तक अत्यंत क्रोधित होता है? उसका क्रोध तब तक बना रहता है जब तक वह मनुष्य के प्रतिरोध एवं बुरे कार्यों को फिर कभी नहीं देखता है, जब तक वे उसकी नज़रों के सामने से दूर नहीं हो जाते हैं। केवल तभी परमेश्वर का क्रोध दूर होगा। दूसरे शब्दों में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह व्यक्ति कौन है, यदि उनका हृदय परमेश्वर से दूर हो गया है, और परमेश्वर से फिर गया है, कभी वापस नहीं लौटने के लिए, तो इसके बावजूद कि, सभी संभावनाओं या अपनी आत्मनिष्ठ इच्छाओं के अर्थ में वे किस प्रकार अपने शरीर में या अपनी सोच में परमेश्वर की आराधना करने, उसका अनुसरण करने और उसकी आज्ञा मानने की इच्छा करते हैं, जैसे ही उनका हृदय परमेश्वर से दूर हो जाता है, परमेश्वर के क्रोध को बिना रूके तीव्रता से प्रवाहित किया जाएगा। यह कुछ ऐसा होगा कि मनुष्य को पर्याप्त अवसर देने के बाद, जब परमेश्वर अपने क्रोध को प्रचंडता से प्रवाहित करता है, जब एक बार उसके क्रोध को तीव्रता से प्रवाहित किया जाता है तो उसके बाद इसे वापस लेने का कोई मार्ग नहीं होगा, और वह ऐसे मनुष्य के प्रति फिर कभी दयावान एवं सहनशील नहीं होगा। यह परमेश्वर के स्वभाव का ऐसा पहलु है जो किसी गुनाह को बर्दाश्त नहीं करता है। यहाँ, यह लोगों को सामान्य प्रतीत होता है कि परमेश्वर एक नगर को नष्ट करेगा, क्योंकि, परमेश्वर की दृष्टि में, वह नगर जो पाप से भरा हुआ था अस्तित्व में नहीं रह सकता था और निरन्तर बना नहीं रह सकता था, और यह न्यायसंगत था कि इसे परमेश्वर के द्वारा नष्ट किया जाना चाहिए। फिर भी उन बातों में जो परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश के पहले और उसके बाद घटित हुए थे, हम परमेश्वर के स्वभाव की सम्पूर्णता को देखते हैं। वह उन चीज़ों के प्रति सहनशील एवं दयालु है जो उदार, और खूबसूरत, और भली हैं; ऐसी चीज़ें जो बुरी, और पापमय, और दुष्ट हैं, वह उनके प्रति अत्याधिक क्रोधित होता है, कुछ इस तरह कि वह लगातार क्रोध करता है। ये परमेश्वर के स्वभाव के दो सिद्धान्त एवं अति महत्वपूर्ण पहलु हैं, और, इसके अतिरिक्त, उन्हें प्रारम्भ से लेकर अंत तक परमेश्वर के द्वारा प्रकट किया गया है: भरपूर दया एवं अत्यंत क्रोध। तुम लोगों में से अधिकतर लोगों ने परमेश्वर की दया का अनुभव किया है, किन्तु तुम में से बहुत कम लोगों ने परमेश्वर के क्रोध की सराहना की होगी। परमेश्वर की दया एवं करूणा को प्रत्येक व्यक्ति में देखा जा सकता है; अर्थात्, परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के प्रति बहुत अधिक दयालु रहा है। फिर भी कभी कभार—या, ऐसा कहा जा सकता है, कभी नहीं—परमेश्वर ने किसी भी व्यक्ति के प्रति या आज तुम लोगों के बीच के किसी भी समूह के प्रति अत्याधिक क्रोध किया है। शान्त हो जाओ! जल्द ही या बाद में, प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा परमेश्वर के क्रोध को देखा और अनुभव किया जाएगा, किन्तु अभी वह समय नहीं आया है। और ऐसा क्यों है? क्योंकि जब परमेश्वर किसी के प्रति लगातार क्रोधित होता है, अर्थात्, जब वह अपने अत्यंत क्रोध को उन पर तीव्रता से प्रवाहित करता है, तो इसका अर्थ है कि उसने काफी समय से उससे घृणा की है और उसे अस्वीकार किया है, यह कि उसने उनके अस्तित्व को तुच्छ जाना है, और यह कि वह उनकी मौजूदगी को सहन नहीं कर सकता है; जैसे ही उसका क्रोध उनके ऊपर आएगा, वे लुप्त हो जाएंगे। आज, परमेश्वर का कार्य अभी तक उस मुकाम पर नहीं पहुंचा है। परमेश्वर के बहुत अधिक क्रोधित हो जाने पर तुम लोगों में से कोई भी उसके सामने खड़े होने के योग्य नहीं होगा। तो तुम लोग देखते हो कि इस समय परमेश्वर तुम सभी के प्रति अत्याधिक दयालु है, और तुम लोगों ने अभी तक उसका अत्यंत क्रोध नहीं देखा है। यदि ऐसे लोग हैं जो अविश्वास की दशा में बने रहते हैं, तो तुम लोग याचना कर सकते हो कि परमेश्वर का क्रोध तुम लोगों के ऊपर आ जाए, ताकि तुम लोग अनुभव कर सको कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का क्रोध और उसका अनुल्लंघनीय स्वभाव वास्तव में अस्तित्व में है या नहीं। क्या तुम लोग ऐसी हिम्मत कर सकते हो?
"वचन देह में प्रकट होता है" से

मंगलवार, 4 जून 2019

हटा दिया जाएगा उन्हें जो नहीं करते परमेश्वर के वचनों का अभ्यास



  • I
  • तुम्हारे स्वभाव में तब्दीली लाना है
  • परमेश्वर के काम और वचन का अभिप्राय।
  • महज़ इसे समझाना या पहचान कराना
  • मकसद नहीं है उसका।
  • इतना काफ़ी नहीं है, और यही सब-कुछ नहीं है।
  • तुम ग्रहण कर सको अगर,
  • तो आसान है समझना परमेश्वर के वचन।
  • क्योंकि इंसानी ज़बान में लिखे हैं अधिकतर वचन।
  • जो परमेश्वर चाहता है कि तुम जानो और करो,
  • वो है ऐसा जो सामान्य इन्सान समझ सकता।
  • इंसान परमेश्वर के वचनों में, हर तरह के सत्य का अनुभव करे।
  • वो विस्तार से खोजे और जाँचे इसे।
  • जो भी मिल जाए उसे लेने का इंतज़ार न करे,
  • वरना मुफ़्तख़ोर के सिवा कुछ न होगा वो।
  • जानता हो परमेश्वर के वचन के सत्य को, मगर अमल में न लाए वो,
  • तो इसे प्रेम नहीं करता वो, आख़िरकार हटा दिया जाएगा उसको।
  • II
  • परमेश्वर जो कहता है अब साफ़ है।
  • ये पारदर्शी और सुबोध है।
  • बहुत-सी चीज़ों पर ध्यान दिलाता है परमेश्वर
  • जो सोची नहीं हैं इंसान ने।
  • इंसान के अलग-अलग हालात ज़ाहिर करता है वो।
  • सबको अंगीकार करते हैं परमेश्वर के वचन।
  • पूर्णमासी के चाँद की रोशनी की तरह साफ़ हैं वो।
  • बहुत से मामलों को समझ सकता है इंसान।
  • परमेश्वर के वचन को अमल में लाने की
  • कोशिश करे इंसान।
  • बस यही कमी है असल में इंसान में।
  • इंसान परमेश्वर के वचनों में, हर तरह के सत्य का अनुभव करे।
  • वो विस्तार से खोजे और जाँचे इसे।
  • जो भी मिल जाए उसे लेने का इंतज़ार न करे,
  • वरना मुफ़्तख़ोर के सिवा कुछ न होगा वो।
  • जानता हो परमेश्वर के वचन के सत्य को, मगर अमल में न लाए वो,
  • तो इसे प्रेम नहीं करता वो, आख़िरकार हटा दिया जाएगा उसको।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

शुक्रवार, 24 मई 2019

परमेश्वर उन्हीं को पूर्ण बनाता है जो प्रेम करते हैं उसे



  • I
  • गर चाहते हो पूर्ण बनाए तुम लोगों को परमेश्वर,
  • तो अच्छी हो या बुरी, हर चीज़ का अब अनुभव लेना सीखो।
  • जिन चीज़ों का भी सामना करो, उनमें प्रबुद्ध होना सीखो।
  • लाभ होना चाहिये इससे तुम्हें।
  • गर चाहते हो पूर्ण बनाए तुम लोगों को परमेश्वर,
  • तो देखना ये कभी निष्क्रिय न बना दे तुम्हें।
  • परमेश्वर की तरफ़ खड़े हो जाओ, और इस पर विचार करो।
  • इसे इंसानी नज़रिये से न देखो।
  • II
  • गर चाहते हो पूर्ण बनाए तुम लोगों को परमेश्वर,
  • तो अनुभव के इस तरीके को आज़माकर देखो,
  • हो जाएगा दिल बोझिल तुम्हारा जीवन के लिये,
  • रहोगे तुम सदा उसकी मौजूदगी की रोशनी में,
  • भटकोगे नहीं आसानी से तुम कभी अपने अभ्यास में।
  • खुल जाएँगी विशाल संभावनाएँ तुम लोगों के लिये।
  • III
  • तुम लोगों को परमेश्वर से अगर सच्चा प्रेम है,
  • तो उसके द्वारा तुम्हें पूर्ण किये जाने के बहुत से अवसर हैं।
  • गर परमेश्वर द्वारा प्राप्त और पूर्ण किये जाने के,
  • उसकी आशीष और विरासत को पाने के,
  • तुम्हारे इरादे अटल हैं तो
  • परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने की अनेक संभावनाएँ हैं।
  • IV
  • गर चाहते हो पूर्ण बनाए तुम लोगों को परमेश्वर,
  • तो केवल संकल्प होना कभी काफ़ी नहीं है।
  • अभ्यास में गलतियों से बचने के लिये,
  • ज्ञान भी होना चाहिये तुम्हें।
  • ज़्यादातर लोगों ने महज़ परमेश्वर के अनुग्रह के
  • आनंद तक ही सीमित कर लिया है ख़ुद को।
  • वो लोग ऊँचे प्रकटन नहीं,
  • सिर्फ़ थोड़े-से दैहिक सुख ही
  • पाना चाहते हैं परमेश्वर से।
  • V
  • ये दिखाता है दिल अभी उनका बाहर ही है।
  • पूर्ण किये जाने की उन्हें परवाह नहीं है।
  • जीवन उनका पतनशील और अशिष्ट है।
  • वो एकदम थोड़े में गुज़ारा करते हैं,
  • भटकते हैं, बेमकसद अस्तित्व लेकर,
  • उन्हें जीवन में ज़रा-सा भी बदलाव हासिल नहीं है।
  • VI
  • कुछ ही हैं जो अधिक समृद्धदायक चीज़ों को पाने के लिये,
  • उसके घर में अधिक ऊँचा वैभव पाने वाला बनने
  • और उसका अधिक आशीष पाने के लिये,
  • जिन चीज़ों का वे सामना करते हैं उनमें,
  • परमेश्वर के वचन में प्रवेश की खोज करते हैं।
  • हर चीज़ में पूर्ण और प्रबुद्ध होने की खोज करते हो अगर,
  • तो तुम लायक और पात्र हो परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के लिये।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

      चमकती पूर्वी बिजली, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सृजन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकट होने और उनका काम, परमेश्वर यीशु के दूसरे आगमन, अंतिम दिनों के मसीह की वजह से किया गया था। यह उन सभी लोगों से बना है जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसके वचनों के द्वारा जीते और बचाए जाते हैं। यह पूरी तरह से सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया गया था और चरवाहे के रूप में उन्हीं के द्वारा नेतृत्व किया जाता है। इसे निश्चित रूप से किसी मानव द्वारा नहीं बनाया गया था। मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की आवाज़ सुनती है। जब तक आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, आप देखेंगे कि परमेश्वर प्रकट हो गए हैं।

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

15. चूंकि परमेश्वर धर्मी हैं, तो ऐसा क्यों है कि दुष्ट लोग सुख-सुविधा से समृद्ध होते हैं, जबकि अच्छे लोगों को सताया और दबाया जाता है और वे तकलीफें झेलते हैं?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"एक धनवान मनुष्य था जो बैंजनी कपड़े और मलमल पहिनता और प्रतिदिन सुख-विलास और धूम-धाम के साथ रहता था। लाजर नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उसकी डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता था, और वह चाहता था कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे; यहाँ तक कि कुत्ते भी आकर उसके घावों को चाटते थे। ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर अब्राहम की गोद में पहुँचाया। वह धनवान भी मरा और गाड़ा गया, और अधोलोक में उसने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आँखें उठाईं, और दूर से अब्राहम की गोद में लाजर को देखा।

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

2. संसार इतना अधिक अंधकारपूर्ण और कुटिल क्यों है? मानवजाति भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा पर है, क्या इसका विनाश होना चाहिए?

परमेश्वर के वचन से जवाब:
शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जाने पर मनुष्य ने, परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी शत्रु बनते हुए, अपना धर्मभीरू हृदय गँवा दिया है और उस प्रकार्य को गँवा दिया जो परमेश्वर के सृजित प्राणियों में से एक के पास होना चाहिए। मनुष्य शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहा और उसने उसके आदेशों का पालन किया; इस प्रकार, अपने प्राणियों के बीच कार्य करने का परमेश्वर के पास कोई मार्ग नहीं था, और तो और अपने प्राणियों से परमेश्वर का भय प्राप्त करने में असमर्थ था। मनुष्य परमेश्वर के द्वारा सृजित था, और उसे परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए थी, परंतु मनुष्य ने वास्तव में परमेश्वर की ओर पीठ फेर दी और शैतान की आराधना की। शैतान मनुष्य के हृदय में प्रतिमा बन गया।

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

प्रश्न 41: हमने चीनी कम्युनिस्ट सरकार और धार्मिक दुनिया के कई भाषण ऑनलाइन देखे हैं जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की बदनामी और झूठी निंदा करते हैं, उन पर आक्षेप और कलंक लगाते हैं (जैसे कि झाओयुआन, शेडोंग प्रांत की "5.28" वाली घटना)। हम यह भी जानते हैं कि सीसीपी लोगों से झूठ और गलत बातें कहने में, और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर लोगों को धोखा देने में माहिर है, साथ ही साथ उन देशों का जिनके यह विरोध में है, अपमान करने, उन पर हमला करने और उन का न्याय करने में भी माहिर है, इसलिए सीसीपी के कहे गए किसी भी शब्द पर बिल्कुल विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों के द्वारा कही गई कई बातें सीसीपी के शब्दों से मेल खाती हैं, इसलिए हमें सीपीपी और धार्मिक दुनिया से आने वाले निन्दापूर्ण, अपमानजनक शब्दों को कैसे परखना चाहिए?

प्रश्न 41: हमने चीनी कम्युनिस्ट सरकार और धार्मिक दुनिया के कई भाषण ऑनलाइन देखे हैं जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की बदनामी और झूठी निंदा करते हैं, उन पर आक्षेप और कलंक लगाते हैं (जैसे कि झाओयुआन, शेडोंग प्रांत की "5.28" वाली घटना)। हम यह भी जानते हैं कि सीसीपी लोगों से झूठ और गलत बातें कहने में, और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर लोगों को धोखा देने में माहिर है, साथ ही साथ उन देशों का जिनके यह विरोध में है, अपमान करने, उन पर हमला करने और उन का न्याय करने में भी माहिर है, इसलिए सीसीपी के कहे गए किसी भी शब्द पर बिल्कुल विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों के द्वारा कही गई कई बातें सीसीपी के शब्दों से मेल खाती हैं, इसलिए हमें सीपीपी और धार्मिक दुनिया से आने वाले निन्दापूर्ण, अपमानजनक शब्दों को कैसे परखना चाहिए?

उत्तर:
शैतान की बुरी ताकतें इस तरह परमेश्वर के कार्य पर हमला क्यों करती हैं, परमेश्वर के कार्य का आंकलन करते हुए? क्यों बड़े लाल अजगर की बुरी ताकतें उन्मत्त होकर परमेश्वर पर हमला और उसकी निंदा कर रही हैं, और परमेश्वर की कलीसिया को उत्पीडित कर रही हैं? क्यों शैतान की सभी बुरी ताकतें, धार्मिक मंडलियों के अंदर मसीह-विरोधी बिरादरी सहित, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा करती हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि शैतान जानता है कि इसका अंत निकट है, कि परमेश्वर पहले से ही अपने राज्य को सुरक्षित कर चुका है और वह आ गया है, और यह कि अगर शैतान परमेश्वर के साथ एक निर्णायक लड़ाई में नहीं जुटता है तो वह तुरंत नष्ट हो जाएगा।

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

प्रश्न 40: सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों का मसीह, सत्य को व्यक्त करता है और मानवता को शुद्ध करने और बचाने के लिए न्याय का अपना कार्य करता है, और फिर भी वह धार्मिक दुनिया और चीनी कम्युनिस्ट सरकार, दोनों की बेतहाशा निंदा और क्रूर कार्यवाही का मुकाबला करता है, जहां वे मसीह का तिरस्कार करने, उसकी निन्दा करने, उसे पकड़ने और नष्ट करने के लिए उनके सशस्त्र बलों और सभी मीडिया तक को जुटाते हैं। जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ, हेरोदेस ने सुना कि "इस्राएल का राजा" पैदा हो चुका था और उसने सभी नर बच्चों को जो बेतलेहेम में थे और दो वर्ष से कम उम्र के थे, मरवा डाला था; उसे मसीह को जीवित रहने देने की बजाय दस हजार बच्चों को गलत ढंग से मार डालना बेहतर लगा। परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए देह-धारण किया है, तो धार्मिक दुनिया और नास्तिक सरकार क्यों परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के खिलाफ अंधाधुंध तिरस्कार और निन्दा करती हैं? क्यों वे पूरे देश की ताकत को झुका देते हैं और मसीह को क्रूस पर कीलों से जड़ने के लिए कोई प्रयास बाक़ी नहीं रखते हैं? मानव जाति इतनी बुरी क्यों है, वह परमेश्वर से इतनी नफरत क्यों करती है और क्यों उसके खिलाफ खुद मोर्चा लेती है?

प्रश्न 40: सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों का मसीह, सत्य को व्यक्त करता है और मानवता को शुद्ध करने और बचाने के लिए न्याय का अपना कार्य करता है, और फिर भी वह धार्मिक दुनिया और चीनी कम्युनिस्ट सरकार, दोनों की बेतहाशा निंदा और क्रूर कार्यवाही का मुकाबला करता है, जहां वे मसीह का तिरस्कार करने, उसकी निन्दा करने, उसे पकड़ने और नष्ट करने के लिए उनके सशस्त्र बलों और सभी मीडिया तक को जुटाते हैं। जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ, हेरोदेस ने सुना कि "इस्राएल का राजा" पैदा हो चुका था और उसने सभी नर बच्चों को जो बेतलेहेम में थे और दो वर्ष से कम उम्र के थे, मरवा डाला था; उसे मसीह को जीवित रहने देने की बजाय दस हजार बच्चों को गलत ढंग से मार डालना बेहतर लगा। परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए देह-धारण किया है, तो धार्मिक दुनिया और नास्तिक सरकार क्यों परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के खिलाफ अंधाधुंध तिरस्कार और निन्दा करती हैं? क्यों वे पूरे देश की ताकत को झुका देते हैं और मसीह को क्रूस पर कीलों से जड़ने के लिए कोई प्रयास बाक़ी नहीं रखते हैं? मानव जाति इतनी बुरी क्यों है, वह परमेश्वर से इतनी नफरत क्यों करती है और क्यों उसके खिलाफ खुद मोर्चा लेती है?

उत्तर:
सवाल बहुत अहम है, और पूरी मानवजाति में बहुत थोड़े-से लोग इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं! मानवजाति इतने अंधाधुंध तरीके से परमेश्वर की अवज्ञा क्यों करती है, यह अब सुर्ख़ियों में है, और देहधारी मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने की ऐतिहासिक त्रासदी फिर दोहराई जा रही है; यह एक तथ्य है। प्रभु यीशु ने कहा था: "और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए" (यूहन्ना 3:19-20)। "यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा" (यूहन्ना 15:18)। "इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)। और 1 यूहन्ना 5:19 में कहा गया है "और सारा संसार उस दुष्‍ट के वश में पड़ा है।" मानवजाति की करनी और मसीह के प्रति उनका रवैया यह साबित करने के लिए काफी है कि संपूर्ण संसार शैतान के कब्जे और उसकी शक्ति में है।

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

प्रश्न 38: हाल के वर्षों में, धार्मिक संसार में विभिन्न मत और संप्रदाय अधिक से अधिक निराशाजनक हो गए हैं, लोगों ने अपना मूल विश्वास और प्यार खो दिया है और वे अधिक से अधिक नकारात्मक और कमज़ोर बन गए हैं। हम उत्साह का मुरझाना भी देखते हैं और हमें लगता है कि हमारे पास प्रचार करने के लिए कुछ नहीं है और हम सभी ने पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है। कृपया हमें बताओ, पूरी धार्मिक दुनिया इतनी निराशाजनक क्यों है? क्या परमेश्वर वास्तव में इस दुनिया से नफरत करता है और क्या उसने इसे त्याग दिया है? हमें 'प्रकाशित वाक्य' पुस्तक में धार्मिक दुनिया के प्रति परमेश्वर के शाप को कैसे समझना चाहिए?

प्रश्न 38: हाल के वर्षों में, धार्मिक संसार में विभिन्न मत और संप्रदाय अधिक से अधिक निराशाजनक हो गए हैं, लोगों ने अपना मूल विश्वास और प्यार खो दिया है और वे अधिक से अधिक नकारात्मक और कमज़ोर बन गए हैं। हम उत्साह का मुरझाना भी देखते हैं और हमें लगता है कि हमारे पास प्रचार करने के लिए कुछ नहीं है और हम सभी ने पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है। कृपया हमें बताओ, पूरी धार्मिक दुनिया इतनी निराशाजनक क्यों है? क्या परमेश्वर वास्तव में इस दुनिया से नफरत करता है और क्या उसने इसे त्याग दिया है? हमें 'प्रकाशित वाक्य' पुस्तक में धार्मिक दुनिया के प्रति परमेश्वर के शाप को कैसे समझना चाहिए?

उत्तर:
वास्तव में, धार्मिक समुदाय का परमेश्वर के विरोध का इतिहास कम से कम व्यवस्था के युग के अंत से शुरू हुआ। जब परमेश्वर ने अनुग्रह के युग के दौरान पहली बार देह धारण की और अपना कार्य किया, उस समय भी धार्मिक समुदाय पर फरीसियों और मसीह विरोधियों ने बहुत पहले से ही कब्जा कर लिया था। यह प्रभु यीशु के पाप मुक्ति के कार्य के लिए विरोधी बन गया था। जब, अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होते हैं और अपना कार्य करते हैं, वे लोग जो धार्मिक समुदाय में हैं वे अभी भी परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य के सामने एक दुश्मन की तरह खडे हो जाते हैं। वे न सिर्फ पागलपन के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार करते हैं, बल्कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर अत्याचार करने और दमन के लिए शैतानी सीसीपी शासन के साथ मिल जाते हैं।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

प्रश्न 36: धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों की धार्मिक संसार में सत्ता बनी हुई है और ज्यादातर लोग उनका पालन और अनुसरण करते हैं—यह एक सच्चाई है। तुम कहते हो कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि परमेश्वर ने देह-धारण किया है, कि वे देह-धारी परमेश्वर द्वारा प्रकट सत्य पर विश्वास नहीं करते और वे फरीसियों के मार्ग पर चल रहे हैं, और हम इस बात से सहमत हैं। लेकिन तुम यह क्यों कहते हो कि सारे धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग पाखंडी फरीसी हैं, कि वे सभी मसीह-शत्रु हैं जो अंतिम दिनों में देह-धारी परमेश्वर के कार्य से उघाड़ दिए गए हैं, और वे अंत में विनाश में डूब जाएँगे? हम इस समय इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते। तुम अपना यह दावा कि इन लोगों को नहीं बचाया जा सकता है और उन सभी को विनाश में डूबना चाहिए, किस बात पर आधारित करते हो, इस पर कृपया सहभागिता करो।

प्रश्न 36: धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों की धार्मिक संसार में सत्ता बनी हुई है और ज्यादातर लोग उनका पालन और अनुसरण करते हैं—यह एक सच्चाई है। तुम कहते हो कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि परमेश्वर ने देह-धारण किया है, कि वे देह-धारी परमेश्वर द्वारा प्रकट सत्य पर विश्वास नहीं करते और वे फरीसियों के मार्ग पर चल रहे हैं, और हम इस बात से सहमत हैं। लेकिन तुम यह क्यों कहते हो कि सारे धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग पाखंडी फरीसी हैं, कि वे सभी मसीह-शत्रु हैं जो अंतिम दिनों में देह-धारी परमेश्वर के कार्य से उघाड़ दिए गए हैं, और वे अंत में विनाश में डूब जाएँगे? हम इस समय इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते। तुम अपना यह दावा कि इन लोगों को नहीं बचाया जा सकता है और उन सभी को विनाश में डूबना चाहिए, किस बात पर आधारित करते हो, इस पर कृपया सहभागिता करो।

उत्तर:
धार्मिक मंडलों के लोग परमेश्वर की अवहेलना कैसे करते हैं इसका सार केवल देहधारी मसीह के आगमन के बाद ही प्रकट और विश्लेषित किया जा सकता है। कोई भी भ्रष्ट मनुष्य धार्मिक मंडलों द्वारा परमेश्वर की अवहेलना की सच्चाई और उसके सार को नहीं जान सकता है, क्योंकि भ्रष्ट मनुष्यों में कोई सच्चाई नहीं होती है। वे तो केवल झूठे चरवाहों और मसीह-विरोधी राक्षसों द्वारा बुराई करने में शामिल होने के लिए नियंत्रित, भ्रमित और चालाकी से काम में लाये जा सकते हैं, और परमेश्वर की अवहेलना करने में शैतान के दास और साथी बन सकते हैं। यह स्वाभाविक है।

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

प्रश्न 35: धार्मिक दुनिया के अधिकांश लोग मानते हैं कि पादरियों और प्राचीन लोगों को परमेश्वर के द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया है, और यह कि वे सभी धार्मिक कलीसियाओं में परमेश्वर की सेवा करते हैं; अगर हम पादरियों और प्राचीन लोगों का अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं, तो हम वास्तव में परमेश्वर का ही अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं। यथार्थतः मनुष्य का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या मतलब है, और वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या अर्थ है, ज्यादातर लोग सच्चाई के इस पहलू को नहीं समझते हैं, तो कृपया हमारे लिए यह सहभागिता करो।

प्रश्न 35: धार्मिक दुनिया के अधिकांश लोग मानते हैं कि पादरियों और प्राचीन लोगों को परमेश्वर के द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया है, और यह कि वे सभी धार्मिक कलीसियाओं में परमेश्वर की सेवा करते हैं; अगर हम पादरियों और प्राचीन लोगों का अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं, तो हम वास्तव में परमेश्वर का ही अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं। यथार्थतः मनुष्य का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या मतलब है, और वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या अर्थ है, ज्यादातर लोग सच्चाई के इस पहलू को नहीं समझते हैं, तो कृपया हमारे लिए यह सहभागिता करो।

उत्तर:
धर्म में, कुछ लोग सोचते हैं कि सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा चुने और प्रतिष्ठित किये जाते है। इसलिए लोगों को उनका आज्ञापालन करना चाहिए। क्या इस तरह की धारणा का बाइबल में कोई आधार है? क्या प्रभु के वचन में इसका कोई प्रमाण है? क्या इसमें पवित्र आत्मा की गवाही और पवित्र आत्मा के कार्य की स्वीकृति है? अगर सारे जवाब 'नहीं' हैं, तो क्या बहुमत का यह विश्वास कि सभी पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा चुने और प्रतिष्ठित किए जाते हैं, लोगों की अवधारणाओं और कल्पनाओं से नहीं आया है? आइए इस बारे में विचार करें। व्यवस्था के युग में मूसा को परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

प्रश्न 34: धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों को बाइबल का सशक्त ज्ञान है, वे प्रायः लोगों के समक्ष बाइबल का विस्तार करते हैं और उन्हें बाइबल का सहारा बनाये रखने के लिए कहते हैं, इसलिए बाइबल की व्याख्या करना और उसकी प्रशंसा करना क्या वास्तव में परमेश्वर की गवाही देना और प्रशंसा करना है? ऐसा क्यों कहा जाता है कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग ढोंगी फरीसी हैं? हम अभी भी इसको समझ नहीं सकते हैं, तो क्या तुम हमारे लिए इसका जवाब दे सकते हो?

प्रश्न 34: धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों को बाइबल का सशक्त ज्ञान है, वे प्रायः लोगों के समक्ष बाइबल का विस्तार करते हैं और उन्हें बाइबल का सहारा बनाये रखने के लिए कहते हैं, इसलिए बाइबल की व्याख्या करना और उसकी प्रशंसा करना क्या वास्तव में परमेश्वर की गवाही देना और प्रशंसा करना है? ऐसा क्यों कहा जाता है कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग ढोंगी फरीसी हैं? हम अभी भी इसको समझ नहीं सकते हैं, तो क्या तुम हमारे लिए इसका जवाब दे सकते हो?

उत्तर:
लोगों के लिए, बाइबल की व्याख्या करना गलत नहीं होना चाहिए, परंतु, बाइबल की व्याख्या करते वक्त वे वास्तव में ऐसे काम करते हैं जिनसे परमेश्वर का विरोध होता है। ये किस तरह के लोग हैं? क्या वे पाखंडी फरीसी नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर-विरोधी मसीह-विरोधी नहीं हैं? पादरी और एल्डर्स, बाइबल की व्याख्या करना परमेश्वर का विरोध करना कैसे हो सकता है? इससे परमेश्वर की निंदा कैसे होती है? अभी भी ऐसे लोग हैं जो समझ नहीं पा रहे हैं और अभी भी सोचते हैं कि बाइबल की व्याख्या करना परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है। उस ज़माने के यहूदी मुख्य पादरी, धर्मगुरु और फरीसी सभी धर्मग्रंथों के अध्येता और विद्वान थे, जो लोगों के सामने अक्सर धर्मग्रंथों की व्याख्या किया करते थे।

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

प्रश्न 33: उस समय, जब प्रभु यीशु अपने कार्य को करने के लिए आया था, यहूदी फरीसियों ने उसका अंधाधुंध विरोध किया, उसकी निंदा की और उसे क्रूस पर कीलों से जड़ दिया। जब अंतिम दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए आता है, तो धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग उसकी भी अवहेलना और निंदा करते हैं, परमेश्वर को फिर एक बार क्रूस पर चढ़ाते हैं। यहूदी फरीसी, धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग इस तरह सच्चाई से नफरत क्यों करते हैं और क्यों इस तरह मसीह के विरुद्ध खुद को खड़ा कर देते हैं? वास्तव में उनका निहित सार क्या है?

प्रश्न 33: उस समय, जब प्रभु यीशु अपने कार्य को करने के लिए आया था, यहूदी फरीसियों ने उसका अंधाधुंध विरोध किया, उसकी निंदा की और उसे क्रूस पर कीलों से जड़ दिया। जब अंतिम दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए आता है, तो धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग उसकी भी अवहेलना और निंदा करते हैं, परमेश्वर को फिर एक बार क्रूस पर चढ़ाते हैं। यहूदी फरीसी, धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग इस तरह सच्चाई से नफरत क्यों करते हैं और क्यों इस तरह मसीह के विरुद्ध खुद को खड़ा कर देते हैं? वास्तव में उनका निहित सार क्या है?

उत्तर:
प्रभु में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति जानता है कि फरीसियों ने प्रभु यीशु का विरोध किया। लेकिन उनके विरोध की असली वजह क्या थी? आप कह सकते हैं कि धर्म के 2000 वर्षों के इतिहास में, कोई भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं ढूंढ पाया है। हालाँकि प्रभु यीशु के फरीसियों को शाप देने के बारे में नये विधान में उल्लेख है, लेकिन कोई भी फरीसियों के सार को समझ नहीं पाया है। जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आते हैं, तो वो इस प्रश्न का सच्चा उत्तर प्रकाशित करते हैं। चलिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, "फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका कारण जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे।

गुरुवार, 31 जनवरी 2019

प्रश्न 32: फरीसियों ने अक्सर धार्मिक और करुणाशील रूप धारण कर सभाओं में लोगों से बाइबल की व्याख्या की, और वे जाहिर तौर पर कुछ भी गैरकानूनी करते हुए दिखाई नहीं देते थे। तो क्यों प्रभु यीशु ने फरीसियों को शाप दिया था? उनका ढोंग कैसे प्रकट हुआ था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग ढोंगी फरीसियों के मार्ग पर ही चलते हैं?

प्रश्न 32: फरीसियों ने अक्सर धार्मिक और करुणाशील रूप धारण कर सभाओं में लोगों से बाइबल की व्याख्या की, और वे जाहिर तौर पर कुछ भी गैरकानूनी करते हुए दिखाई नहीं देते थे। तो क्यों प्रभु यीशु ने फरीसियों को शाप दिया था? उनका ढोंग कैसे प्रकट हुआ था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग ढोंगी फरीसियों के मार्ग पर ही चलते हैं?

उत्तर:
जो लोग प्रभु में विश्वास रखते हैं जानते हैं कि प्रभु यीशु वास्तव में फरीसियों से घृणा करते थे और उन्होंने उनको शाप दिया था और उन पर सात संताप घोषित किये थे। यह प्रभु के विश्वासियों को इस बात की अनुमति देने में बहुत सार्थक है कि वे पाखंडी फरीसियों को समझें, उनके चंगुल और नियंत्रण से दूर हो जाएँ और परमेश्वर द्वारा उद्धार प्राप्त करें। वैसे, यह शर्मनाक है। कई विश्वासी फरीसियों के पाखंड के सार को नहीं समझ सकते हैं। वे यह भी नहीं समझते हैं कि प्रभु यीशु ने फरीसियों से इतनी घृणा क्यों की और उन्हें शाप क्यों दिया। आज हम इन समस्याओं के बारे में थोड़ी चर्चा करेंगे। फरीसी अक्सर आराधनालयों में दूसरों के सामने बाइबल की व्याख्या करते थे। वे अक्सर दूसरों के सामने प्रार्थना करते थे और लोगों की निंदा करने के लिए बाइबल के नियमों का उपयोग करते थे।

शनिवार, 19 जनवरी 2019

प्रश्न 15: तुम कहते हो कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर के अंतिम दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार करना चाहिए और उसके बाद ही उनके भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो सकते हैं और स्वयं वे परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। परन्तु हम, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार, नम्रता और धैर्य का अभ्यास करते हैं, हमारे दुश्मनों से प्रेम करते हैं, हमारे क्रूसों को उठाते हैं, संसार की चीजों को त्याग देते हैं, और हम परमेश्वर के लिए काम करते हैं और प्रचार करते हैं, इत्यादि। तो क्या ये सभी हमारे बदलाव नहीं हैं? हमने हमेशा इस तरह से चाह की है, तो क्या हम भी शुद्धि तथा स्वर्गारोहण को प्राप्त नहीं कर सकते और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते?

प्रश्न 15: तुम कहते हो कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर के अंतिम दिनों के न्याय के कार्य को स्वीकार करना चाहिए और उसके बाद ही उनके भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो सकते हैं और स्वयं वे परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। परन्तु हम, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार, नम्रता और धैर्य का अभ्यास करते हैं, हमारे दुश्मनों से प्रेम करते हैं, हमारे क्रूसों को उठाते हैं, संसार की चीजों को त्याग देते हैं, और हम परमेश्वर के लिए काम करते हैं और प्रचार करते हैं, इत्यादि। तो क्या ये सभी हमारे बदलाव नहीं हैं? हमने हमेशा इस तरह से चाह की है, तो क्या हम भी शुद्धि तथा स्वर्गारोहण को प्राप्त नहीं कर सकते और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते?

उत्तर:
प्रभु यीशु ने अभी-अभी छुटकारे का कार्य किया है। इसलिये, पूरी कोशिश करने और बाइबल पढ़ने के बावजूद अनुग्रह के युग में इंसान पापों से मुक्त होकर अच्छा इंसान नहीं बन सका। अपनी प्रबंधन योजना के चरणों के मुताबिक, परमेश्वर अंत के दिनों में, अपने धाम से न्याय का कार्य शुरू करते हैं। इस कार्य के ज़रिये, वो इंसान को निर्मल करेंगे, उसे बदलेंगे, ताकि इंसान अपने पापों से मुक्त होकर पवित्र हो जाए। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया है, उसने केवल समस्त मानवजाति के छुटकारे के कार्य को पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना, मनुष्य को उसके भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया।

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

इस प्रकार की सेवा सच में तिरस्करणीय है

6. इस प्रकार की सेवा सच में तिरस्करणीय है

डिंग निंग हेज़े सिटी, शैन्डॉन्ग प्रांत
पिछले कुछ दिनों में, कलीसिया ने मेरे कार्य में एक परिवर्तन की व्यवस्था की है। जब मुझे यह नया कार्यभार मिला, तो मैंने सोचा, "मुझे अपने भाई—बहनों के साथ एक सभा बुलाने, मामलों के बारे में साफ तौर पर उनसे बात करने, और उन पर अच्छा प्रभाव छोड़ने के लिए इस अंतिम अवसर को लेने की जरूरत है।" इसलिए, मैंने कई उपयाजकों से मुलाकात की, और हमारी मुलाकात की समाप्ति पर, मैंने कहा, "मुझसे यहाँ से चले जाने और एक अन्य कार्य पर जाने के लिए कहा गया है। मैं उम्मीद करती हूँ कि आप लोग उस अगुआ को स्वीकार करेंगे जो मेरी जगह आएगी और एक दिल और एक मन से उसके साथ मिलकर कार्य करेंगे।" जैसे ही उन्होनें मुझे इन वचनों को कहते हुए सुना, तो वहाँ मौज़ूद कुछ बहनों का चेहरा सफेद पड़ गया, और उनके चेहरों से मुस्कान गायब हो गई।

सदोम की भ्रष्टताः मुनष्यों को क्रोधित करने वाली, परमेश्वर के कोप को भड़काने वाली

सर्वप्रथम, आओ हम पवित्र शास्त्र के अनेक अंशों को देखें जो "परमेश्वर के द्वारा सदोम के विनाश" की व्याख्या करते हैं। (उत्पत्ति 19...